भारत को फासीवादी दर्शाने के पीछे ग्लोबल मीडिया का हाथ
वैश्विक मीडिया और दुनिया के पास भारत के बारे में सही जानकारी ही नहीं
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डेमोनाइजिंग अ डेमोक्रेसी’ सेशन के तहत यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के एसोसिएट प्रोफेसर और सोशियोलॉजिस्ट सैल्वाटोर बेबोनेस ने भारतीय लोकतंत्र, फासीवाद और वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को लेकर एक चैनल के कार्यक्रम में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे सफल लोकतंत्र है. भारत ने उपनिवेशवाद से बाहर निकलकर खुद को ग्लोबल स्तर पर साबित किया है. हंगर इंडेक्स, प्रेस फ्रीडम सहित एक के बाद एक कई इंटरनेशनल रैंकिंग में भारत की बुरी स्थिति से जुड़े सवाल पर प्रोफेसर बेबोनेस कहते हैं कि इन रैंकिंग्स को गलत तरीके से तैयार किया गया है. वह कहते हैं कि इन रैंकिंग्स को दरअसल सर्वे के आधार पर तैयार किया जाता है. अब सवाल ये है कि ये सर्वे किन लोगों पर किए जाते हैं, इनमें इंटेलेक्चुअल वर्ग से जुड़े लोग, विदेश और भारत के छात्र, एनजीओ और मानवाधिकार संगठनों से जुड़े लोग होते हैं. इन रैंकिंग्स में भारत को गलत आंका जाता है.
उन्होंने कहा कि हमने भारत में सांप्रदायिक हिंसाओं की खूब बातें सुनी हैं, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में लेकिन रवांडा और बुरुंडी जैसे देशों में लगभग उतनी ही सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं, जितनी यूपी में. लेकिन हिंसा की इन घटनाओं को लेकर विश्वस्तर पर यूपी का नाम जोर-शोर से लिया गया. बिहार में ठीक वहीं हालात हैं जो कांगो में हैं. सवाल यह है कि भारत की एक छवि गढ़ ली गई है, जो खतरनाक बात है.
पहली बार भारत के दौरे पर आए प्रोफेसर बेबोनेस ने कहा कि भारत को फासीवादी दर्शाने के पीछे ग्लोबल मीडिया का हाथ है. उन्होंने कहा कि भारत की वैश्विक छवि को जो चीजें प्रभावित करती है, वह सही जानकारी का अभाव है. वैश्विक मीडिया और दुनिया के पास भारत के बारे में सही जानकारी ही नहीं है. उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि भारत का बुद्धिजीवी वर्ग देश विरोधी है. यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं यहां वर्ग की बात कर रहा हूं, किसी व्यक्ति विशेष की नहीं. यह बुद्धिजीवी वर्ग मोदी विरोधी भी है और भारतीय जनता पार्टी का भी विरोधी है.
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