का. सुदामा प्रसाद दलित-गरीबों और किसानों की राजनीतिक दावेदारी के अग्रणी योद्धा
नुक्कड़ नाटक से ले नुक्कड़ सभाओं के चर्चित चेहरा बने सुदामा प्रसाद
आरा,7 जून. आरा जिला के अगिआंव प्रखंड के पवना में मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाने वाले स्व. गंगादयाल साह के घर 2 फरवरी 1961 को जन्मे का. सुदामा प्रसाद भोजपुर में भूमिहीन-गरीब-बटाईदार किसानों के संघर्षो, गरीबों-वंचितों की राजनीतिक दावेदारी और सामाजिक बदलाव की लड़ाई के चर्चित योद्धा हैं. बचपन में ही मिठाई की दुकान पर कभी-कभार बैठने के क्रम में उन्हें सामंती और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा, जिसने उस छोटे से बालक को भीतर से बेचैन कर दिया और वे भाकपा-माले के नेतृत्व में भोजपुर में चल रहे बदलाव की लड़ाई में खींचे चले आए. सदन से लेकर सड़क तक संघर्ष करने वाले और जनांदोलन के तपे-तपाए नेता का. सुदामा प्रसाद भाकपा-माले से इस बार आरा लोकसभा के प्रत्याशी बने जिन्हें इंडिया गठबंधन का भी समर्थन मिला और उन्होंने लगभग 39000 वोटों से जीत हासिल कर अपने जनता के बीच प्रभुत्व को भी दिखा दिया.
1978 में हर प्रसाद दास जैन स्कूल, आरा से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत उन्होंने जैन कॉलेज आरा में नामांकन कराया, लेकिन 1982 में पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वे भाकपा-माले के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और सांस्कृतिक मोर्चे पर काम की शुरूआत की. युवानीति के निर्देशन में उन्होंने सरकारी सांढ़, पत्ताखोर, कामधेनु, सिंहासन खाली करो जैसे नाटकों में जबरदस्त अभिनय किया. पुलिस व सामंती ताकतों से दो-दो हाथ करते हुए युवानीति ने भोजपुर में क्रांतिकारी सांस्कृतिक राजनीति को एक नई धार देने का काम किया और उसमें का. सुदामा प्रसाद की भूमिका हमेशा याद रखी जाएगी.
सदन से लेकर सड़क तक जनसंघर्षों की ऐसी रही यात्रा
1990 में आइपीएफ के बैनर से पहली बार आरा विधानसभा से चुनाव मैदान में उतरने वाले का. सुदामा प्रसाद ने 2015 के विधानसभा चुनाव में तरारी विधानसभा सीट पर पहली जीत हासिल की और फिर 2020 के चुनाव में भी सफलता हासिल की. विधानसभा के भीतर किसानों और जनता के विभिन्न तबकों के सवालों पर अपने आक्रामक तेवर व एजेंडे के जरिए उन्होंने पूरे बिहार में जनता के एक सच्चे जनप्रतिनिधि की पहचान बनाई है. वे बिहार विधानसभा में पुस्तकालय समिति के सभापति बनाए गए. उनके नेतृत्व में संभवतः भारत के संपूर्ण विधायी इतिहास में पहली बार पुस्तकालय समिति की ओर से प्रतिवेदन पेश किया. अंतराष्ट्रीय हेरिटेज घोषित पटना स्थिति खुदाबख्श लाइब्रेरी को बचाने के संघर्ष में का. सुदामा प्रसाद की भूमिका इतिहास में दर्ज हो चुकी है.
महागठबंधन की सरकार बनने के बाद उन्हें कृषि व उद्योग विकास समिति का सभापति बनाया गया और वे अभी इस पद पर बने हुए हैं. इस समिति के सभापति रहते हुए उन्होंने बटाईदार किसानों के पंजीकरण व उनके लिए पहचान पत्र जारी करने जैसी पहले से उठाई जा रही मांगों को समिति के विमर्श का एजेंडा बनाया. यह उनकी समिति द्वारा उठाए गए कदमों का ही नतीजा है कि आज बिहार में सीमित दायरे में ही सही बटाईदार किसानों का पंजीकरण शुरू हो चुका है. कृषि बजट में बटाईदार किसानों के लिए अलग से राशि व योजनाओं का प्रावधान करने के सवाल पर उन्होंने हाल ही में राज्य के 20 जिलों का दौरा किया और उससे संबंधित प्रतिवेदन राज्य सरकार को सौंपा है.
