चंद्रमा पर करीब 14 लाख गड्ढे हैं. 9137 से ज्यादा क्रेटर की पहचान की गई है
चांद पर न तो पानी है. न ही वायुमंडल. न ही धरती की तरह टेक्टोनिक प्लेट
पृथ्वी और चंद्रमा की कहानी लगभग एकसाथ शुरू होती है. ये बात है करीब 450 करोड़ साल पुरानी. तब से लेकर अब तक दोनों पर लगातार अंतरिक्ष से आने वाले पत्थर, उल्कापिंड गिरते रहते हैं. इनके गिरने से गड्ढे बनते हैं. इन्हें इम्पैक्ट क्रेटर भी कहते हैं. धरती पर अभी तक ऐसे 180 इम्पैक्ट क्रेटर खोजे गए हैं. चंद्रमा पर करीब 14 लाख गड्ढे हैं. 9137 से ज्यादा क्रेटर की पहचान की गई है. 1675 की तो उम्र भी पता की गई है. लेकिन वहां हजारों गड्ढे हैं. जिन्हें इंसान देख भी नहीं पाया है. क्योंकि उसके अंधेरे वाले हिस्से में देखना मुश्किल है. ऐसा नहीं है कि चांद की सतह पर मौजूद गड्ढे सिर्फ इम्पैक्ट क्रेटर हैं. कुछ ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से भी बने हैं. करोड़ों साल पहले. नासा ने चंद्रमा पर सबसे बड़ा गड्ढा 17 मार्च 2013 को देखा था. जब एक 40 किलोग्राम का पत्थर चांद की सतह से 90 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से टकराया था. इस टक्कर से जो गड्डा बना वो बेहद बड़ा है. उसे आप जमीन से भी देख सकते हैं. अगर टेलिस्कोप लगाकर देखेंगे तो आपको बेहद शानदार नजारा देखने को मिलेगा.
चांद पर न तो पानी है. न ही वायुमंडल. न ही धरती की तरह टेक्टोनिक प्लेट. इसलिए वहां पर मिट्टी कटती नहीं. इरोशन नहीं होता. कम होता है. इसलिए ये क्रेटर पटते नहीं हैं. बने रहते हैं. जबकि धरती पर ऐसे गड्ढों पर मिट्टी जम जाती है. पानी भर जाता है. पेड़-पौधे उग जाते हैं. जिसकी वजह से गड्ढे पट जाते हैं. चंद्रमा पर बने ज्यादातर गड्ढों की उम्र 200 करोड़ साल है. यानी चांद जब बना तब उसपर इतने गड्ढे नहीं थे. बनने के करीब 250 साल बाद गड्ढे बनने शुरू हुए. चंद्रमा पर सबसे बड़ा गड्ढा दक्षिणी ध्रुव के पास है. इसे पार करने के लिए आपको इसके अंदर करीब 290 किलोमीटर चलना पड़ेगा. चांद पर मौजूद 13 लाख गड्ढों का व्यास यानी डायामीटर 1 किलोमीटर है. 83 हजार गड्ढों का व्यास 5 किलोमीटर है. 6972 गड्ढे ऐसे हैं, जिनका व्यास 20 किलोमीटर से ज्यादा है.
इस समय चांद के चारों तरफ 170किमी x 4313किमी वाली अंडाकार ऑर्बिट में घूम रहा है. इसरो वैज्ञानिक चंद्रयान-3 को लेकर तय तारीखों से आगे चल रहे हैं. वह अभी जिस कक्षा में है, उसे वह 9 अगस्त 2023 को हासिल करना था. लेकिन वह पहले ही इस ऑर्बिट में घूम रहा है. अब देखना ये है कि इसरो वैज्ञानिक इस अब कितनी दूरी वाले ऑर्बिट में डालते हैं. 9 अगस्त के बाद 14 तारीख की दोपहर 12.04 बजे इसका ऑर्बिट बदला जाएगा. फिर 16 अगस्त को यही काम किया जाएगा. हर बार इसकी दूरी को घटाया जाएगा. 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे. 18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी. यानी चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा. लैंडर मॉड्यूल 100 x 35 किमी के ऑर्बिट में जाएगा. इसके बाद 23 की शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी.
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