पटना इप्टा के 30वें नगर सम्मेलन के दूसरे दिन रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की रचना ‘‘संस्कृति के चार अध्याय’’ पर व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए पटना विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. तरूण कुमार ने कहा कि आज़ादी की लडा़ई के अंतिम दौर में गाँधी ने यूँ ही विभाजन का विरोध नहीं किया था.वे पहले राजनेता थे, जिन्होंने विभाजन के बाद होने वाले घातक परिणाम को पहचान लिया था और आज़ादी की कीमत पर भी बंटवारे का विरोध कर थे. प्रो. कुमार ने संस्कृति की भारत के संदर्भ में व्याख्या करते हुए कहा कि ‘संस्कृति कोई बनी बनाई चीज नहीं है, बल्कि भारत जैसे विशाल,विस्तृत,विराट और प्राचीन देश में वन टाईम अफेयर भी नहीं है.यह एक नदी के समान प्रवाहमान है बावजूद इसके यह नदी केवल नदी रहती है, गंगा, यमुना नहीं बनती. उन्होंने बताया कि रामधारी सिंह दिनकर ने 1956 ई0 में ‘संस्कृति के चार अध्याय’ को प्रकाशित कराया और इसके बहाने संस्कृति,धर्म पर गहरी और साहित्यिक नजर रखी, राष्ट्रवाद और धर्म को मनुष्य को सहज प्रवृति बताया. उन्होंने कहा कि एक ओर जहां फासीवाद व्यक्ति के राष्ट्रवाद को भ्रष्ट बनाता है,वहीं दूसरी ओर साम्प्रदायिकता मनुष्य के धर्म को भ्रष्ट बनाता है.
भारत में धर्म की आधुनिक व्याख्या करते हुए प्रो0 तरूण कुमार ने कहा कि धर्म भारत के जीवन में इतनी सहजता से रचा बसा है और इसे अलग नहीं कर सकते. साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता मनुष्य को असहज बनाता है और यह कभी भी भारतीयों के साथ नहीं रही. भारत का हर व्यक्ति जितना धर्मनिष्ठ है वहीं दूसरे धर्म को सम्मान करने वाला भी है. इसकी आस्था को रामकृष्ण परमहंस,विवेकानंद रविन्द्रनाथ टैगोर,गाँधी के विचारों में देख सकते हैं.इन लोगों ने धर्म को राष्ट्रीय पहचान के के रूप में जोड़ा. हिन्दुत्व को संकीर्णता से बाहर निकाला. दिनकर की रचना को रेखांकित करते हुए प्रो0 कुमार ने कहा कि आज पूरे भारत को एक ओर जहां आतंकवाद का भूत सता रहा है, वहीं दूसरी ओर साम्प्रदायिकता का भूत भी संकट में डाल रहा है. धर्म को आत्मतुष्टि के साथ संकीर्णता को पोषित किया जा रहा है और इसे आज की सत्ता पोषित कर रही है. उन्होंने आगे कहा कि जो चीज भूखों मरती जनता के लिए उपयोगी हो सकती है, वही सबसे सुन्दर होगी और मैं ऐसी कला-साहित्य चाहता हूँ जो लाखों से बात करें. हिन्दु-मुस्लिम समस्या का यही समाधान है कि मुसलमान के अंदर यह पुष्ट हो कि यह हिन्दुस्तान उनका देश है और हिन्दुओं को यह भूल जाना चाहिए कि सिर्फ गोरी,गजनी हिन्दुस्तान का इतिहास हैं.
प्रो0 तरूण कुमार ने कहा कि यह सवाल हम सबको जरूर पुछना चाहिए कि यदि भारत में अंग्रेज नहीं आते तो क्या हिन्दु-मुस्लिम संबंध वैसे ही होते जैसे आज हैं? या संस्कृतियों का आपसी मिलाप सम्पूर्णता पर होता? व्याख्यान में हस्तक्षेप करते हुए मगध विष्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो0 जावेद अख्तर खाँ ने कहा कि ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के प्रारंभ में ही दिनकर ने पहले ही पृष्ठ पर महाभारत का श्लोक लिखा, जिसका तात्पर्य है ‘वो धर्म धर्म नहीं है, जो दूसरे के धर्म में बाधा पहुँचाये. जो दूसरे के धर्म में बाधा पहुँचाये, वह कुधर्म है’ जावेद ने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ को कोई इतिहास का व्यावसायिक किताब नहीं बल्कि हिन्दी की वैचारिकी बताया,यानि साहित्यकार के नजरिये से संस्कृति और धर्म के विचार को प्रस्तुत किया जा रहा है उन्होंने चारो अध्याय को रेखांकित करते हुए कहा कि दिनकर ने भारत में चार क्रांतियों को अपने पुस्तक आर्यो का आगमान, बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार, इस्लाम का भारत में आगमन और इससे होने वाले बदलाव और अंग्रेजो का आगमन और उससे हुए बदलाव को समाहित किया था. उन्होंने कहा कि एकरंगी संस्कृति हो ही नहीं सकती बल्कि यह साम्राज्यवाद है और आतंकवाद, साम्प्रदायिकता इसकी साजिश है.प्रो.जावेद ने कहा कि भारत में बसने वाली कोई भी जाति यह दावा नहीं कर सकती कि भारत के समस्त मन और विचारों पर उसकी छाप है.आज भारत में जो कुछ भी है उसमें सभी का योगदान है. यही हम यह नहीं समझते, तो भारत को नहीं समझते.व्याख्यान को पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागध्याक्ष प्रो0 मटुक नाथ चौधरी और पटना इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष तनवीर अख्तर ने भी संबोधित किया.
पटना इप्टा के 30वें नगर सम्मेलन के तीसरे दिन 27 अगस्त, 2016 को संध्या 4 बजे से कैफी आज़मी इप्टा सांस्कृतिक केन्द्र,एक्जीबिशन रोड़ पटना में ओम प्रकाश निर्देशित फिल्म ‘लक्ष्मणपुर बाथे’ का प्रदर्शन होगा और ‘आम आदमी के लिए न्याय’ विषय पर चर्चा होगी.चर्चा में प्रो0 विनय कुमार कंठ और बसंत चौधरी भाग लेंगे.