- पूर्व खोखो चैंपियन ने मांगी राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु
- डॉक्टर की लापरवाही से दिव्यांग हो गया ओंकार
- मददगार की तलाश में है बक्सर का लाल
बक्सर जिले के डीएवी स्कूल का छात्र ओंकारनाथ अब जिन्दगी की जंग में पस्त हो चुका है. मददगार की तलाश में भटक रहे ओंकार का हौसला जवाब दे गया है. वर्ष 2013 में जब वह जिला स्तरीय खो-खो का सिरमौर बना था. तो, घरवालों के खुशी का ठिकाना नहीं था. वर्ष 2014 के हंसराज आर्यन टूर्नामेंट में उसने 1500 मीटर के रेस में भी बाजी मारी तो उसके दोस्त फुले नहीं समा रहे थे.
बचपन से ही पढ़ने में अव्वल रहने वाले ओंकार ने स्टेट वालीवाल मैच में भी शानदार प्रदर्शन किया था. वह जब खेल के मैदान में उतरता था. तो, साथी खिलाड़ी उसकी फुर्ती के आगे दांतों उंगली दबाते थे. लेकिन, 20 साल के ओंकार की जिंदगी अब पहाड़ बन गयी है. बैशाखी के बिना वह चल भी नहीं सकता है. एक डॉक्टर की लापरवाही ने उसे दिव्यांग कर दिया है. मामले में एफआईआर दर्ज होने के बावजूद दो वर्षों में दोषी पर कोई कार्रवाई नहीं होने से हताश होकर उसने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है. मंगलवार को उसने इसके लिए राष्ट्रपति को पत्र भेजा है.
कर्ज में डूबा ओंकार का परिवार
ओंकार के दुख भरे इस दास्तां का अंत नहीं है. वाराणसी के बीएचयु से उसका इलाज चल रहा है. करीब 15 लाख रुपये खर्च हो गए हैं. महीने में 2 हजार रुपये दवा के लिए चाहिए. परिवार और रिश्तेदार भी अब हिम्मत हारने लगे हैं. ओंकार की मां मंटू देवी ने बताया कि उनपर 10 लाख रुपये कर्ज हो गए हैं. दोषियों पारर कार्रवाई के लिए उन्हें किसी मसीहा की तलाश है.
इंसाफ के लिए छेड़ा अभियान
ओंकार के स्कूली दोस्तों ने फेसबुक पर ‘जस्टिस फॉर ओंकार’ नाम से अभियान भी चलाया है. ओंकार के भाई अमरनाथ ने बताया कि इलाज के लिए उसके स्कूली दोस्तों ने चंदा इकट्ठा कर 60 हजार रुपये दिए थे. दोस्तों ने ओंकार के लिए रक्तदान भी किया था.
सड़क दुर्घटना में हुआ था घायल
बक्सर में 21 अप्रैल 2015 को एक सड़क दुर्घटना में उसे घुटने में चोट लगी थी. बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे बनारस रेफर कर दिया था. वहां एक प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टर ने उसका पैर काट दिया था. बिना किसी गंभीर चोट के डॉक्टर द्वारा पैर काटने के मामले में जांच के बाद डॉक्टर को दोषी भी पाया गया. बक्सर औद्योगिक थाने में एफआईआर दर्ज है. लेकिन, उसपर कोई कार्रवाई नही हुयी.
मानवाधिकार ने भी खड़े किये हाथ
ओंकार के भाई अमरनाथ ने बताया कि मदद के लिए उसने बिहार मानवाधिकार आयोग का भी दरवाजा खटखटाया. लेकिन, सुनवाई के दिन आयोग ने उत्तरप्रदेश का मामला बताकर टाल दिया. हालांकि राष्ट्रीय मानवाधिकार को मामला ट्रांसफर करने का आश्वासन जरूर दिया. लेकिन, अबतक कुछ नहीं हो सका है.
चीफ जस्टिस व प्रधानमंत्री को भी पत्र
ओंकारनाथ ने इच्छामृत्यु कि अनुमति संबंधी पत्र की प्रति राष्ट्रपति के अलावा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, प्रधानमंत्री, बिहार के राज्यपाल व बिहार के मुख्यमंत्री को भी भेजा है.
रिपोर्ट- बक्सर से ऋतुराज पांडे