मोदी ब्रांड हिंदुत्व से सराबोर समाजवाद खिलखिलाएगा या चलेगा जाति का कार्ड
13 मई को दरभंगा के मतदाता बटन दबा कर लेंगे फैसला
लोगों की चुप्पी सुविचारित, अंडरकरेंट का दे रही संकेत!
दरभंगा,9 मई (संजय मिश्र). बिहार के अन्य हिस्सों की भांति दरभंगा में जातिवादी राजनीति के प्रति आग्रह, सोशल इंजीनियरिंग का बहार, पलटने की राजनीति पर खदबदाहट और हिंदुत्व के परचम का कॉकटेल है. 14 – दरभंगा लोकसभा सीट पर 13 मई को मतदान है. मिथिला का केंद्र होने के कारण सीट तो हाई प्रोफाइल रही है लेकिन अभी हाई प्रोफाइल उम्मीदवारों वाली सीट जैसी चुनावी टक्कर यहां नहीं है. एक तरफ कार्यकर्त्ता मनोवृति में जीने वाले बीजेपी के सीटिंग एमपी गोपालजी ठाकुर हैं तो दूसरी ओर आरजेडी के ललित कुमार यादव उनसे मुकाबला करने आए हैं. ललित रुआब रखने वाले किसी टिपिकल बिहारी नेता वाली छवि के स्वामी हैं. बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं और पहली दफा एमपी का चुनाव लड़ रहे.
मिथिला का हृदय माना जाने वाले दरभंगा के इस केंद्रीय लोकसभा सीट पर आठ उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के सीटिंग एमपी गोपालजी ठाकुर और आरजेडी के ललित कुमार यादव के बीच ही है.
भीषण गर्मी और दोनो ओर से मोटे तौर पर शांतचित्त चुनाव प्रचार के कारण चुनावी विश्लेषण करने वाले पंडित तरह तरह के अर्थ निकाल रहे. कमला और बागमती नदी में 5 बरस में बहुत पानी बह चुका है लेकिन जमीन पर कमोबेश साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय जैसा ही नीरव माहौल है. चुनाव की तपिश परवान चढ़ाने पीएम मोदी की जनसभा हो चुकी है. इसके असर का गुना भाग लगाने दरभंगा में तेजस्वी डेरा जमाए रहे. उन्हें क्या फीडबैक मिला कहना मुश्किल पर पुर्णिया में दिया अपना बयान उन्हें जरूर कुरेद रहा होगा.
सियासत बेशक निष्ठुर होती है.
लेकिन आमजन से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती. क्या पलटने की राजनीति से उपजी खदबदाहट मद्धम हुई है? अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का जोश क्या इस राजनीति ने कम किया? दोनों रंगत के टॉप लीडर्स सावधान तो होंगे ही. यही वजह है कि चुनावी लोकतंत्र उत्सव का आकार ले इसकी झलक पीएम मोदी के ऑप्टिक्स में दिखी. दरभंगा की जनसभा में उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा को याद करते हुए अयोध्या और मिथिला के संबंध का जिक्र किया. देश के तूफानी दौरों में वे विपक्ष पर धार्मिक आधार पर आरक्षण का कुचक्र रचने का आरोप लगाते हुए लगातार निशाना साध रहे.
बाहरी उम्मीदवारों को अबलम्ब देने का रिकार्ड रहा है दरभंगा लोक सभा सीट को. बिनोदानंद झा, ललित नारायण मिश्र, विजय मिश्र, कीर्ति आजाद सरीखे लोग यहां का प्यार पाने में सफल रहे. लेकिन विकास पुरुष ललित नारायण मिश्र के अलावा अन्य लोग अपनी चमकदमक दिखाने में ही मगन रहे. लोगों को महसूस हुआ कि स्थानीय उम्मीदवार हों तो वे दुख दर्द जानें. पिछली दफा की तरह इस बार भी स्थानीय उम्मीदवार वाले राजनीतिक बिंब का जोर है.
आरजेडी उम्मीदवार की प्रोफाइल —
ललित कुमार यादव छह बार विधायक बने हैं. दरभंगा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. महागठबंधन सरकार में मंत्री हुए. पत्नी शिव कुमारी यादव का साथ है. पुत्र विजय प्रकाश यादव आस्ट्रेलिया से उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. दूसरे पुत्र हैं विनय प्रकाश यादव. तीन पुत्रियां हैं. अस्मिता यादव वकील हैं तो स्मृति यादव पत्रकार. तीसरी पुत्री हैं खुशबू यादव. माता भूली देवी और पिता गणेश यादव का आशीर्वाद को अब तक की सफलता का राज बताते हैं ललित. सार्वजनिक जीवन यात्रा में भाई धनवीर यादव और स्वर्गीय गुलाब यादव का संग मिला.
