गोली खाकर गिरते रहे फिर भी ऊंचा कर दिया तिरंगे का मान




जरा याद करो कुर्बानी

शहीद सात महान बिहारी सपूत

1. उमाकान्त प्रसाद सिंह- राम मोहन राय सेमीनरी स्कूल के 12 वीं कक्षा के छात्र थे. इनके पिता राजकुमार सिंह थे. वह सारण जिले के नरेन्द्रपुर ग्राम के निवासी थे.

2 रामानन्द सिंह- ये राम मोहन राय सेमीनरी स्कूल पटना के 11 वीं कक्षा के छात्र थे. इनका जन्म पटना जिले के ग्राम शहादत नगर में हुआ था. इनके पिता लक्ष्मण सिंह थे .

3. सतीश प्रसाद झा-सतीश प्रसाद का जन्म भागलपुर जिले के खडहरा में हुआ था. इनके पिता जगदीश प्रसाद झा थे. वह पटना कालेजियत स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र थे.

4. जगपति कुमार- इस महान सपूत का जन्म गया जिले (वर्तमान में औरंगाबाद) के खराठी गांव में हुआ था.

5. देवीपद चौधरी- इस महान सपूत का जन्म सिलहर जिले के अन्तर्गत जमालपुर गांव में हुआ था. वे मीलर हाईस्कूल के 9वीं कक्षा के छात्र थे.

6. राजेन्द्र सिंह- इस महान सपूत का जन्म सारण जिले के बनवारी चक ग्राम में हुआ था. वह पटना हाईस्कूल के 11वीं के छात्र थे.

7. राय गोविन्द सिंह- इस महान सपूत का जन्म पटना जिले के दशरथ ग्राम में हुआ. वह पुनपुन हाईस्कूल में 11वीं के छात्र थे.

पटना और बिहार के लिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 11 अगस्त 1942 का दिन बेहद खास है. ब्रिटिश राज में इसी दिन पटना के सचिवालय पर तिरंगा फहराने जा रहे सात छात्र पुलिस की गोली का शिकार बने थे. बिहार विधानमंडल भवन के सामने इन सात शहीदों की प्रतिमाएं आजादी के संघर्ष में बिहार के बलिदान की कहानी बयान करती हैं.नौ अगस्त 1942 को पूरे देश के साथ आंदोलन की चिगारी पटना में भी भड़क उठी. घर-घर आजादी के गीत गाये जाने लगे. कॉलेजों में छात्र-शिक्षक सभी आजादी का पाठ करने लगे थे.

11 अगस्त की सुबह शहर आजादी के रंग में रंगा नजर आ रहा था. अशोक राजपथ होते हुए आंदोलनकारियों का जत्था बांकीपुर पहुंचा, जहां एक सभा हुई. इसके बाद आंदोलनकारी सचिवालय की ओर बढ़ने लगे. सचिवालय पहुंचते ही आंदोलनकारियों पर सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज कर दिया. जत्थे में शामिल छात्र इससे विचलित हुए बगैर आगे बढ़ते रहे. इनके जत्थे ने एक तिरंगा थाम रखा था. इरादा तिरंगे को सचिवालय पर फहराने का था. पटना के जिलाधिकारी मिस्टर आर्चर ने छात्रों को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन छात्र अपने इरादे पर अडिग थे.

 मिलर हाई स्कूल में नौवीं के छात्र देवीपद चौधरी जिनकी उम्र महज 14 साल थी, जत्थे में सबसे आगे चल रहे थे. वह सिलहट के जमालपुर गांव के रहने वाले थे. झंडा लिये देवीपद को आगे बढ़ते देख सैनिकों ने उनके सीने में गोली मार दी. तिरंगे जमीन पर गिरता, इससे पहले पुनपुन हाई स्कूल के छात्र रायगोविद सिंह ने थाम लिया. उन्हें भी गोली लगी और वीरगति को प्राप्त हो गए. एक-एक कर राममोहन राय सेमिनरी के छात्र रामानंद सिंह, पटना हाई स्कूल गर्दनीबाग के छात्र राजेंद्र सिंह, बीएन कॉलेज के छात्र जगपति कुमार, पटना कॉलेजिएट के छात्र सतीश प्रसाद झा ने तिरंगा थामा और अंग्रेजों की गोली खाकर वीरगति को प्राप्त हुए. जगपति को तो एक साथ तीन गोलियां लगीं. सबसे आखिर में तिरंगे को थामा राममोहन राय सेमिनरी के 15 वर्षीय छात्र उमाकांत ने. छह साथियों की शहादत के बाद भी वह निडरता के साथ आगे बढ़े. गोली लगी और उमाकांत गिर पड़े, लेकिन तिरंगे को सचिवालय पर लगाकर अपना लक्ष्य पूरा किया.

शहीद स्मारक

शहीद स्मारक , जिसे शहीद स्मारक के नाम से भी जाना जाता है , भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त 1942) में शहीद हुए सात युवाओं की एक आदमकद प्रतिमा है, जो अब सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराती है . शहीद स्मारक की आधारशिला 15 अगस्त 1947 को बिहार के राज्यपाल श्री जयराम दास दौलतराम द्वारा बिहार के प्रधान मंत्री श्री कृष्ण सिन्हा और उनके डिप्टी अनुग्रह नारायण सिन्हा की उपस्थिति में रखी गई थी. पटना सचिवालय के बाहर स्थित ,शहीद स्मारक भारतीयों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए किए गए बलिदान के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व के रूप में खड़ा है. यह उन सात युवाओं की आदमकद प्रतिमा है, जिन्होंने सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति दी थी.

देवी प्रसाद रॉय चौधरी निर्मित पटना का शहीद स्मारक

मूर्तिकार देवी प्रसाद रॉयचौ धरी ने सात छात्रों की कांस्य प्रतिमा का निर्माण किया राष्ट्रीय ध्वज. ये मूर्तियाँ इटली में बनाई गई थीं और बाद में यहाँ रखी गईं. उन्होंने अपनी पहली पेंटिंग की शिक्षा प्रसिद्ध बंगाली चित्रकार अबनिंद्रनाथ टैगोर के मार्गदर्शन में ली . उन्होंने बोइस नामक एक इतालवी चित्रकार से पश्चिमी शैली में जीवन-चित्रण और चित्रांकन के बारे में भी शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद हिरण्मय रॉय चौधरी के मार्गदर्शन में मूर्तिकला प्रशिक्षण लिया गया, जिन्होंने उन्हें आकृतियों को तराशने के बजाय निर्माण करना सिखाया. रॉय चौधरी प्रत्येक उद्दंड व्यक्ति के दृढ़ रवैये और आंदोलन की सहजता को प्रदर्शित करते हैं जो पूरी रचना की ताकत पर जोर देता है. यह मूर्ति भारत की स्वतंत्रता के बाद बनाई गई थी और अक्टूबर 1956 में राजेंद्र प्रसाद द्वारा इसका अनावरण किया गया था.

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By pnc

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