पुण्यतिथि पर विशेष
आरा के रहनिहार आ भोजपुरी के सुपरहिट गीतकार लक्ष्मण शाहाबादी
आज पुण्यतिथि पर भोजपुरी के लोग नमन करत बा
भोजपुरी में पढ़ी वरिष्ठ पत्रकार देव कुमार पुखराज के आलेख
भोजपुरी फिल्म के अमर गीतकार लक्ष्मण शाहाबादी जी के आज पुण्यतिथि ह. आज के दिन 1991 में उहां के अनंत यात्रा पर निकल गइल रहीं. लक्ष्मण शाहाबादी जी के जनम आरा के शिवगंज मोहल्ला में 16 मई, 1938 में भइल रहे. पिता के नाम रामलाला प्रसाद रहे, जे सितार वादक रहीं. शाहाबादी जी के संगीत विरासत में मिलल रहे. इहां के दू गो शादी भईल रहे. पहिलका पत्नी से राकेश शाहाबादी और रेणु सिन्हा के जन्म भइल. दोसर शादी चांदी में भईल, जेकरा से तीन गो लइका भइल लोग.
बचपन से रहे गीत संगीत से वास्ता-
लक्ष्मण शाहाबादी जी के गीत- संगीत से वास्ता बचपने से रहे. पहिला गीत रहे- दुनिया में जिए खाती मरे के परी. एह गीत में लोककला के प्रति अजीब सौदर्यबोध रहे. एही से इनकर गीत आरा से निकल के बम्बई तक पहुंचल. सबसे पहिले उनका के एचएमवी कंपनी से ऑफर मिलल. पहिला गीत आइल जेकरा के गवल मोहम्मद रफी. बिहार से पहिले पहिले हिन्दी फिल्म बनल- कल हमारा है. ओकर गीत लक्ष्मण शाहाबादी जी लिखले. मोहम्मद रफी, मन्ना डे आदि गवले. फेर फिल्म घुंघट के गीत लिखनी.
भोजपुरी फिल्म के इतिहास में 1981 में सुपरहिट फिल्म आइल- धरती मईया..ओकर ख्याति देशभर में फैल गईल. ओकर फेमस गीत रहे- जल्दी- जल्दी चल रे कंहरा सुरुज डूबे रे नदिया..पहिला बार चित्रगुप्त के संगीत में भोजपुरी के बेहतरीन गीतन- के केहू लुटेरा केहू चोर हो जाला, आवेला जवानी बड़ा शोर हो जाला घूम मचा देलक. साल 1983 में फिल्म- गंगा किनारे मोरा गांव के गीत भी शाहाबादी जी लिखनी..कहे के त सभे केहू आपन.आपन कहाए वाला के बा…भीजें से चुनरी, भींजे रे चोली, भींजे बदनवा ना, तनि ये सा हमके ओढ़ाव चदरिया, बरसेला सवनवा ना, मेला में सईंयां भुलाइल हमार..हमका करीं..फिल्म के टाइटल गीत रहे…गंगा किनारे मोरा गांव हो ..घरे पहुंचा द देवी मइयां. एगो आउर गीत रहे- जइसे रोज आवेलू तू टेर सुनिके…अइह रे निंदिया निंदर बन के, ये गीत के लोरी गीत के रुप में आजतक जलवा बा..फिल्म – भैया दूज के गीत भी गजब हीट भइल..गीत -कहवां गइले लरिकईयां हो, तनी हमके बता द…ये ही फागुन में कर द विवाह बुढ़उ. इ अइसन समय रहे कि उनकर गीतन के महक से केहूं अछूता ना रहल.
1986 में दुल्हा गंगा पार के फिल्म के गीत, संगीत और संवाद सब लक्ष्मण शाहाबादी जी लिखनी..टाइटल गीत धूम मचा देलक–काहे जिया दुखवल..चल दिहल मोहे बिसार के..एतना बता द ये दुल्हा गंगा पार के. कहल जा सकल ला कि उनकर गीत भोजपुरी के जान बा..प्राण बा..उ भोजपुरी के अइसन नगीना रहन जेकरा में हिन्दी के चित्रगुप्त आउर शैलेन्द्र के आत्मा बसत रहे. चित्रगुप्त जी के साथे इनकर जोड़ी गरदा मचा देलक..भोजपुरी सिनेमा के असली रुप देखे के होके त 1980 से 1990 के सिनेमा देखीं. ओ भोजपुरी सिनेमा के स्वर्ण युग कहल जा सकेला.जेकरा के लक्ष्मण शाहाबादी गढ़ले..तब इ सब फिल्म दिल्ली से देहात तक आउर बॉम्बे से बक्सर तक देखल, सुनल जात रहे..
