आरा. भोजपुर की मिट्टी और मॉरिशस की भूमि में एक अटूट सम्बन्ध है. 250 साल पहले भोजपुरी प्रदेश से गये ‘गिरमिटिया’ मजदूरों ने अपने कठिन श्रम और संघर्ष से मॉरिशस में ‘स्वराज’ की लड़ाई लड़ने के बाद अब इस छोटे से टापू देश को ‘सुराज’ से ‘स्वर्ग’ में तब्दील कर दिया है.
पर, मॉरिशस के आप्रवासी भारतवंशी आज भी अपनी संस्कृति को नहीं भूले, वहाँ तो इन्होंने अपनी परम्पराओं को जीवित रखा ही है, वहीँ अपने पूर्वजों की मिट्टी की महक आज भी उन्हें भारत वापस खींच लाती है.
आप्रवासी भारतीय पूर्वजों की चौथी पीढ़ी हैं रामप्रसन्न
ऐसे ही एक उदाहरण हैं अशोक कुमार रामप्रसन्न, जो मॉरिशस के हिंदी साहित्यकार, इतिहासकार हैं. हिंदी अध्यापन से सेवा निवृत्ति के बाद भारत यात्रा पर आजकल आये हुए रामप्रसन्न जी अपनी जड़ों को तलाशते हुए भोजपुर जिले में भी पहुंचे.
अशोक जी के परदादा रामपड़ोसन जी महज 22 साल की उम्र में अपनी पत्नी रधिया के साथ 1865 में कलकत्ता से जहाज के रास्ते मॉरिशस एक मजदूर की तरह पहुंचे. अशोक जी अपने भारतवंशी पूर्वजों की चौथी पीढ़ी हैं और तीर्थयात्रा के बहाने अपने पूर्वजों के गाँव को तलाश रहे हैं.
पैतृक गाँव की कर रहे तलाश
पटना नाउ से विशेष बातचीत में रामप्रसन्न जी बताते हैं कि वहाँ के रजिस्टर में परदादा का गाँव सदलपुर, जिला गोंडा और परदादी का गाँव भोजपुरिया फतेपुर है जो संभवतः भोजपुर में है. पर उन्हें अभी तक असफलता ही हाथ लगी है. भावुक रामप्रसन्न जी कहते हैं “एगो इच्छा रहल ह आपन पुरखा पुरनिया के गाँव घुमे के, आ लागता कि जईसे हम आपन घरे वापस लवट गईनी”. भाषा-संस्कृति में इतनी समानता देख कर खुश अशोक जी को मलाल भी है कि वो अपने परदादा का गाँव अभी तक नहीं देख सके, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है.
‘भोजपुरिया संस्कारों को बचाए रखा है हमने’
आगे रामप्रसन्न जी बताते हैं कि “मॉरिशस में हमने अपने रीति-रिवाजों और संस्कारों को बचा कर रखा है, शादी-ब्याह में परिछावन से लेकर विदाई तक के संस्कारों में भोजपुरी गीत ही गाये जाते हैं, पर ग्लोबलाइजेशन और आधुनिक चकाचौंध में अब अंग्रेजी और क्रियोल भाषा तेज़ी से अपनी जड़ें फैला रही है. आगे की पीढ़ी भोजपुरिया संस्कृति को कैसे बचा कर रख पाएगी, इस पर प्रश्नचिन्ह है”. मॉरिशस और बिहार में भोजपुरी की दशा-दिशा की तुलना करते हुए अशोक जी कहते हैं कि वहाँ तो पाठ्यक्रम में भोजपुरी को मान्यता भी है पर विद्यार्थी थोड़े कम हैं, हालाँकि वहाँ की सरकार भोजपुरी के प्रति काफी गंभीर और सकारात्मक है. यहाँ भोजपुरी लोगों को अपनी भाषा-संस्कृति पर स्वाभिमान होना चाहिए वरना कोई भी सरकार इसे उपेक्षित ही रखेगी.
‘गीतों में अश्लीलता ना के बराबर’
मॉरिशस में भोजपुरी गीतों को काफी लोकप्रिय बताते हुये रामप्रसन्न जी कहते हैं कि ख़ुशी की बात है कि वहाँ गीतों में अश्लीलता ना के बराबर है क्यूंकि सुनने वाले जागरूक हैं. आगे साहित्य पर चर्चा करते हुए वो कहते हैं “भोजपुरी में अकादमिक किताबें तो बहुत हैं, अब साहित्य भी लिखा जाने लगा है, लीलाधर जी का काव्य-संग्रह ‘पाथर-रेख’ अभी हाल में छपा है और लोकप्रिय भी हुआ है.”
‘महात्मा गाँधी के दैवी योग से मॉरिशस आने ने बदल दी किस्मत‘
पेशे से हिंदी अध्यापक रहे रामप्रसन्न जी की मॉरिशस के इतिहास पर भी अच्छी पकड़ है और कई जगह ऐसे रेडियो और टी वी कार्यक्रमों में वे शिरकत कर चुके हैं. चर्चा करने पर कहते हैं “कई लोगों को मालूम नहीं होगा कि मॉरिशस के आर्थिक-सामाजिक सुधार और स्वराज्य आन्दोलन में महात्मा गाँधी का योगदान रहा है. जब गाँधी ने भारत में सत्याग्रह नहीं शुरू किया था उसके पहले ही दक्षिण अफ्रीका से गुजरात यात्रा के दौरान दैवी योग से वे मॉरिशस 18 से 20 दिनों के लिए आये और श्रमिकों की दुःख भरी हालत देखकर गुजराती वकील मणिलाल मगनलाल को मॉरिशस सुधार कार्य और सेवा के लिए भेजा. बाद में चिंतामणि भारद्वाज, पंडित आत्माराम विश्वनाथ भी भारत से यहाँ आये और आन्दोलन को गति दी, जिसकी वजह से मजदूरों के शिक्षा और आर्थिक स्तर में सुधार तो हुआ ही उन्हें वोट देने का भी अधिकार मिल गया”. अशोक जी बताते हैं कि गाँधीजी ने जिस आन्दोलन का सूत्रपात किया उसी की परिणति थी रामगुलाम जी के नेतृत्व में प्रथम स्वतंत्र सरकार का बनना. तब से अब तक मॉरिशस ने जो भी तरक्की की है उसमें भारत का योगदान अमूल्य रहा है. अशोक जी भोजपुर के जगदीशपुर के पास रामगुलाम के गाँव हरिगाँव भी गये थे और वहाँ और बेहतर सुविधाएँ होने की बात की, क्यूंकि यह जगह पूरे मॉरिशस के लोगों के लिए तीर्थ की तरह है.
आरा से रवि प्रकाश सूरज की रिपोर्ट