तलाक विरोधी विधेयक कई प्रकार के अन्याय पर आधारित
लोकसभा से पारित तलाक विरोधी विधेयक इस्लामी शरीयत के खिलाफ – अनिसुर्रहमान कासमी
फुलवारी शरीफ | बिहार झारखंड उड़ीसा के मुसलमानों की सबसे बड़ी एदारा इमारत शरिया के नाजिम (सचिव) मौलाना अनिसुर्रहमान कासमी ने लोकसभा से पारित तलाक विरोधी विधेयक को इस्लामी शरीयत के खिलाफ बताते हए कहा है की यह तलाक विरोधी विधेयक कई प्रकार के अन्याय पर आधारित है. उन्होंने कहा कि यह महसूस होता है कि यह बिल मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए नहीं बल्कि उन पर और अधिक ज़ुल्म ढाने के लिए और मुस्लिम मर्दों को अधिक-से-अधिक जेल की सलाखों के पीछे भेजने के मकसद से पास किया गया है. उन्होंने आगे कहा की इमारत शरिया इस बिल का विरोध करती है और इस मामले में ऑल इंडिया मूलसीं पर्सनल लॉ बोर्ड के स्टैंड की हिमायत करती है. उन्होंने कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों से मांग करते हुए कहा कि वह राज्य सभा में उस बिल का विरोध करें और उस को पास न होने दें ताकि मुल्क की सेकुलर छवि और अल्पसंख्यकों को संविधान में दिये गए मूल अधिकारों की रक्षा हो सके. उन्होंने कहा की कम-से-कम इस बिल को स्टैंडिंग कमिटी को सुपुर्द करने पर ज़ोर दें ताकि इस में कुछ संशोधन किया जा सके. सज़ा के प्रावधान को समाप्त किया जाए और कंपनसेशन को रखा जाए और अगर सज़ा देनी ही हो तो तलाक को लागू किया जाए. इमारत शरिया के सचिव मौलाना अनिसुर्रहमान कासमी ने उक्त बातें लोक सभा से पारित होने वाले तलाक विरोधी विधेयक के विरोध में अपनी प्रतिकृया व्यक्त करते हुए कहा है.
उन्होंने आगे कहा की तलाक विरोधी विधेयक, जिसको मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरेज) बिल 2017 के नाम से पार्लियामेंट में भारत सरकार के कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने लोक सभा में प्रसतूत किया है, जो विपक्ष के विरोध के बावाजूद बिना किसी बदलाव के बीजेपी ने संख्याशक्ति के आधार पर लोक सभा से पास करा लिया. उन्होंने कहा कि अब उस बिल को मंजूरी के लिए राज्य सभा में प्रस्तूत किया जा रहा है. यह बिल इस्लामी शरीयत के विरुद्ध है और मुसलमानों के लिए कबूल किए जाने योग्य नहीं है. इसके साथ-साथ यह बिल कई प्रकार की त्रुटियों और अन्याय पर आधारित है. इससे संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का हनन होता है. सचिव ने आगे कहा कि यह बिल उच्चतम न्यायालय के आदेश एवं दिशानिर्देश के भी विरुद्ध है और कई प्रकार के कोंस्प्रेसी का पुलिंदा है. एक ओर तो उस में तीन तलाक को अवैध एवं बेअसर बतया गया है और दूसरी ओर उस पर तीन साल की सज़ा भी दी जा रही है. यानी कि तलाक पड़ी ही नहीं. पत्नी उसके निकाह में अभी तक बाक़ी ही है लेकिन पति को तीन साल के लिए जेल भी हो रही है. कोई भी सही अक्ल रखने वाला व्यक्ति अगर गैरजानिबदार होकर इस बिल को देखेगा तो उस को यह बिल गलतियों का पूलिंदा नज़र आएगा. इस बिल में सम्मिलित धाराएँ ऐसी हैं जो तलाक-ए-बाइन और खुला इत्यादि को भी शामिल हैं यानि तलाक की कोई भी सूरत हो जो की गैर रजई हो, वह इस बिल के दायरे में आएगी और काबिल-ए-सज़ा जुर्म समझी जाएगी. यह बिल किसी भी स्थिति में मुसलमानों के लिए कबूल करने के लायक नहीं है ।
(अजित कुमार की रिपोर्ट)