बिहार में हो बुद्धिस्ट फिल्म फेस्टिवल –सोनल मानसिंह
फिल्मों को लेकर छोटे शहरों में सिनेमा के प्रति नजरिया बदला है-मनोज बाजपेयी
पहला बिहार फिल्म रत्न सम्मान 2016 अभिनेता मनोज वाजपेयी को
फिल्म विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए स्व अशोकचंद जैन, मोहनजी प्रसाद, राकेश पांडेय, विशुद्धानंद, कुणाल सिंह, विजय खरे, किरण कांत वर्मा, सुनील प्रसाद, जीतेन्द्र सुमन, अभय सिंह, प्रेमलता मिश्रा और कुणाल बैकुंठ सिंह को सम्मानित किया गया.
बिहार सांस्कृतिक रूप से फिर से उभर कर सामने आ रहा है. बिहार से मेरे पुराने संबंध रहे हैं. मैं 20 साल बाद यहां अपनी प्रस्तुति दे रही हूं. बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार का ने एक अनूठा प्रयोग किया है, जो सराहनीय है. अमूमन फिल्म महोत्सव के समापन सत्र फिल्मों के नृत्य से संपन्न होता है, लेकिन यहां समापन मेरे नृत्य से हो रहा है ये बात पद्म विभूषण डॉ सोनल मानसिंह ने पटना में कही. उन्होंने कहा कि बिहार बुद्ध सर्किट में आता है. अगर यहां एक बुद्धिस्ट फिल्म फेस्टिवल का भी आयोजन होता, तो ये राज्य और पर्यटन के लिहाज से भी हितकारी होगा. पद्म विभूषण डॉ सोनल मानसिंह ने कृष्णा नृत्य नाटक की मनोहारी प्रस्तुति भी दी.
इस मौके पर फिल्म विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए स्व. अशोकचंद जैन, मोहनजी प्रसाद, राकेश पांडेय, विशुद्धानंद, कुणाल सिंह, विजय खरे, किरण कांत वर्मा, सुनील प्रसाद, जीतेन्द्र सुमन, अभय सिंह, प्रेमलता मिश्रा और कुणाल बैकुंढ़ सिंह को निगम के एमडी गंगा कुमार और अभिनेत्री सारिका द्वारा सम्मानित किया गया.
राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड की ओर से बिहार फिल्म रत्न सम्मान की शुरूआत की गई और पहला बिहार फिल्म रत्न सम्मान 2016 मशहूर अभिनेता मनोज वाजपेयी को दिया गया. इस मौके पर मनोज वाजपेयी ने कहा कि मनोरंजन सिर्फ नाच गाना नहीं होता, मनोरंजन अच्छी कहानी और अच्छी फिल्में भी होती है. दो दशकों से हम ये लड़ाई लड़ रहे हैं. पिछले दिनों किसी ने मेरी फिल्म बुधिया सिंह और अलीगढ को मनोरंजक नहीं कहा. तब मुझे लगा कि मुझे अपनी लड़ाई और लड़नी है. ये फिल्में बच्चों के विकास में बाधक नहीं हैं. इन फिल्मों को देख कर बच्चे अपने भविष्य को सवार सकते हैं. बाधा तो वो फिल्मे हैं, जो बच्चों को समाज से अलग करता है. उन्होंने कहा कि थियेटर करने की चाहत में पढ़ायी के बहाने पटना छोड़े 30 साल हो गए. इस दौरान यहां कोई ऐसा बड़ा आयोजन होते नहीं देखा था. पटना में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम करना मुश्किल होता था और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. लेकिन पटना फिल्म फेस्टिवल के इतने बड़े आयोजन को देख कर गर्व महसूस हो रहा है. फिल्म फेस्टिवल दर्शकों से, समाज से, फिल्मकारों के समाज से संवाद स्थापित करने का एक कारगर साधन है. फिल्मों को लेकर छोटे शहरों सिनेमा के प्रति नजरिया बदला है, वो काफी सराहनीय है. इसलिए मैंने बड़े शहरों की ओर देखना बंद कर दिया है.
