राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की 16वी वर्षगाँठ पर हुए दो शख्स सम्मानित
बिहार के कवि गंगायात्री निलय उपाध्याय एवं पर्यावरण नायक एस बालाकृष्णन को मिला राष्ट्रीय स्वाभिमान सम्मान
विकास का मानक- हर बच्चे को प्रतिदिन आधा किलो हरी सब्जी, दूध और आधा किलो फल मिले
दिल्ली, 17सितंबर. व्यवस्था परिवर्तन व प्रकृति केंद्रित विकास को समर्पित संस्था राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन का 16 वां स्थापना दिवस नई दिल्ली में रफी मार्ग स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब स्पीकर हॉल में मनाया गया. इस अवसर पर आयोजित समारोह में विभिन्न क्षेत्र के दो सक्रिय सज्जनों को राष्ट्रीय स्वाभिमान सम्मान से सम्मानित किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के संस्थापक गोबिन्दाचार्य ने किया. वहीं कार्यक्रम संचालन राष्ट्रीय संयोजक पवन श्रीवास्तव ने किया. मुख्य अतिथियों में पोपटराव पवार, मयंक गांधी, मौलाना कल्बे रुशैद रिजवी, बसव राज पाटिल शेडम थे. कार्यक्रम की शुरुआत आगत अतिथियों ने भारत माता की आरती व पुष्पार्पण से हुआ. अतिथियों को सुत माला देकर स्वागत किया गया. इसके बाद कर्नाटक से आये पर्यावरण नायक एस बालाकृष्णन व बिहार के कवि गंगायात्री निलय उपाध्याय को राष्ट्रीय स्वाभिमान सम्मान से नवाजा गया. निलय उपाध्याय बक्सर जिले के सिमरी प्रखंड अंतर्गत दुल्लहपुर गांव के निवासी हैं. उन्होंने सात वर्षों से लगातार गंगोत्री से गंगासागर तक यात्राएं की हैं. वे इसके पहले बनारसी प्रसाद आजाद सम्मान से भी सम्मानित हो चुके हैं.
युवा पीढ़ी के सबसे अग्रणी जल योद्धाओं में से एक पोपट लाल पवार ने अपने संबोधन में कहा कि 1972 से पहले तक महाराष्ट्र का हिवरे बाजार गांव संपन्न और आत्मनिर्भर था, लेकिन सन् 1972 के सूखे और अकाल से इस गांव का पतन होने लगा. यह स्थिति सन् 1989 तक बनी रही, क्योंकि यहां पेय जल और सिंचाई के जल के अभाव में लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा था. मवेशी मर रहे थे और लोग बाहर काम की तलाश में भटकते रहते थे. पोपट लाल पवार इसी गांव से हैं. वे वहां कुछ दिनों के लिए आए हुए थे. उन्हें गांव की स्थिति न देखी गई और फिर उन्होंने गांव के सुधार और विकास को अपने जीवन का मकसद बना लिया और गांववालों के अनुरोध पर सरपंच बने. शुरुआत में उन्होंने गांव वालों के साथ मिलकर स्कूल और सड़क निर्माण, वृक्षारोपण, जल संरक्षण के लिए तालाब के विकास तथा पेय जल की व्यवस्था बनाई. आज यह गांव विश्व के मानचित्र पर अपनी पहचान बना चुका है. कई देशों से लोग आकर यहां की पंचायती व्यवस्था से सिख रहे हैं.
शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे रुशैद रिजवी ने अपने संबोधन में कहा कि देश मे नेतृत्व किसे देना है यह जनता तय करती है, लेकिन, वर्षों से हो रहे चुनावों में जनता ने अपने बटुए से पहले पुराने नोट खर्च करने की परंपरा का निर्वहन किया है. नए और अच्छे नोट वैसे ही समाज के बटुए में रह जाते हैं जैसे अच्छे लोग सत्ता में आने से वंचित हैं. जो सत्ता में काबिज होते हैं वे पुराने नोटों की तरह हैं. जो अधिक दिनों तक टिकाऊ नहीं हो पाते. उन्होंने कहा कि जनता को सोच बदलनी पड़ेगी. उन्होंने बुद्धि और होशियारी को परिभाषित करते हुए बताया कि इस देश मे बुद्धि समाज सेवा है और होशियारी पॉलिटिक्स.
वहीं अपने संबोधन में गोबिन्दाचार्य ने कहा कि देश के विकास के बारे में सोचेंगे तो दुनियां से अलग होकर सोचा नहीं जा सकता. दुनियां में 500 वर्षों में कोई बदलाव नहीं आया. उससे ज्यादा गति से पचास वर्षों में बदलाव आए हैं. उन्होंने इको सेंट्रिक डेवेलपमेंट की चर्चा की. कहा कि जल, जीवन, जंगल, जमीन और जन का अनुकूल जीवन विकास करने पर बल दिया. फिलॉसफी जीव, जगत जगदीश के मूल सिद्धांत के साथ विश्व का विकास किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन जमीन, जंगल जानवर व जल के मुद्दे पर कार्य करे. विकास की कल्पना ऐसी हो कि हर बच्चे को प्रतिदिन आधा किलो हरी सब्जी आधा किलो दूध और आधा किलो फल मिले, तब तो विकास है. जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ी, जलस्तर बढ़ा, वनाच्छाजन बढ़े तब विकास है. नहीं तो किसी भी विकास के कोई मायने नहीं है और इसी विकास के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन प्रयासरत रहेगा.
पटना नाउ ब्यूरो रिपोर्ट