सिगरेट और तंबाकू से दोस्ती यानि जिंदगी से दुश्मनी. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक तंबाकू के उपयोग के कारण दुनिया भर में हर साल साठ लाख लोग मरते हैं. जीएसटी के अनुसार भारत में 48% पुरुष और 20% महिलाएं तंबाकू उत्पादों का उपभोग करती हैं.सबसे खतरनाक ये है कि भारत में तम्बाकू शुरु करने की औसत आयु 17 वर्ष है.वहीं धुएं के संपर्क में आने के कारण दुनिया भर में तंबाकू से संबंधित बीमारियों से 60,000 लोग मौत के ग्रास बनते हैं.यहीं नहीं तम्बाकू का सेवन करने वाले का औसत आयु 10 साल घट जाता है.
धूम्रपान नहीं करने वालों की तुलना में धूम्रपान करने वालों को दिल का दौरा पड़ने की संभावना ज्यादा होती है.दिल का दौरा पड़ने वालों में तीन लोगों में से एक तंबाकू का आदी पाया गया है.यहीं नहीं धूम्रपान से स्ट्रोक का खतरा दो से चार गुना ज्यादा जाता है.वहीं धूम्रपान करने से अस्थमा और ब्रोंकाइटिस का खतरा भी बढ़ जाता है,तंबाकू हमारे लिए जहर बन कर मौत का कारण बन सकता है.धूम्रपान के व्यसन से ग्रसित गर्भवती महिलाओं में समय से बच्चे के जन्म लेने या कम वजन वाले बच्चे के जन्म का जोखिम ज्यादा होता है.तम्बाकू के उपयोग करने वालों में भूख न लगने, वजन घटने,मोटापा, मोतियाबिंद और समय से पहले उम्र बढ़ने और अंधापन होने की संभावना ज्यादा होती है.
मुंह का कैंसर तम्बाकू, सिगरेट, पान मसाला, पान, गुटखा के सेवन से हो सकता है. मुंह का कैंसर बहुत ही तेजी़ से बढ़ने वाली बीमारी है..भारत में तंबाकू, गुटखा, पान मसाला, नस्वार आदि से मुंह के कैंसर ने महामारी का रुप ले लिया है.मुंह के कैंसर की पहचान अंतिम चरण में होने के कारण मरीज की उम्र महीनों में ही होती है. मुंह के कैंसर की शुरूवात में मुंह में लाल या सफेद धब्बा पाया जाता है, कुछ परिस्थितियों में न ठीक होने वाला दर्द युक्त अल्सर भी हो सकता है या फिर बिना दर्द वाला कोई छोटा दाना जो बहुत दिनों से नहीं ठीक हो रहा हो.कैंसर को फैलने में देर नहीं लगती और बढ़ी हुई स्थितियों में मरीज़ को बहुत दर्द होता है, उसे खाने पीने व सांस लेने में तो परेशानी होती ही है साथ ही मुंह से खून भी आता है. गले में या आसपास की जगह पर सूजन भी आ जाती है.गले में गांठ जैसी बन जाती है. मुंह खोलने में परेशानी होती है. गले में हमेशा खराश की समस्या रहने लगती है. इसकी पहचान के लिये डॉक्टर होठों, मुंह के पीछे, चेहरा और गर्दन की जांच करता है, कोई भी जख्म या अल्सर आदि मिलने पर उसकी बायोप्सी की जाती है, इसके बाद एंडोस्कोपिक जांच, इमेजिंग सीटी स्कैन ,एमआरआई और अल्ट्रासोनोग्राफी आदि की मदद से कैंसर की स्टेजेज का पता लगाया जाता है.
पटना स्थित IGIMS में मेडिकल ऑन्कोलोजी के प्रमुख डॉ अवुनाश पांडे ने बताया कि फेफड़ों के कैंसर के लिए धूम्रपान सबसे बड़ा कारण है. 80 फीसदी से ज्यादा फेफड़ा कैंसर के रोगी धुम्रपान करने वाले पाए गए है. लगभग 90 प्रतिशत मुंह कैंसर के मरीज़ों में तम्बाकू का सेवन एक आम आदत के रूप में पाया गया है.इसका खतरा तम्बाकू की मात्रा और प्रयोग के समय के साथ बढ़ता जाता है.दुर्भाग्य से, 85% से अधिक मरीज के रोग का पता बहुत बढ़ जाने पर चलता. .धूम्रपान से गले , पेट, मूत्राशय, अग्न्याशय और रक्त के कैंसर का खतरा के चार गुना बढ़ जाता है. तंबाकू का प्रयोग करने वाले दो तिहाई लोग धुम्रपान छोड़ना चाहते हैं.लेकिन तंबाकू छोड़ने के लिए डॉक्टरी परामर्श लेना जरुरी है इसका कारण है कि तंबाकू के धुएं में निकोटीन नामक मजबूत नशे की लत सामग्री होती है .चिकित्सक की देखभाल में तंबाकू के नशे से मुक्ति पाया जा सकता है.
तंबाकू पर नकेल कसने के लिए सरकार ने सिगरेट्स अधिनियम, खाद्य अधिनियम और हाल ही में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (सीओटीपीए) लागू कर रखा है.लेकिन तमाम सरकारी कानून के बाद भी तंबाकू उत्पातों में कमी नहीं हुई है.
तम्बाकू के उत्पादों से दूर रहकर कैंसर से बचा जा सकता है.तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन, प्रचार और बिक्री पर सख्त प्रतिबंध लागू करने की जरुरत है.तंबाकू के उत्पाद धीमा जहर हैं ,उनका उपभोग कर रे धीरे मौत के करीब जाते हैं और इसका पता जब चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी रहती है.