लक्ष्मण शाहाबादी जी हिन्दी में भी गीत लिखनी हिन्दी में भी. लेकिन असरदार भइली स भोजपुरिये गीत..इ भाषा के ताकत रहे. जवना में प्राण फूंकली स गीत. अइसन समय में जब भोजपुरी में अश्लीलता के चरचा गरम बा..ओह समय में लक्ष्मण शाहाबादी के गीत सुनके समझल जा सकेला कि भोजपुरी भाषा का ह..एकर गीत के स्तर का रहे..तब उ सब गीत सीधे दिल में उतर जात रही स.तबे त भोजपुरी के अभियानी साहित्यकार पंकज भारद्वाज जी कहिला कि भोजपुरी में अश्लीलता नाम के चीज रहबे ना कइलस. जहां अश्लीलता बा उ भोजपुरी हइले ना ह. बाहर से घुसावल जाता..गैर भोजपुरी भाषा- भाषी ओइसन गीत ना लिख सकेला. उहे लिखी.जे भोजपुरी जिये ला. आज पुण्यतिथि प भोजपुरी के अंगना के दिया जलावे ओला अमर गायक के बेर बेर नमन. उनकर जरावल दिआ के रौशनी में भोजपुरी चमकत रही.
हिंदी में पढ़े —https://www.patnanow.com/laxman-shahabadi-death-anniversary19-19/
पुण्यतिथि- 19 दिसम्बर पर patna now का विशेष
आप भूल पाएं है क्या इन गीतों को
कहे के त सभे केहू आपन, आपन कहावे वाला के बा
-मों रफी द्वरा गाया गया गीत – जल्दी जल्दी चल रे कहरा सुरुज डूबे रे नदिया
-किशोर कुमार – जाने कईसन जादू कईलू दिह्लू मंतर मार, हम त हो गईनी तोहार ये सांवर गोरिया
-महेंद्र कपूर का गाया गीत –हाथी ना घोड़ा ना कवनो सवारी,पैदल हम आइब राउर दुआरी और तोहरे सपनवा में डुबल रही ले
-अलका याग्निक –स्वागत में गारी सुनाई जा चल सखी मिल के ,काहे जिया दुखवल चल दिहल मंतर मार के ..अतना बदा ये दूल्हा गंगा पार के
एक ऐसे गीतकार, संगीतकार,संवाद लेखक निर्माता और निर्देशक जिन्होंने भोजपुरी सिनेमा में लोकगीतों और लोकधुनों को जो ख्याति दिलाई उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता. 40 से अधिक फिल्मों में काम करने वाले स्व. लक्ष्मण शाहाबादी को आज भोजपुरी से जुड़े तमाम दिग्गज जानते हैं.उनका नाम भी कुछ यूँ पड़ा. लक्ष्मण प्रसाद श्रीवास्तव से लक्ष्मण शाहाबादी नाम रखने पीछे पं जवाहर लाल नेहरु थे जिन्होंने कहा कि शाहाबाद के रहनेवाले हो शाहाबादी रखों और बस लक्ष्मण शाहाबादी हो गए.
बचपन से ही गीत-संगीत में रूचि रखने वाले लक्ष्मण प्रसाद श्रीवास्तव उर्फ़ झुनन का जन्म भी एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ पहले से ही संगीत की देवी विराजमान थी.उनके पिता रामलाला प्रसाद एक कुशल सितार वादक थे.लक्ष्मण शाहाबादी को बचपन से ही संगीत सीखने और लिखने का शौक था. उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा गुरू जंगली मल्लिक से ग्रहण की. उस दौर में कुछ गिने चुने लोग ही शास्त्रीय संगीत सीखते थे.स्कूल और कॉलेज के दिनों में सांस्कृतिक आयोजनों में बादः चढ़ कर हिस्सा लेते और अपने लिखे गीत भी सुनाते.बचपन में घर में ही शास्त्रीय संगीत का माहौल मिला और भोजपुर में रहने के कारण वहां की लोक जीवन में रचा बसा संगीत और गीत .उन्होंने अपने अन्दर के कलाकार को फलने फूलने दिया. कोई ऐसा वाद्ययंत्र नहीं था जिसके वादन में उनकी पकड़ नहीं थी .हारमोनियम ,तबला, सितार वादन में उनकी रूचि भी बहुत थी. लगभग १३-14 साल तक वे विभिन्न आयोजनों में स्टेज शो करते रहे.उनके बारे में उनके मित्र बताते है कि वे बड़े ही संवेदनशील और भावुक इंसान थे.और लोगों को प्यार और सम्मान देना उनके तह्जीब में शामिल था और यही कारण था की वे लोगों में जल्द ही पोपुलर हो गए. उनके गाये गीत लिखे गीत बिहार यूपी कोलकाता और मुंबई में लोकप्रिय होने लगे.
पहली बार एचएमवी म्यूजिक कम्पनी से उनके गीत आवाज के बेताज बादशाह मो रफी साहब के आवाज में रिकॉर्ड हुए,गाने के बोल थे ‘कह के भी न आए मुलाक़ात को,चाँद तारे हँसे खूब कल रात को’ आइये सुनिये उस गीत को क्लिक करें। ..
