कला और कलाकार के बीच संघर्ष जरूरी है -कौशलेश पाण्डेय

By pnc Oct 14, 2016

चित्रकला और फोटोग्राफी में हैं माहिर 

कई सम्मान और पुरस्कार मिल चुके है 




जब पैसे नहीं होते थे तब पेंटिग रेस्टुरेंट वालों को बेच दिया करते थे 

जब हम दूसरों को सफल होता देखते हैं तो हमें ये सब बड़ा आसान लगता है. हमको लगता है कि यार ये इंसान को बड़ी जल्दी और बड़ी आसानी से सफल हो गया लेकिन मेरे दोस्त उस एक सफलता के पीछे ना जाने कितने सालों की मेहनत छिपी है. ये कोई नहीं देख पाता. सफलता तो बड़ी आसानी से मिल जाती है लेकिन सफलता की तैयारी में अपना जीवन कुर्बान करना होता है. जो लोग खुद को तपाकर, संघर्ष करके अनुभव हासिल करते हैं वो कामयाब हो जाते हैं और दूसरों को लगता है कि ये कितनी आसानी से सफल हो गया. दोस्त एग्जाम तो केवल 3 घंटे का होता है लेकिन उस 3 घण्टे के लिए पूरी साल तैयारी करनी पड़ती है तो फिर आप रातों रात सफल होने का सपना कैसे देख सकते हो. सफलता अनुभव और संघर्ष मांगती है और अगर आप देने को तैयार हैं तो आपको आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता ये मानना है प्रसिद्ध चित्रकार और फोटोग्राफर  कौशलेश पाण्डेय का जिन्होंने कड़ी सफलता के साथ कला के क्षेत्र में एक अलग पहचान स्थापित की है.रवीन्द्र भारती की उनसे हुई बातचीत का एक अंश .

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बचपन से ही रेखा चित्रों के जरिए अपने अन्दर की अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करने वाले कौशलेश पाण्डेय कला के क्षेत्र में आज जाना पहचाना नाम है .उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से स्नातक किया और फिर वे चंडीगढ़,दैनिक ट्रिब्यून और दिल्ली के कई समाचार पत्रों में वर्षों कार्य किया.  वे कहते हैं कि  मैंने दिल्ली में ज्यादा शो किए हैं . 20 वर्षों से दिल्ली में रहा हूँ. चंडीगढ़,रोहतक बनारस आदि जगहों पर अक्सर शो करता रहता हूँ इस दौरान वे अपनी कला के जरिए विभिन्न कला प्रदर्शनियों में सम्मान पाया. उन्हें  पेन्टिग, और फोटोग्राफी में कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी मिले. फिर इप्टा से जुड़ा,नाटक के तरफ भी मेरा रुझान बढ़ता गया, मैं जनवादी लेखकों  डा.नामवर सिंह,बाबा नागार्जुन की छत्रछाया में भी कई वर्षों तक रहा पर बाद के दिनों में पेंटिग को ही केंद्रित कर दिल्ली में प्रिन्ट मीडिया के साथ जुड़ गया.  बिक्रमगंज,रोहतास (बिहार ) मे जन्मे कौशलेश पाण्डेय  एम.एफ.हुसैन,राम कुमार स्वामीनाथन, हेब्बर आधुनिक चित्रकला के बाद की पीढ़ी में कुछ ऐसे ही नाम है जो उभरकर सामने आये हैं. जिसमें कौशलेश के हस्ताक्षर और उनका कला-कर्म को लोगों की सराहना मिली है. किसान परिवार से होने के नाते बहुत ज्यादा स्पोर्ट घर से नहीँ मिला,बी एच यू  में पढाई के दौरान जब पैसे नहीँ होते तो पेंटिग रेस्टुरेंट वालों को बेच दिया करता वो कम दाम में ले लिया करते थे.कॉलेज के क्लास ख़त्म होने के बाद एक कालीन कम्पनी में डिजाइनर का काम करने लगा था. लेखन और कला की गतिविधियों के लिए अख़बारों नें लिखने की जगह और पेज दे दिये और लिखना शुरू हों गया. फ़िर अख़बारों में काम के ऑफ़र मिलनें लगे,बतौर आर्टिस्ट,फोटोग्राफी,आज, वाराणसी,जनवार्ता,जन मुख आदि पत्रोंमें काम किया लेकिन मूल में फोटोग्राफी ही रही.

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कौशलेश पाण्डेय  के ज्यादातर काम ऑइल में ही है. कभी-कभी लेंडस्केप आदि वॉटर कलर में भी करते हैं. फिलहाल वे  बुद्ध और कृष्ण पर एक सीरिज़ बना रहे हैं. बिहार में कलाकार और कला आज भी कई मायनों में उपेक्षित है.  मेरा यही कहना है की ललित कला की पढाई को बिहार सरकार गम्भीरता से ले टीचर हर स्कूल, कॉलेज में बहाल किए जायें और जगह-जगह पेन्टिंग की कार्यशाला आयोजित होती रहे ताकि लोग कला से जुड़े. फोटोग्राफी और भी जो आर्ट हैं, उसके हालात अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में ज्यादा बदतर हैं. कही जॉब नहीँ है और लोग फिर महानगरों के तरफ रुख करते हैं .बहुत बड़ी विडम्बना है ये. हाँ कोई भी आर्टिस्ट हो उसके काम को भी देखा जाना चाहिए. छोटे कलाकारों में हताशा बढ़ रही है इसे देखना सरकार का काम है. लोक कलाएं दम तोड़ रही है. अकादमी है पर कितना काम हो रहा है सब जानते हैं. यह तक की राजधानी पटना में कोई गैलरी ऐसी नहीँ है जहाँ बराबर कुछ न कुछ आर्ट की, चाहे पेंटिंग हो या फोटो ग्राफी उसका शो निरन्तर होता रहे,जबकि सरकार के पास सारे साधन हैं जो नये कलाकारों को मिल सकता है.  मैं जो आर्ट लवर हैं उनका प्यार पाना चाहता हूँ,पुरस्कारों को ज्यादा महत्व नहीँ देता हूँ. मेरे लिए लोगों का प्यार ही सम्मान है.  बस,नये कलाकारों से यही कहूँगा की आप काम करते रहिए फिर मंज़िल दूर नहीँ, काम ही बोलता है मंजिल तो देर सबेर मिलनी ही है.

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By pnc

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