पटना (अनुभव सिन्हा की लेखनी से) | बड़ी दिलचस्प स्थिति बनती जा रही है. इतनी पैनी राजनीति पहले कभी नहीं देखी गई. पूरे देश में विपक्ष नफा-नुकसान में लगा है लेकिन नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एकजुटता पर बोलने से पीछे नहीं है. बिहार में तो स्थिति और दिलचस्प है. यह माना जा रहा है कि राजद-कांग्रेस गठबंधन एनडीए को जबरजस्त टक्कर देने की हर तैयारी में जुटा है. लेकिन बिहार की सियासत कुछ और ही इशारे कर रही है. राजद की समझ जहां एनडीए को कमजोेर करने की है वहीं अन्य दल उसकी इस सियासत से इत्तफाक नहीं रखते. कायदे से तो अभी कुछ भी ठोस तरीके से नहीं कहा जा सकता लेकिन जो खबर है वह बेहद मजेदार है.
खबर यह है कि कांग्रेस पार्टी की तरफ से ऐसी पहल हो सकती है जिसमें जदयू , एलजेपी और रालोसपा मिलकर एक मजबूत गठबंधन बनाएं और उसमें राजद की कोई जगह न हो. मुमकिन हो तो भाकपा माले को छोड़ वामपंथी दलों को भी लिया जा सकता है. नीतीश कुमार को यह जंच भी सकता है. उनकी अपनी वजह है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री होने के नाते जहां जदयू को राजद से जूनियर होना पंसद नहीं है वहीं इस बार एनडीए में जदयू का बड़े भाई की भूमिका में होना भी कड़े सवालों से भरा पड़ा है. राजनीतिक मौसम विज्ञानी राम बिलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा दोनो सीएम से सम्पर्क में बताए जाते हैं. असल मुद्दा नीतीश कुमार की उस प्रतिष्ठा का है जो एनडीए छोड़ने के पहले उन्हें प्राप्त था. अब उस पर खरोंच लगने की पूरी गुंजाईश है. इससे नीतीश जी व्यथित भी हैं. यह गठबंधन यदि स्वरूप लेता है तो गम्भीर अर्थों में बिहार का भला होगा. अलग-थलग पड़ने की स्थिति में राजद की चुनौती का कोई मतलब नहीं रह जायेगा. फिर भी यह चर्चा है. अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. सियासत है तो और भी बहुत कुछ देखने-सुनने को मिलेगा.