समंदर के हम सिकंदर
- चीन-पाक रहेंगे रडार में
- 450 किमी मारक क्षमता वाली ब्रह्मोस मिसाइल भी तैनात
- भारतीय नौसेना का मिला नया निशान
- 8 साल बाद बदला गया नौसेना का ‘निशान’
- अंग्रेजों का लाल क्रॉस हटाया गया
- 2049 तक दुनिया की सबसे शक्तिशाली नौसेना बनाना
भारतीय नौसेना में नया आईएनएस विक्रांत शामिल हो गया. 43 हज़ार टन वजनी ये जहाज एयरक्राफ्ट कैरियर है, जो पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बना है. इसमें 2200 कंपार्टमेंट हैं और एक बार में 1600 से ज्यादा नौसैनिक रह सकते हैं. आईएनएस विक्रांत के आने से हिंद महासागर में भारत की ताकत और बढ़ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विक्रांत नौसेना को सौंप दिया. ये एयरक्राफ्ट कैरियर पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बना है. इसके साथ ही नौसेना के पास अब दो एयरक्राफ्ट कैरियर हो गए हैं. आईएनएस विक्रांत के अलावा आईएनएस विक्रमादित्य भी भारत के पास है. आईएनएस विक्रांत के आने से हिंद महासागर में भारत की ताकत बढ़ गई है.
नौसेना के वाइस चीफ वाइस एडमिरल एसएम घोरमाडे ने बताया कि आईएनएस विक्रांत के आने से हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर में शांति और स्थिरता बढ़ेगी. उन्होंने बताया कि आईएनएस विक्रांत पर एयक्राफ्ट का लैंडिंग ट्रायल नवंबर में शुरू होगा और 2023 के मध्य तक ये पूरा हो जाएगा. अमेरिका, यूके, रूस, चीन और फ्रांस के बाद भारत भी अब उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जिनमें स्वदेशी तकनीक से एयरक्राफ्ट कैरियर को बनाने की क्षमता है. आईएनएस विक्रांत की 76% चीजें भारत में बनीं हैं.
भारत के पहले एयरक्राफ्ट कैरियर का नाम ‘विक्रांत’ ही था. ये वही जहाज था जिसने 1971 की जंग के दौरान भारत की ओर बढ़ रही पाकिस्तानी पनडुब्बी ‘गाजी’ को रोक दिया था. इस जहाज को भारत ने 1961 में ब्रिटेन की रॉयल नेवी से खरीदा था. 1997 में इसे डिकमिशंड कर दिया गया था. अब जब भारत ने स्वदेशी तकनीक से एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया, तो वही नाम बरकरार रखा. वो आईएनएस विक्रांत भी हिंद महासागर में भारत की बड़ी ताकत था और नया आईएनएस विक्रांत भी बड़ी ताकत होगा. समंदर में ताकत बढ़ाने के लिए एयरक्राफ्ट कैरियर सबसे अहम हथियारों में से एक है. ये इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि ये न सिर्फ समंदर में बेड़ों की सुरक्षा कर सकता है, बल्कि इससे हथियार दागे जा सकते हैं और लड़ाकू विमानों के साथ-साथ हेलिकॉप्टर भी तैनात किए जा सकते हैं.
समंदर में अपना दबदबा दिखाने के लिए एयरक्राफ्ट कैरियर जरूरी है. यही वजह है कि 10 साल में चीन ने तीन एयरक्राफ्ट कैरियर उतार दिए हैं. चीन का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर लियाओनिंग 2012 में आया था. उसके बाद 2012 में उसने स्वदेशी तकनीक से दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर शैंडोंग उतारा. इसी साल जून में चीन की नौसेना में तीसरा एयरक्राफ्ट फुजियान शामिल हुआ है. भारत के पास अब 2 एयरक्राफ्ट कैरियर हो गए हैं. हालांकि, एक्सपर्ट का मानना है कि चीन और पाकिस्तान की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को अभी भी कम से कम एक और एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है. पाकिस्तान के पास एक भी एयरक्राफ्ट कैरियर नहीं है.