बहनें गुलजार देवी और पूनम देवी समाजवादी धारा के रुझान वाले परिवारों में ब्याही गई. ललित का जन्म – 01 – 01 – 1966 को हुआ. माता जानकी, राजा सलहेस और अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व से अनुप्राणित हैं. समता मूलक समाज का सपना को यथार्थ में उतारने में लगे रहने का दावा करते हैं.
जन्म स्थान और ग्राम तारडीह है. बाबा जीवछ यादव की छत्रछाया में रह कर प्राथमिक विद्यालय, तारडीह से प्राथमिक शिक्षा ली. माध्यमिक शिक्षा – बलुवाही हाई स्कूल से हुआ. इंटर के लिए आर के कॉलेज, मधुबनी गए. दरभंगा के मारवाड़ी कॉलेज से समाजशास्त्र में स्नातक किया. एल एन मिथिला यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की. छात्र राजनीति में वे सक्रिय रहे. अस्सी के दशक में अंबेडकर जयंती मनाई जिसने ललित की ओर सबका ध्यान खींचा. दरभंगा ग्रामीण विधान सभा क्षेत्र से 1995 में पहली बार विधायक बने. क्षेत्र की जनता का विश्वास है जिस कारण वहीं से अभी तक विधायक हैं.
बीजेपी के सीटिंग एमपी की प्रोफाइल –
गोपालजी ठाकुर दरभंगा जिले के बिरौल इलाके के ग्राम पड़री के निवासी हैं. पत्नी का नाम चंदु ठाकुर है. पुत्र केशव कुणाल और पुत्री का नाम कुमारी कोमल है.
गोपालजी को जमीन से उठा हुआ नेता माना जाता है. अर्बन और एलिट नेता की छौंक तो लेस मात्र नहीं उनमें. दरभंगा के पुराने पत्रकार आज भी उन दिनों को याद करते हैं कि गोपालजी बतौर कार्यकर्त्ता बीजेपी की प्रेस विज्ञप्ति देने मीडिया दफ्तर जाया करते थे. वर्ष 2019 में वे पहली दफा सांसद बने तो शुभकामना देने वाले विरोधी दलों के स्थानीय नेताओं ने एक स्वर से कहा था कि ये नेता नहीं बल्कि एक कार्यकर्त्ता की विजय है. अब गोपालजी पर ही छोड़ा जाना चाहिए कि वे पीछे मुड़ कर विपक्षी नेताओं के उस उद्गार को याद करें और महसूस करें कि उनकी भावनाओं के अनुरूप सांसद ने लोक व्यवहार किया या नहीं!
गोपालजी का कहना है कि मोदी वाली विकास की गारंटी के अलावा 5 साल तक सघन जनसंपर्क में बीता उनका समय उनकी पूंजी है. उसका फायदा मिलने का वे दावा करते. मुश्किल से लोकसभा क्षेत्र का कोई पंचायत बचा हो जहां वे न गए हों. दिल्ली प्रवास से जैसे ही फारिग होते वे दरभंगा के किसी गांव में जन संपर्क करते पाए गए.
पाग, मिथिला पेंटिंग वाले अंग वस्त्र और मखाना की माला पहनाना उनकी पहचान बन गई है. इन उत्पादों का वे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते. तीनों ही उत्पाद को व्यापक फलक दिया. दिल्ली, पटना और दरभंगा में .. शायद ही कोई दिन बीता हो जब सांसद द्वारा कोई अहम व्यक्ति इन उत्पादों से सम्मानित न किए गए हों. अह्लादपूर्वक सम्मान देने के क्रम में दरभंगा के विकास के लिए किसी प्रोजेक्ट खातिर स्मारपत्र सौंपना एजेंडा का हिस्सा होता. सांसद का यकीन है कि उनके कारण तीनों ही उत्पाद की आपूर्ति करने वाले मोटे तौर पर एक लाख से अधिक व्यक्ति सीधे या परोक्ष लाभान्वित हुए हैं. एक प्रकार से गोपालजी ने इन उत्पादों की ब्रांडिंग, कॉटेज इंडस्ट्री बनने और प्रसार में 5 सालों तक सतत सहायक की भूमिका निभाई है.
