बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना मागी पड़ी है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ठोस और तरल अपशिष्ट के प्रबंधन में फेल होने की वजह से बिहार सरकार पर 4000 करोड़ पर रूपए क्षतिपूर्ति शुल्क लगाया है और इसे पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तहत जमा करने का आदेश दिया गया है.
एनजीटी ने बिहार सरकार को 2 महीने के भीतर एक रिंग फेस खाते में ₹4000 जमा कराने का निर्देश दिया है. इस राशि से बिहार सरकार को ठोस और तरल प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक करना होगा. इस रिंग फेस खाते का संचालन सिर्फ चीफ सेक्रेट्री के निर्देश के मुताबिक कचरा प्रबंधन के लिए होगा.
इस राशि का इस्तेमाल ठोस कचरा निस्तारण सुविधाओं की स्थापना, पुराने कचरे के उपचार और सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्रों के निर्माण के लिए किया जाएगा. एनजीटी ने उल्लेख किया कि बिहार पर 11.74 लाख मीट्रिक टन से अधिक पुराने कचरे के साथ प्रति दिन निकलने वाले 4,072 मीट्रिक टन अशोधित शहरी कचरे के प्रबंधन का बोझ है. NGT ने कहा कि बिहार में तरल अपशिष्ट उत्पादन और उपचार में 219.3 करोड़ लीटर प्रति दिन का अंतर है. एनजीटी ने स्पष्ट लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के पुराने आदेश की अवहेलना की वजह से बिहार सरकार पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाया जा रहा है. हर 6 महीने पर बिहार के चीफ सेक्रेटरी को बिहार में कचरा प्रबंधन के तहत हो रहे कार्यों की रिपोर्ट एनजीटी को देनी होगी. इधर 1 जून 2023 से हर महीने मासिक रिव्यू की राज्य स्तरीय मॉनिटरिंग चीफ सेक्रेटरी जबकि डीएम जिला स्तरीय मॉनिटरिंग करेंगे.
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