सुप्रीम कोर्ट में बिहार के 3.5 लाख से ज्यादा नियोजित शिक्षकों के मामले में सुनवाई जारी है. बुधवार को केन्द्र की ओर से अटर्नी जनरल के वेणुगोपाल ने फिर से कहा कि केन्द्र सरकार इतनी बड़ी राशि नहीं दे सकती. वे पहले भी ये बातें कोर्ट के सामने रख चुके हैं. कोर्ट ने अटर्नी जनरल से पांच सवाल किए हैं जिनके जवाब के लिए उन्होंने गुरुवार तक का समय लिया है.
सुप्रीम कोर्ट में हुई कार्रवाई की जानकारी देते हुए बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव व पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने बताया कि जस्टिस यूयू ललित ने अटर्नी जनरल से ये पांच सवाल किये हैं :
- क्या कभी बिहार में प्राथमिक या माध्यमिक शिक्षकों के बीच की वेतन विषमता दूर हुई है कि नहीं?
- भारत के जिन राज्यों में सातवां वेतनमान लागू है या जिन राज्यों में इनके कैडर को मिला दिया गया है, उनमें वेतनमान की समानता दी गयी है कि नहीं?
- जिन राज्यों में वेतनमान की समानता है, क्या उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार से कोई सवाल किया है?
- बिहार के शिक्षकों के साथ राज्य या भारत सरकार कब तक यह विषमता कायम रखना चाहती है?
- समानता के अधिकार के लिए संविधान और RTE में जो नियम या अनुच्छेद हैं, उनको लागू करने में क्या कोई संकट हुआ, इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार ने क्या-क्या कदम उठाये हैं?
बहस के दौरान के वेणुगोपाल ने ड्राइवरों से शिक्षकों की तुलना कर दी. उन्होंने किशोर लाल मुखर्जी बनाम भारत सरकार तथा दिल्ली पुलिस बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पटल पर रखकर कहा कि विभिन्न विभागों के विभिन्न ड्राइवर का वेतन अलग-अलग हो सकता है. अलग-अलग कोटि के पुलिस का अलग-अलग वेतन होता है. इसलिए अलग-अलग शिक्षकों का अलग-अलग वेतन हो सकता है. इसपर भी शिक्षक संघ के वकीलों की ओर से आपत्ति जताई गई. वरिष्ठ वकील विजय हंसरिया ने कहा कि सरकार द्वारा ड्राइवर से शिक्षकों की तुलना शर्मनांक है. शिक्षक दिवस के अवसर पर सरकार शिक्षकों को अपमानित कर रही है. सरकार देश को किस दिशा में ले जा रही है?
सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल की बहस समाप्त होने के बाद शिक्षक संघों की ओर से भी वकीलों ने अपना पक्ष रखा. इनमें कपिल सिब्बल, राजीव धवन और प्रशांत भूषण शामिल हैं. राजीव धवन ने संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या करते हुए इस बात पर जोर दिया कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन मिलना ही चाहिए.