पिछली दफा यानि साल 2019 लोकसभा आम चुनाव में दरभंगा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार गोपालजी ठाकुर के सामने आरजेडी के उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दीकी जोर आजमाइश कर रहे थे. सिद्दीकी को 318689 वोटर्स ने पसंद किया जबकि जीतने वाले गोपालजी ठाकुर में 586668 वोटर्स ने आस्था जताई. बीएसपी के उम्मीदवार मुख्तार को 11255 वोट मिले. निर्दलीय सगुनी राय को 13774 मत मिले. दिलचस्प है कि नोटा के खाते में 20468 वोट आए. जबकि 514 वोट रिजेक्ट हुए.
अब गौर करते हैं अन्य आंकड़ों की ओर. मतगणना के तमाम राउंड में बीजेपी उम्मीदवार आगे रहे. पोस्टल बैलेट में से सिद्दीकी को 1204 वहीं गोपालजी को 1655 वोट मिले.
विधानसभा क्षेत्रवार आंकड़ों का ब्रेकअप और भी रोचक है. गौरा बौराम में सिद्दीकी को 53006 जबकि ठाकुर को 83691 वोट हासिल हुए. बेनीपुर में सिद्दीकी को 48395 वहीं गोपालजी को 107212 मत मिला. अलीनगर गृह क्षेत्र है सिद्दीकी का. लेकिन यहां उन्हें 56076 जबकि ठाकुर को 91084 वोट मिले. दरभंगा ग्रामीण से मौजूदा (2024) आरजेडी उम्मीदवार विधायक बनते आ रहे हैं लेकिन 2019 में आरजेडी के सिद्दीकी को इस विधानसभा क्षेत्र में 53369 वोट मिले जबकि ठाकुर को 88340 वोट मिले. दरभंगा नगर विधानसभा क्षेत्र से सिद्दीकी को 53803 मत आए वहीं गोपालजी को 104208 वोट मिले. बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र में सिद्दीकी को 52836 जबकि गोपालजी ठाकुर को 110478 वोट मिले. आंकड़ों की दास्तान संकेत करती है कि जब संसद के लिए चुनाव हो तो वोटर्स का रुझान अलग होता है.
आरजेडी प्रत्याशी को कई समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है. पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ने की मनोवैज्ञानिक बाधा से जूझ रहे. माय समीकरण वाले कई नेता यहां की सांसदी की ललक रखते हैं. इनमें पूर्व में एमपी रह चुके, पूर्व में उम्मीदवार रह चुके और नई पीढ़ी के कुछ महत्वाकांक्षी नेता शामिल हैं. ललित को उन्हें मनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी है. इन तीनों श्रेणी के नेता और उनके समर्थक किस हद तक माने कहना मुश्किल. इन समर्थकों के एक हिस्से पर अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा का रंग चढ़ने की खबर है.
उधर, दलित सियासत भी गरमा गई है. दलितों को आरजेडी से खास एतराज नहीं रहा पर पहले के प्रकरणों के कारण ललित यादव से नापसंदगी है. कई जाति समूह खास कर पासवान समुदाय पर इसका असर देखा जा रहा है. गठबंधन सरकार रहने के बावजूद पिछले डेढ़ साल में दरभंगा और मधुबनी जिले की सीमा में उन पर हुए जुल्म ओ सितम को वे भूलना नहीं चाहते. वे याद दिलाते कि उन त्रासद पलों में किसी ने उन्हें नहीं पुचकारा. समूह के समझ रखने वाले कई अगुआ बीते दशकों की – दलितवाद की कीमत पर पिछड़ावाद – वाली नैरेटिव को याद करने लगे हैं. रोचक है कि सीपीआई(एमएल) आज ललित के साथ खड़ी है और चुनाव प्रचार कर रही है. वही एमएल जो उस दौर में इस नैरेटिव के खिलाफ संघर्ष करती रही. अभी तो तमाम वाम दलों के नेता इतने मुखर हैं मानो आरजेडी के प्रचार अभियान की इनने कमान ले ली हो.
दरभंगा एम्स के मुद्दे को गठबंधन दलों के नेता उठा रहे. खास कर वाम दलों के नेता. पर आरजेडी उम्मीदवार या उनके करीबियों में इस रणनीति पर दृढ़ निश्चय का अभाव दिखता है. उन्हें अहसास है कि इस मुद्दे पर चर्चा से वो सवाल भी खड़ा हो जाएगा कि डीएमसीएच ग्राउंड वाले एम्स निर्माण स्थल को क्यों बदला गया ?
एक तरफ भगवती सीता की अराधना की बात करते हैं ललित कुमार यादव तो दूसरी तरफ माता सीता के लिए असहनीय कुवचन कहने वाले आरजेडी नेता उनके चुनाव प्रचार में सक्रिय हैं. दरभंगा के निवासियों को 13 मई का बेसब्री से इंतजार है.