राखीगढ़ी में मिले हड़प्पा संस्कृति के नए साक्ष्य
पांच हजार वर्ष पुराने महिलाओं के कंकाल मिले
स्टीटाइट मुहर, टेराकोटा चूड़ियां, हाथीदांत के आभूषण
पत्थर के मनकों की माला, गोमेद और इंद्रगोप जैसे रत्नों से बनी वस्तुएं
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम को खुदाई के दौरान कलाकृतियों और पुरावशेषों में स्टीटाइट मुहर, टेराकोटा चूड़ियां, हाथीदांत के आभूषण और हड़प्पा लिपि के अलावा अधपकी मिट्टी की मुहरें मिली हैं. हरियाणा में हड़प्पा कालीन शहरी केंद्र राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान इसके साक्ष्य मिले हैं. हड़प्पा काल में भी रत्न जड़े आभूषण पहनने का चलन था.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम को खुदाई के दौरान कलाकृतियों और पुरावशेषों में स्टीटाइट मुहर, टेराकोटा चूड़ियां, हाथीदांत के आभूषण और हड़प्पा लिपि के अलावा अधपकी मिट्टी की मुहरें मिली हैं. टीम में शामिल एमएस विश्वविद्यालय, बड़ौदा में पीएचडी स्कॉलर दिशा अहलूवालिया ने कहा कि टेराकोटा और स्टीटाइट से बनी कुत्ते, बैल जैसे जानवरों की मूर्तियां, तांबे की वस्तुएं, बड़ी संख्या में स्टीटाइट (सलखड़ी) के मोती, पत्थर के मनकों की माला, गोमेद और इंद्रगोप जैसे रत्नों से बनी वस्तुएं मिली हैं. एएसआई के संयुक्त महानिदेशक एस.के. मंजुल ने कहा, ‘हिसार जिले में दो गांवों (राखी खास और राखी शाहपुर) के आसपास बिखरे हुए सात टीले (आरजीआर 1 से आरजीआर 7) राखीगढ़ी पुरातात्विक स्थल का हिस्सा हैं.
आरजीआर 7 हड़प्पा काल का वह स्थान है जहां शवों का अंतिम संस्कार किया जाता था, जब यह एक सुव्यवस्थित शहर था. हमारी टीम ने दो महीने पहले दो कंकालों का पता लगाया था. विशेषज्ञों द्वारा लगभग दो सप्ताह पहले डीएनए नमूने एकत्र किए गए.’ फिलहाल आरजीआर 1, आरजीआर 3 और आरजीआर 7 में जांच की जा रही है. मंजुल ने कहा कि वह राखीगढ़ी स्थल पर उत्खनन दल का नेतृत्व 24 फरवरी, 2022 से कर रहे हैं.जांच रिपोर्ट से दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम स्थित राखीगढ़ी क्षेत्र में हजारों साल पहले रहने वाले लोगों की वंश परंपरा (पूर्वजों) और भोजन की आदतों के बारे में जानकारी मिल सकती है. मंजुल ने कहा कि कंकालों के नमूनों की प्रारंभिक जांच और वैज्ञानिक तुलना का काम बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज, लखनऊ करेगा.
दो महिलाओं के कंकाल कुछ महीने पहले टीला संख्या 7 (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा आरजीआर 7 नामित) में पाए गए थे. माना जाता है कि यह लगभग 5,000 वर्ष पुराना है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों ने बताया कि एक गड्ढे में कंकाल के बगल में दबे हुए बर्तन और अन्य कलाकृतियां मिलीं, जो हड़प्पा सभ्यता में अंतिम संस्कार संबंधी कर्मकांड का हिस्सा थीं.
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