वहीं, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकार त्रिपुरारी शरण ने कांस फिल्म फेस्टिवल को संदर्भ में रखकर पटना फिल्म फेस्टिवल की सफलता की कामना की. उन्होंने कहा कि प्रतिबद्धता और निरंतरता के साथ अगर इस आयोजन को जारी रखा जाएगा, तो आने वाले दिनों में पटना फिल्म फेस्टिवल की भी एक पहचान बनाएगी. उन्होंन कहा कि भोजपुरी सिनेमा ने कई बदलाव देखे. हम भोजपुरी के हिमायती है. मगर इसके प्रेम में ये नहीं भूलना चाहिए आपकी सिनेमा की पहचान क्या है. अभिनेत्री सारिका ने भी फिल्म फेस्टिवल की सराहना की और कहा कि ऐसे आयोजन लगातार होते रहने चाहिए. समापन समारोह में साहित्यकार उषा किरण खान, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकार त्रिपुरारी शरण, अभिनेत्री व पटना फिल्म फेस्टिवल में ज्यूरी हेड सारिका, ज्यूरी मेंबर फरीदा मेहता व परेश आमदार,पूर्व आईएएस आरएन दास, बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत भट्टाचार्य, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा आदि उपस्थित रहे.
पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 की ज्यूरी हेड सारिका, ज्यूरी मेंबर फरीदा मेहता व परेश आमदार ने Best Short Film – Days Of Autumn, Best Documentary – Sax in the City, Special Jury Award (Documentary ) – Juitiya, Best Actor (Feature Film) – Moksha Hunter (Film – Head Hunter), Best Actress (Feature Film) – Urmila Mahanta (Film – Bokul), Best Director (Feature Film) – Manish Mitra (Film – Le Lotta), Best Feature Film – Le Lotta, Special Jury Award – Juitiya, Special Jury Award For Ensemble Cast – Le Lotta और Best Scriptwriter (Feature Film) – 1. Ripak Das 2. Nayanita Sen Datta 3.Nilanjan Datta (Film – Head Hunter) को चुना. वहीं, समापन समारोह के इसके अलावा फिल्म फेस्टिवल के दौरान आयोजित फिल्म क्रिटिक प्रतियोगिता में पहले स्थान पर पटना कॉलेज की छात्रा तसलीम फातिमा, दूसरे स्थान पर पटना कॉलेज के ही उज्जवल कुमार और तीसरे स्थान पर संत जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैंनेजमेंट, पटना के रविरंजन रहे. वहीं, बख्यितयारपुर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना की नेहा कुमारी चौथे और संत जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैंनेजमेंट अस्मित नंद ने पांचवां स्थान हासिल किया.
बता दें कि पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में कंपीटिशन और आईएफएफआई पैनोरमा की कुल 20 फिल्मों का प्रदर्शन रीजेंट सिनेमा में हुआ, जबकि रविंद्र भवन के हॉल एक में भोजपुरी की 14, मैथिली की तीन, मगही और अंगिका की एक – एक फिल्मों का प्रदर्शन हुआ. इसके अलावा छह डॉक्यूमेंट्री और 21 शॉट फिल्में रविंद्र भवन के हॉल दो में दिखाई गई. पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में खासतौर पर विभिन्न विषयों पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया. इसमें बॉलीवुड और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत किया. परिचर्चा में मशहूर निर्देशक इम्तियाज अली से बातचीत, महिलाओं की दृष्टि से हिंदी सिनेमा ( अभिनेत्री अनुरीता झा और अस्मिता शर्मा), थियेटर और सिनेमा (अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा, संजय मिश्रा और विनित कुमार), हिंदी क्षेत्र में हिंदी सिनेमा (निर्देशक नीरज गेवान), बिहार में फिल्म मेकिंग की संभावनाएं (संवाद लेखक विकास चंद्र, निर्देशक प्रवीण कुमार और फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम), फिल्मी गानों में फोक एलिमेंट (उड़ता पंजाब फेम शैली और बाजीराव मस्तानी फेम प्रशांत इंगोले), बिहार में सिनेमा (अभिनेता नरेंद्र झा, अभिनेत्री शिल्पा शुक्ला और अभिनेता संजय मिश्रा, पंकज झा) और गुरूवार – शिष्य परंपरा (अभिनेता पंकज त्रिपाठी, पंकज झा, रंगकर्मी पुंज प्रकाश और परवेज अख्तर) जैसी विषयों को शामिल किया गया. वहीं ओपेन हाउस डिस्कशन सत्र में भोजपुरी और क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों की दशा और विकास पर भोजपुरी अभिनेता कुणाल सिंह, रविकिशन, दिनेश लाल यादव निरहुआ, के के गोस्वामी, अभिनेत्री अम्रपाली दूबे और तेजल, निर्देशक असलम शेख के अलावा कई फिल्म विशेषज्ञों ने विस्तार से चर्चा की.