‘काव्य-संध्या’ में बही साहित्य की गंगा

By om prakash pandey Feb 22, 2021

आरा, आरोह थियेटर और आरा बुक क्लब के बैनर तले आज आरा के जयप्रकाश स्मृति स्थल, रमना मैदान में कविता की साझी विरासत से जुड़ी काव्य-संध्या (शाम-ए-सुख़न) आयोजित हुई। इसमें आरा और आसपास के क्षेत्र के कवि, रंगकर्मी, चित्रकार और विभिन्न संस्कृतिकर्मी उपस्थित रहे। कवियों और शायरों ने अपने समाज की नब्ज़ को परखने वाली कविताएँ, ग़ज़लें और गीत प्रस्तुत किये।

रविशंकर ने ‘हत्यारे की सुबह’ कविता के पाठ से कार्यक्रम का आगाज़ किया। चित्रकार और कवि राकेश दिवाकर ने ‘वे किसान हैं’ और ‘सवाल बवाल है’ कविताएँ प्रस्तुत कीं। सुमन कुमार सिंह ने किसानों की मौजूदा हालत से जुड़ी कविता ‘हल चलाना देश चलाना नहीं होता’ पढ़ी एवं भोजपुरी व्यंग्य गीत ‘डगरिया समेटs जन रजवा’ गाकर सुनाया। मक़बूल शायर इम्तियाज़ अहमद ‘दानिश’ जी ने अपनी दो ग़ज़लें तरन्नुम में सुनाईं। ‘वो हौसला ही कहाँ बाज़ुओं में जान कहाँ’ में मौजूदा राजनीतिक हालात की समीक्षा भी है। छपरा से आये अहमद अली जी ने ‘ राख के ढेर में हीरे को छुपाने वाले’ ग़ज़ल गाकर सुनाई। वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने भी भोजपुरी गीत ‘गंगा मैया’ गाकर सुनाया। प्रख्यात कवि एवं संपादक संतोष श्रेयांश ने ‘काली छतरी’ और ‘बोनसाई’ कविताओं के ज़रिए मध्यवर्गीय विडंबनाओं को उकेरा। वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कोरोना काल की अपनी कई छोटी कविताएँ प्रस्तुत की जिनमें महामारी के स्याह और रौशन दोनों पहलू थे। चर्चित कवि अरुण शीतांश ने ‘वृक्षों से लिपट कर रोना चाहता हूँ’ और ‘नज़री नक्शा’ कविताओं से अपने परिवेश में होने वाली असंवेदनशील घटनाओं की तरफ ध्यान आकृष्ट किया। नीलाम्बुज सरोज ने एक ग़ज़ल ‘झूठ चमक से हारा दिन’ का पाठ किया। लोकगायक और कवि राजाराम ‘प्रियदर्शी’ ने भोजपुरी गीत और ग़ज़ल गाकर प्रस्तुति की।




कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि एवं आलोचक श्री जितेंद्र कुमार ने ‘चाँदी की मछलियां’ कविता पढ़ी जिसमें मछुआओं के दर्द की कहानी बयां हुई थी। उन्होंने अध्यक्षीय वक्तव्य में आरा की समृद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक परंपरा को याद किया। उन्होंने कहा कि समय की चेतना से जुड़कर ही काव्य-संवेदना को विस्तृत किया जा सकता है। युवा कवियों को राजनीतिक और सामाजिक रूप से सचेत होने की ज़रूरत है। उन्होंने उपस्थित सभी कवियों की कविताओं में किसानों की संवेदना से संपृक्ति पर आश्वस्ति ज़ाहिर की। कार्यक्रम में रंगकर्मी धनंजय कटकैरा, भोजपुरी लोककला के चितेरे संजीव सिन्हा, बालरूप शर्मा, खुशबू स्पृहा, सौरभ और राजेश जैसे युवाओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी की। कार्यक्रम का संचालन नीलाम्बुज ने किया।

आरा ब्यूरो

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