13वीं सदी तक हिंद महासागर पर भारत का दबदबा रहा था. कारोबार के लिए भारतीय इसी समुद्री रास्ते का इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन बाद में भारत का इससे दबदबा कम होता रहा. मुगलों के काल में समुद्री मामलों पर खास ध्यान नहीं दिया गया. नतीजा ये हुआ कि अरबों का इस पर एक तरह से एकाधिकार हो गया. प्रशांत और अटलांटिक महासागर के बाद तीसरा सबसे बड़ा महासागर यही है. ये 7.5 करोड़ किलोमीटर में फैला हुआ है. ये महासागर एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा है.आज दुनियाभर में 80% तेल हिंद महासागर के तीन संकरे समुद्री रास्तों से गुजरकर ही पहुंचता है.
हिंद महासागर में चीन लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है. इसके लिए वो देशों को कर्ज के जाल में फंसा कर वहां के बंदरगाहों पर कब्जा कर रहा है या फिर सैन्य ठिकाने बना रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से 7 पर चीन का कब्जा है. इसके अलावा लगभग 63 देशों के 100 से ज्यादा बंदरगाहों पर भी चीन ने कब्जा कर रखा है. कर्ज के जाल में फंसाकर चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को 40 साल के लिए लीज पर ले लिया है. वहीं, अफ्रीकी देश जिबूती के बंदरगाह पर भी 350 मिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है. हाल ही में सैटेलाइट तस्वीरों में सामने आया था कि जिबूती बंदरगाह पर चीन की नौसेना ने अपना बेस बना लिया है.
चीन का मुकाबला करने के लिए भारत ने ओमान के दुकम पोर्ट पर बेस बनाया है. यहां से भारत का कच्चा तेल अरब सागर और हिंद महासागर की ओर जाता है. वहीं, भारत का निकोबार द्वीप काफी अहम है, क्योंकि ये चीन के कारोबार को रोक सकता है. यहां से चीन का 70% तेल और 60% कारोबार रुक सकता है. हाल ही में भारत ने अंडमान-निकोबार को दुनिया के ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में विकसित करने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया है. लेकिन भारत को घेरने के लिए चीन जिबूती, पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका की कमजोर आर्थिक स्थिति का फायदा उठा सकता है. ऐसे में विक्रांत भारत के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है.
एक्सपर्ट का मानना है कि हिंद महासागर में चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाना होगा. चीन-म्यांमार संबंधों पर नजर रखने वाले एक एक्सपर्ट ने न्यूज एजेंसी को बताया था कि चीन-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर के जरिए चीन की पहुंच म्यांमार के बंदरगाह तक हो जाएगी. वहीं, हाल ही में अमेरिकी नौसेना की इंटेलिजेंस रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ था कि समंदर में चीन तेजी से अपनी ताकत बढ़ा रहा है. उसका मकसद 2030 तक समंदर पर नियंत्रण रखना और 2049 तक दुनिया की सबसे शक्तिशाली नौसेना बनना है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक चीन की नौसेना के पास 67 बड़े जहाज और 12 नई परमाणु पनडुब्बियां भी होंगी. म्यांमार के एक्सपर्ट का कहना था कि चीन अपनी नौसेना पर कितना खर्च करता है, इसका तो सटीक आंकड़ा नहीं है, लेकिन चीन का सैन्य खर्च 252 अरब डॉलर है, जो भारत के सैन्य खर्च (73 अरब डॉलर) से तीन गुना ज्यादा है. उनका कहना था कि हिंद महासागर में चीन को रोकने के लिए अमेरिका को भारत के साथ आना चाहिए.
- एक नजर में आईएनएस विक्रांत विशेषताएं
- लागत – 20 हजार करोड़, वजन- 45000 टन
- लंबाई- 262 मीटर, चौड़ाई- 62 मीटर (फुटबॉल के दो ग्राउंड के बराबर)
- स्पीड- 28 नॉट्स समुद्री मील
- कंपार्टमेंट – 2300, जवान- 1500-1700
- भारत का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट, इसमें लगे 76% उपकरण स्वदेशी हैं.
- 30 एयरक्राफ्ट (20 लड़ाकू विमान, 10 हेलिकॉप्टर खड़े हो सकेंगे) ( मिग 29 फाइटर जेट, कामोव 31 हेलिकॉप्टर, मल्टी रोल हेलिकॉप्टर भर सकेंगे उड़ान)
- 15 डेक, हॉस्पिटल, महिला जवानों के लिए विशेष कोच
- आईएनएस विक्रांत से 32 बराक 8 मिसाइल दागी जा सकेंगी
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