नोटबंदी, GST और अब राष्ट्रपति चुनाव. हर बार नीतीश ने सबसे आगे बढ़कर NDA को सपोर्ट किया और विपक्षी एकता की हवा निकाल दी. विपक्षी पार्टियों के भोज को छोड़कर नीतीश कुमार पीएम मोदी के भोज पर चले गए. लालू फैमिली पर ईडी और इनकम टैक्स के छापे पर भी नीतीश ने चुप्पी साध ली और लालू के सपोर्ट में एक शब्द भी नहीं बोले. हालांकि नीतीश के लिए ये कोई नई बात नहीं. NDA में रहते हुए उन्होंने तब राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी को सपोर्ट किया था.
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लेकिन उनकी यही अदाएं अब बिहार में महागठबंधन की सेहत पर भारी पड़ती नजर आ रही हैं. एक ओर तो लालू और नीतीश लगातार ये बयान दे रहे हैं कि बिहार सरकार पर कोई खतरा नहीं है. महागठबंधन में सब ठीक है और राष्ट्रपति चुनाव से उपजे मनमुटाव का बिहार की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन अंदरखाने सब ठीक नजर नहीं आ रहा.
जरा गौर करिए इस तस्वीर पर. शुक्रवार को रमजान के आखिरी जुम्मे पर लालू की इफ्तार पार्टी में शामिल होने पहुंचे थे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. लेकिन पास बैठकर भी दोनो एक-दूसरे से बचते नजर आए. लालू के घर से बाहर आते ही सीएम ने कांग्रेस और लालू को जमकर खरी-खोटी भी सुना दी.
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CM नीतीश ने 2 जुलाई और 9 जुलाई को जदयू की मीटिंग बुलाई है. चर्चा है कि इन मीटिंग्स में किसी बड़ी बात पर चर्चा होगी. नीतीश कुमार पहले भी कई मौकों पर लोगों को चौंका चुके हैं. मसलन गैसल रेल हादसे पर इस्तीफा देकर, 2013 में बीजेपी से रिश्ता तोड़कर, अपने धुर विरोधी लालू के साथ सरकार बनाकर, 2014 के मई में अचानक इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को सीएम बनाकर वे अपने विरोधियों को अपने स्वभाव से परिचय करा चुके हैं.
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर लालू और कांग्रेस से उनके रिश्ते वैसे भी कुछ खास अच्छे नहीं चल रहे. ऐसे में अब एक बार फिर ये चर्चा जोरों पर है कि क्या वे लालू और कांग्रेस का साथ छोड़कर फिर से NDA में शामिल होंगे. हालांकि इस बार वे लालू से रिश्ता तोड़ने की पहल खुद नहीं करना चाहते. इसीलिए तो लालू पर लगातार सुशील मोदी के आरोपों पर के बाद भी उन्होंने एक बार भी लालू के फेवर में या इससे जुड़ा कोई बयान नहीं दिया.