सदन के बाहर सड़कों पर भी वे धान खरीदो आंदोलन का लगातार नेतृत्व करते रहे हैं. 2014 में उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का ही नतीजा था कि भोजपुर में 1660 रु. प्रति क्विंटल की दर से बटाईदार किसानों का 28 हजार धान खरीदा गया. कदवन जलाशय सहित छोटे व्यापारियों के सवालों पर भी उनकी पहलकदमियां काफी चर्चा में रही हैं. हाल में उन्होंने कोविड काल और भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों से तबाह छोटे व्यापारियों के व्यापार की सुरक्षा पर भी लगातार आंदोलनों का नेतृत्व किया और राज्यस्तरीय व्यवसायी संगठन का निर्माण किया है.
1989 का भोजपुर जगाओ-भोजपुर बचाओ आंदोलन
1979 से 83 तक मूलतः सांस्कृतिक संगठन में सक्रियता के बाद वे 1984 में भोजपुर- रोहतास जिला के आइपीएफ के सचिव चुने गए और इसके बाद शुरू हुई संघर्षों की असली कहानी. 1989 में उनके नेतृत्व में भोजपुर जगाओ-भोजपुर बचाओ आंदोलन काफी चर्चित रहा. इसके तहत सोन नहरों के आधुनिकीकरण, कदवन जलाशय का निर्माण,सोन व गंगा में पुल निर्माण, आरा-सासाराम बड़ी रेल लाइन का निर्माण सहित जमीन-मजदूरी के सवालों पर लंबा आंदोलन चलाया गया. आज उसी आंदोलन का नतीजा है कि सोन व गंगा नदी में पुल का निर्माण हो चुका है, आरा-सासाराम बड़ी रेल लाइन का निर्माण भी हो चुका है.
संघर्ष व जेल यात्रा
1985 में भोजपुर के क्रांतिकारी किसान आंदोलन के शहीद का. जीउत-सहतू की श्रद्धांजलि सभा के दौरान पुलिस रेड में वे पहली बार गिरफ्तार हुए और जेल गए. भागलपुर सेंंट्रल जेल में उन्होंने लगभग 22 दिन काटे. एकवारी में का. बैजनाथ चौधरी की हत्या के खिलाफ आयोजित सभा पर पुलिसिया दमन का प्रतिवाद करते हुए 1989 में दूसरी बार जेल गए. इस दौरान लगभग 31 महीने जेल में रहे. जेल में रहते हुए ही उन्होंने आरा विधानसभा से आइपीएफ के बैनर से पहला चुनाव लड़ा और 29000 से अधिक वोट हासिल किया. महज कुछ वोटों से पीछे रह गए.
अपने इसी कठिन राजनीतिक जीवन के दौरान 1993 में जेल से निकलने के बाद उन्होंने शोभा मंडल से अंतरजातीय शादी करके सामाजिक सुधारों की प्रक्रिया में एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया.
1995 का कालखंड भोजपुर के दलितों-गरीबों पर रणवीर सेना द्वारा थोप दिए गए बर्बर युद्ध का समय रहा है. इस दौर में भी तमाम किस्म की चुनौतियांं का सामना करते हुए का. सुदामा प्रसाद ने लड़ाई जारी रखी. कई गंभीर किस्म के झूठे मुकदमों में उन्हें साजिशन फंसाया गया, काम करना मुश्किल कर दिया गया. तब का. सुदामा ने भोजपुर जिले के बाहर के इलाकों में संघर्षों की शुरूआत की और कई जिला में बेहद उल्लेखनीय काम किया.
का. सुदामा प्रसाद का चुनावी इतिहास
- आरा विधानसभा – 1990
- आरा विधानसभा – 2005
- बक्सर लोकसभा – 2009
- जगदीशपुर विधानसभा – 2010
- तरारी विधानसभा – 2015 (बाहुबली सुनील पांडेय की पत्नी को हराया)
- तरारी विधानसभा – 2020 (फिर से जीत हासिल की)
विभिन्न जिम्मेवारियां जो उन्हें मिली
1978-82 – युवा नीति के साथ सक्रियता
1984-89 – आरा-रोहतास आइपीएफ के सचिव
1985 – आइपीएफ के बिहार राज्य संयुक्त सचिव
1998 – पार्टी की ओर से शेखपुरा जिला के प्रभारी
2000-04 – कटिहार जिला के प्रभारी
2011 – अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव
का. सुदामा प्रसाद फिलहाल भाकपा (माले) की राज्य स्थायी समिति के सदस्य तथा अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय संगठन सचिव भी हैं. अब नई जीत के साथ भोजपुर जिला के सांसद के रूप में नई जिम्मेदारी के लिए तैयार हैं.
pncb