भगवान श्रीराम के नाना-नानी का नाम क्या था ?
“भगवान राम हमारे भांजा हैं,” छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भगवान राम और राम वन गमन पथ सर्किट के इर्द-गिर्द घूमने वाली परियोजनाओं को आगे बढ़ाते हुए कहा. बघेल ने शिवरीनारायण के पुनर्निर्मित स्थल का उद्घाटन किया, जहां माना जाता है कि शबरी ने भगवान राम के जामुन चढ़ाए थे. बघेल ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि कांग्रेस सरकार ‘नरम हिंदुत्व’ का अनुसरण कर रही है, उनका प्रयास अयोध्या से निर्वासन के दौरान इस क्षेत्र में भगवान राम के प्रवास की यादों को संरक्षित करके राज्य की संस्कृति को बढ़ावा देना है. उन्होंने कहा, “1980 के दशक से पहले, यह उनके एजेंडे में नहीं था. अब, भाजपा भगवान राम के नाम पर वोट मांग रही है. लेकिन, भगवान श्री राम हमारे भांजा (भतीजे) हैं. भगवान राम की माता को समर्पित यह प्रदेश है.बघेल ने कहा, “माता कौशल्या छत्तीसगढ़ मां की बेटी हैं और छत्तीसगढ़ भगवान राम का नाना है, जो इस प्रकार हमारे भांजा हैं.
पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम की माता कौशल्या, कौशल प्रदेश की राजकुमारी थीं. माता कैकेयी की तरह माता कौशल्या का नाम भी उनके प्रदेश पर आधारित था. उनके पिता का नाम सुकौशल और माता का नाम अमृतप्रभा था. कौशल प्रदेश कहां स्थित है. इतिहासकारों एवं विद्वानों ने अलग-अलग वर्णन किया है. कुछ लोग इसे वर्तमान छत्तीसगढ़ मानते हैं तो कुछ इतिहासकार उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का क्षेत्र. एक हिंदू ग्रंथ में दक्षिण भारत (ओडिशा) का भी उल्लेख है लेकिन एक चीज सामान है और वह यह कि कौशल प्रदेश एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमानी देश था. राजकुमारी कौशल्या के विवाह योग्य होने पर वर की तलाश में चारों दिशाओं में दूत भेजे गए. उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ ने साम्राज्य विस्तार अभियान के तहत कुश स्थल के राजा सुकौशल को मैत्री या युद्ध का संदेश भेजा. राजा सुकौशल को भ्रम हो गया कि अयोध्या के राजा दशरथ उनके राज्य को अपने अधीन करना चाहते हैं.
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स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता प्रिय होने के कारण उन्होंने युद्ध का विकल्प चुना. दोनों के बीच घोर युद्ध हुआ. अंतत: राजा सुकौशल पराजित हो गए. तब राजा दशरथ ने उन्हें अपने अधीन नहीं किया बल्कि मैत्री का प्रस्ताव रखा. राजा दशरथ के मधुर व्यवहार पर राजा सुकौशल मोहित हो गई. उन्होंने इस मैत्री को संबंध में बदलने का प्रस्ताव रखा और इसी के चलते राजा सुकौशल ने बेटी कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से करा दिया. राजा दशरथ ने देवी कौशल्या को महारानी का गौरव और सम्मान दिया, जिसने कौशल्या की नम्रता को और अधिक विकसित किया. आरम्भ से ही कौशल्या जी धार्मिक थीं. वे निरन्तर भगवान की पूजा करती थीं, अनेक व्रत रखती थीं और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं. माता कौशल्या ने कभी भी राम तथा भरत में भेद नहीं किया. पुराणों में कश्यप और अदिति के दशरथ और कौशल्या के रूप में अवतार भी माना गया. पुराणों में कहा गया है कि प्राचीन काल में मनु और शतरूपा ने वृद्धावस्था आने पर घोर तपस्या की. दोनों एक पैर पर खड़े रहकर ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करने लगे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वर माँगने को कहा. मनु ने बड़े संकोच से अपने मन की बात कही- “प्रभु! हम दोनों की इच्छा है कि किसी जन्म में आप हमारे पुत्र रूप में जन्म लें.” ‘ऐसा ही होगा वत्स!’ भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- त्रेतायुग में मेरा सातवां अवतार राम के रूप में होगा.
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