उच्चकों का अड्डा ‘सासाराम स्टेशन’
सावधान! यहां पलक झपकते ही बैग काट माल ले उड़ते हैं उचक्के
पत्रकार परिवार का हैंड बैग काट सोने के झुमके सहित 10 हजार नकदी उड़ाए
सासाराम, 26 अप्रैल. वैसे तो रेलवे स्टेशन ही हर तरह के लोगों का आशियाना होता है क्योंकि माल बेंचने से लेकर माल की डिलवरी और माल उड़ाने तक का काम इन्ही स्टेशनों पर कई तरह के गैंग अपनी सक्रियता से करते हैं. लेकिन सासाराम रेलवे स्टेशन जैसे इस मामले में अव्वल है. यहाँ स्टेशन परिसर से लेकर इस रूट की सभी गाडियों में इन उच्चकों का नेटवर्क इस कदर बिखरा है कि यात्री इनकी नजरों के स्कैनर के बगैर नही गुजर पाते. दूसरी ओर रेल प्रशासन कुंभकर्णी निंद्रा में ऐसे सोया रहता कि प्रशासन के स्कैनर इन चोर-उचक्कों को कभी स्कैन ही नही कर पाते.
इन चोर-उच्चकों द्वारा हर रोज कई यात्रियों के पर्स, मोबाइल, गहने और नकदी गायब होते रहते है जो रो-कर अपनी किस्मत को कोसते हैं और रेल पुलिस प्रशासन उन्हें बस सांत्वना देकर बिना किसी FIR के रफा-दफा कर अपनी इज्जत बचाने की जुगाड़ में रहता है. इन चोर-उच्चकों की करतूत का भंडाफोड़ उस समय हो गया जब उच्चकों ने पटना नाउ के पत्रकार ओ पी पांडेय की माँ का ही पर्स काट उसमे से 10 हजार रुपये और सोने का झुमका उड़ा प्लेटफार्म ही घटना को अंजाम दे दिया. घटना गुरुवार की सुबह लगभग 9.30 बजे का है. पटना-भभुआ इंटरसिटी एक्सप्रेस से ओ पी पांडेय अपनी माँ, लीलावती पांडेय को लेकर सासाराम एक रिलेटिव के यहां शादी में जा रहे थे. सासाराम स्टेशन पर उतरने के बाद उक्त घटना बाहर निकलने के क्रम में ही प्लेटफार्म नम्बर 4 पर घटी. घटना को इतनी सफाई से उचक्कों ने अंजाम दिया कि किसी को बैग काटने की भनक तक नही लगी. बैग से जब मोबाइल गिरा तो एक सज्जन ने लीलावती पांडेय को आवाज दी कि बहन जी आपका मोबाइल गिरा. मोबाइल उठाने के बाद जब उन्होंने अपना बैग देखा तो उन्हें सांप सूंघ गया. हैंड बैग को किसी धारदार ब्लेड से काटा हुआ था. उन्होंने अपने बेटे को आवाज लगाई फिर उन्होंने प्लेटफार्म पर ऐसे संदिग्ध व्यक्ति की काफी तलाश की लेकिन जब कोई नही मिला तब जाकर GRP सासाराम में प्राथमिकी दर्ज की.
GRP ने कहा-“मोबाइल लेकर अगर चोर भागे रहते तो हम तुरन्त पकड़ लेते”
अपनी प्रथमिकी दर्ज करने पहुंचे पत्रकार और उनकी माँ को पहले तो GRP ने समझा कर वापस भेजना चाहा पर जब प्रथमिकी के लिए जिद्द की तो GRP थानाध्यक्ष ओम प्रकाश पासवान ने सिपाहियों को भेज संदिग्ध को खोजने का आदेश दिया लेकिन कुछ हाथ नही लगा. उन्होंने कहा कि मोबाइल लेकर अगर चोर भागे रहते तो हम तुरन्त पकड़ लेते. गहना और पैसा मिलना टेढ़ी खीर है. GRP प्रभारी के अनुसार गांव में सीमित आदमी और चौकीदार की वजह से किसी को पकड़ना आसान होता है जबकि शहर में स्टेशन पर हजारों भीड़ पता नही किन गांवों से आती है, जिसमे शरीफ के चोले में भी चोर और उचक्के होते हैं. ऐसे चोरों को पकड़ना मुश्किल होता है. रेल प्रशासन के इस जवाब से यह तो साफ हो गया कि रेल परिसर से लेकर रेल के डब्बों तक आप बिना किसी चेकिंग और टिकट के बेहिचक कहीं भी आराम से जा सकते हैं. तो ऐसे में रेल पुलिस का क्या काम?
कैसे चलता है ये तालमेल ?
सूत्रों की माने तो रेल पुलिस और चोर-उचक्कों की साँठ-गाँठ से यह धंधा फलता फूलता है. स्टेशन परिसर में 9 बजे रात्रि के बाद सारे उचक्कों का जमवाड़ा परिसर के चाय दुकान के पास होता है जहाँ से यात्रियों के आने जाने पर अपने गुर्गों को उनके पीछे लगा चोरी या छिनतई की घटनाओं को अंजाम देते हैं. याब सवाल यह उठता है कि क्या परिसर में ऐसे असामाजिक तत्वों की CCTV कैमरों से मॉनिटरिंग नही होती है? अगर होती है तो फिर कार्रवाई क्यों नही होती?
पटना नाउ ब्यूरो की रिपोर्ट