सपना देख कैसे पूरा करते हैं मुरली ने दिखाया दुनिया को

“शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” पुस्तक से आए चर्चा में  

नाटक “बाथे में बिदेसिया” के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर हुए चर्चित




बहुमूखी प्रतिभा का धनी हैं मुरली प्रसाद श्रीवास्तव  

टीचर अक्सर व्यंग्य करते रहते थे कि ये लोग भी कुछ नहीं कर पाएंग

आने वाली पुस्तक है डेली पैसेंजर’, ‘पारंपरिक लोकगीतों का संग्रह’ ‘मी-टू’

जल्द पढ़ने को मिलेगा भोजपुरी में ‘कुरान’ का अनुवाद

बिस्मिल्लाह खां के नाम डुमरांव में ‘बिस्मिल्लाह खां यूनिवर्सिटी’ की स्थापना

जिंदगी में हर इंसान कोई न कोई सपना जरुर पालता है। ये बात अलग है कि किसी के सपने पर पूरे हो जाते हैं और किसी के सपने किसी वजह से अधूर रह जाते हैं। मन को समझाने के लिए बहुत सारी बातें कही जाती हैं। मगर दिल को जो मंजूर होता है वही करना चाहता है। मुरली मनोहर श्रीवास्तव एक ऐसे ही शख्सियत का नाम है जिसने वक्त के साथ खुद को ढालकर बक्सर जिले के डुमरांव से निकलकर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए। एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे मुरली मनोहर श्रीवास्तव अपने पिता डॉ.शशि भूषण श्रीवास्तव के सानिध्य में आकर नाटक से जुड़े। नाटक करते-करते मुरली को कुछ नया करने की सुझ आयी और आगे इन्होंने भिखारी ठाकुर के नाटक ‘बिदेसिया’ को “बाथे में बिदेसिया” के रुप में ढालकर एक नया प्रयोग किया। इस नाटक ने इतनी उपलब्धि पायी की वर्ष 2003 में भारत रंग महोत्सव में 84 नाटकों में अपना स्थान बनाने में अव्वल साबित हुई।

पुस्तक उस्ताद विस्मिल्ला खान के विमोचन के अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मुरली

नाटकों का दौर जारी था। रोज अपने बड़े भाई मनोज कुमार श्रीवास्तव के साथ रिहर्सल करने के लिए जाना और देर रात घर लौटना, जैसे नियति में शामिल हो गई थी। उस दौर की बात मुझे याद है कि मेरे ही मुहल्ले के पारचुन की दुकान चलाने वाले बैद्यनाथ प्रसाद ने मुरली के पिता जी से कहा कि आपके बच्चे भी केवल नाटक ही करते हैं। इस बात की तो उन्होंने चुगली कर दी। घर पर मां से बात करते हुए बातों की जानकारी मिल गई। इसमें इनके पिता ने कहा कि एक बात तो है न कि कभी किसी चौक चौराहों पर तो नहीं बैठते, बल्कि सरस्वती की आराधना में अपना समय व्यतित करते हैं। इसी प्रकार में मुरली बताते हैं कि इनके बचपन के टीचर यूसूफ अंसारी, जो कि इनके चाचा के मित्र भी हैं अक्सर व्यंग्य करते रहते थे कि ये लोग भी कुछ नहीं कर पाएंगे। मगर उनकी बातें औज मौन हो गई हैं।

मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने अपना कदम बढ़ाया और वर्ष 2004 में दिल्ली प्रभात प्रकाशन समेत कई प्रकाशन भवनों की दौड़ लगाया, ताकि इनकी पुस्तक “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” छप सके। मगर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। वाणी प्रकाशन के अरुण महेश्वरी ने तो यहां तक कह दिया कि जाओ, कहीं-कहीं से यादकर के लिए दिया और चले आए छपवाने के लिए। वर्ष 2004 में प्रभात प्रकाशन ने अपने पास बहुत पुस्तक छपने की बात कहकर टाल गया। जीविकोपार्जन के लिए मुरली अखबार में काम करते रहे। इसी दौरान वर्ष 2008 में भोजपुरी चैनल ‘महुआ’ से जुड़ने के लिए न्यूज24 के सौरभ जी और आजतक के बिहार हेड सुजीत झा ने मौका दिया। फिर क्या मुरली ने अपने मेहनत के बूते पत्रकारिता में अखबार के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी स्थापित कर दिया।

लेकिन मुरली ने हिम्मत नहीं हारी और वर्ष 2009 में उसी प्रभात प्रकाशन ने मुरली मनोहर श्रीवास्तव की पुस्तक  “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” को प्रकाशित कर इनके ऊपर छाए काले बादल को छांट दिया। जिसका लोकार्पण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, फिल्म निर्माता प्रकाश झा, राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने 15 नंवबर 2009 को लोकार्पित किया था। मुरली को कौन क्या कहता है इसकी परवाह नहीं की और बाबू वीर कुंवर सिंह के ऊपर ‘वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा’ पुस्तक की रचना तो की ही ‘कुंवर सिंह की प्रेमकथा’ नाटक लिख डाली, जिसे पटना के रामकुमार मोनार्क ने वर्ष 2018 में प्रेमचंद रंगशाला में प्रस्तुति कर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। नाटक प्रेमियों ने कहा कि 40 वर्षों के मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने लिखकर अमिट छाप छोड़ी है।

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

यह दौर मुरली का यहीं नहीं थमा बल्कि लगातार दूरदर्शन के लिए डॉक्यूमेंट्री लिखने के अलावे इनकी गजल संग्रह कोरोना काल में ‘ज़ज्बात’ छपकर आयी। मुरली ने आगे बताते हुए कहा कि इनकी आने वाली पुस्तकों में ‘लॉकडाउन’, वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा है। इसके अलावे में उद्योगपति सह वरिष्ठ पत्रकार आरके सिन्हा के जीवन पर “आर0के0सिन्हा एक खुली किताब”, ‘डेली पैसेंजर’, ‘पारंपरिक लोकगीतों का संग्रह’ ‘मी-टू’ तथा भोजपुरी में ‘कुरान’ का अनुवाद कर रहे हैं।

मुरली को बहुमूखी प्रतिभा का धनी कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यों कि मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के ऊपर डॉक्यूमेंट्री बनायी जिसे बिहार सरकार द्वारा बनवायी गई थी। शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ट्रस्ट का वर्ष 2013 में स्थापना कि ताकि बिस्मिल्लाह खां के नाम पर उनके पैतृक गांव डुमरांव में ‘बिस्मिल्लाह खां यूनिवर्सिटी’ की स्थापना करने की घोषणा क्या कि लोगों ने कहना शुरु कर दिया। एक अदना से पत्रकार और लेखक चले हैं यूनिवर्सिटी का निर्माण करने। खैर, लोगों का कहना भी लाजिमी है, दुनिया हमेशा से रिजल्ट मांगती है। मुरली मनोहर श्रीवास्तव एक बेहतर उदघोषक, लेखक के साथ-साथ रंगकर्मी भी हैं। अपने गांव अपनी मिट्टी से लगाव रखने वाले मृदुलभाषी, मिलनसार मुरली अपनी मेहनत और लगन के बूते एक बड़ा नाम हो चुके हैं। जो भी इनसे मिलता है बस इनका होकर रह जाता है।

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By pnc

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