यह गीत इतना हिट रहा कि लोगों की जबान पर चढ़ गया आज भी लोग उनके गीतों को गुनगुनाते हैं. हिंदी,उर्दू और भोजपुरी पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी. भोजपुरी से उन्हें बेहद लगाव था उनके गीत फिल्मों में आने से पहले ही लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके थे. कहे के त सभे केहू आपन ,आपन कहावे वाल के बा’, कहंवा के दीयवा,जब से मरलू नजरिया के बान,सीसा के महलिया हमरी,दियरा के बाती अईसन जरे के पड़ी जैसे कई गीत स्टेज शो के दौरान ही चर्चित और लोकप्रिय हो गए थे. उसके बाद शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र जिसमे हिन्दी और भोजपुरी फ़िल्में थी .
उन्होंने फिल्म बड़का भैया,पिया निरमोहिया,गंगा सरजू और बिहार से बनने वाली पहली हिंदी फिल्म कल हमारा है में गीत लिखे जिसे देश और दुनिया में लोगों ने लक्ष्मण शाहाबादी को बतौर गीतकार जानने लगे. उन्होंने उस दौर के सभी प्रमुख गायकों में मो. रफी,किशोर कुमार, आशा भोंसले,उषा मंगेशकर,महेंद्र कपूर,सुरेश वाडेकर,अलका याज्ञनिक, उदित नारायण, मो अजीज ,शब्बीर कुमार, कयूम अहमद ,चंद्रानी मुखर्जी से गीत गवाये.फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने उन्हें भोजपुरी का शैलेन्द्र और नौशाद की उपाधि उनकी रचनात्मकता को देखते हुए दी.
उन्होंने संगीतकार चित्रगुप्त के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखा और फिल्मों में कथानक के हिसाब से गीत लिखने के साथ वे सम्वाद भी लिखने लगे. धरती मईया,गंगा किनारे मोरा गाँव,भैया दूज,गंगा आबाद रखिह सजनवा के, दूल्हा गंगा पार के,दगाबाज बलमा ,हमार दूल्हा ,राम जइसन भैया हमार, छोटकी बहु,गंगा ज्वाला,बेटी उधार के, नयनवा के बाण,घूँघट हिंदी फिल्म ,कसम गंगा जल के फिल्मों में गीत संगीत दिया और कई फिल्मों के संवाद भी लिखे ओ आज भी याद किये जाते हैं. लक्ष्मण शाहाबादी ने पारिवारिक और पारम्परिक गीतों को एक सूत्र में पिरो कर फिल्मों में ले आये तब लोगों ने उनके इस कार्य को हाथों हाथ लिया जिसका श्रेय भी उन्ही को जाता है. ‘घूँघट खोल रे बहुरिया मुंह देखब जा हमनी के’ जैसे गीत ने घर-परिवार में अपनी जगह बना ली जो आज भी शादी विवाह के अवसे पर गुनगुनाये जाते हैं वहीँ भींजे रे चुनरी भींजे रे चोली भींजे बदनवा ना –इस गीत को आज भी बैंड वाले बजाते हैं जो उनकी लोकप्रियता को प्रदर्शित करता हैं. गंगा किनारे मोरा गाँव हो घर पहुंचा द देवी मईया गीत ने लोगों को दर्द का अहसास कराया वहीँ विरह वेदना को काहे जिया दुखवल चल दिहल मंतर मार के ..अतना बता द ये दूल्हा गंगा पार के गीत से नारी मन की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया है.
एक दौर ऐसा भी आया की फिल्मों में उनकी मौजूदगी से फ़िल्में हिट हो जाती थी.फिल्मे बड़ी माने जाती थी. लक्ष्मण शाहाबादी ने भोजपुरी में वैसे शब्दों का चयन भी करते थे जिसे हिन्दी भाषी लोग भी आसानी से समझ ले.उनकी ज्यादातर फ़िल्में सुपर हिट रही. गंगा किनारे मोरा गाँव- गोल्डन जुबली,दूल्हा गंगा पार के सिल्वर जुबली ,गंगा आबाद रखिह सजनवा के जिसके गीत टी सीरिज से आये थे और उस दौर में साढ़े आठ लाख कैसेट बिके थे.जो एक उस समय का रिकॉर्ड था.उनकी फिल्मों में संस्कार गीत ,विवाह के पारम्परिक गीत और प्रेम रस से भरे गीतों को लोगों ने बहुत पसंद किया था.
उनकी फ़िल्में लोग पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखते थे. उनकी आख़री फिल्म गंगा झूठ न बोलावे एक मात्र अधूरी फिल्म रही जो किसे कारणवश पूरी नहीं हो पाई. और वो दिन आया जब भोजपुर क्या पुरे देश-दुनिया में चर्चित लक्ष्मण शाहाबादी का निधन 19 दिसम्बर 1991 में काल ने महान शख्शियत को हमसे छीन लिया.उनका निधन आरा शिवगंज स्थित उनके आवास पर हुआ जहाँ उनकी कर्मभूमि थी.आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके गीत और संगीत सदा के लिए याद किए जाएंगे. patananow की ओर से ऐसे महान विभूति को शत-शत नमन
कहे के त सभे केहू आपन…..