देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव को केन्द्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. कई राज्यों में मैट्रिक परीक्षा के खराब रिजल्ट को देखते हुए लगातार ये मांग हो रही थी कि प्राइमरी और मिडिल क्लासेज में फेल नहीं करने के सिस्टम में बदलाव जरूरी है. लोगों का कहना था कि इसी सिस्टम के कारण बच्चे पढ़ाई कम कर रहे हैं जिसके कारण उनका मैट्रिक का रिजल्ट खराब हो रहा है.
बता दें कि अभी तक ये व्यवस्था थी कि 5वीं से 8वीं के छात्रों को खराब मार्क्स आने पर भी फेल नहीं करना है और उन्हें अगले क्लास में प्रमोट कर देना है. जिसके कारण बच्चे अपनी पढ़ाई का लेवल बेहतर नहीं कर पा रहे थे. जिसका सीधा असर उनकी आगे की पढ़ाई पर पड़ रहा था. मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पहले कहा था कि 25 राज्य पहले ही इस कदम के लिए अपनी सहमति दे चुके हैं. केंद्रीय मंत्री ने कहा था कि कक्षा एक से 8वीं तक छात्रों को नहीं रोकने की नीति से वे प्रभावित हुए हैं. शिक्षा राजनीतिक एजेंडा नहीं है. यह एक राष्ट्रीय एजेंडा है. सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए शिक्षा शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए.
इसलिए अब ऐसे बच्चे जो ये सोचकर पढ़ाई पर कम ध्यान दे रहे हैं कि पासिंग मार्क्स न आने के बावजूद उन्हें अगली कक्षा में बैठने का मौका मिल ही जाएगा, उन्हें अपनी सोच बदल लेनी होगी. बुधवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में स्कूलों में फेल नहीं करने की नीति को मोदी सरकार ने खत्म करने की मंजूरी दे दी.
इसके बाद अब राइट टू एजुकेशन( RTE) विधेयक में संशोधन किया जाएगा. इस संशोधन के बाद अब राज्यों को अनुमति दी जाएगी कि 5वीं-8वीं क्लास की परीक्षा में असफल होने पर वे बच्चों को रोक सकें. हालांकि छात्रों को परीक्षा के माध्यम से दूसरा मौका दिया जाएगा. संसद में पारित किए जाने वाले प्रस्तावित विधेयक में, राज्यों को मार्च में 8वीं तक के छात्रों की परीक्षा कराने का अधिकार दिया गया है, इसमें फेल होने पर छात्रों को मई में परीक्षा में शामिल होने का एक आखिरी मौका दिया जाएगा. अगर छात्र दोनों प्रयासों में फेल रहते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक लिया जाएगा.