500 बेड वाले 630 करोड़ की लागत से निर्मित ईएसआईसी अस्पताल की ग्राउंड रिपोर्ट
13 माह पहले 50 बेड का हुआ था उद्घाटन पर अभी डिस्पेंसरी की तरह मिल रही ओपीडी सेवाएं
बिहटा/पटना | सूबे में स्वास्थ्य सेवाओं का आज भी क्या हाल है ये किसी से छिपी हुई बात नहीं है. 10 वर्ष पूर्व के हालात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. अच्छे अस्पताल व इलाज की व्यवस्था नहीं होने के कारण भारी संख्या में लोग दिल्ली सहित अन्य राज्यों में जाने को मजबूर थे. इसमें बीमित श्रमिक भी शामिल थे. इन परेशानियों के मद्देनजर वर्ष 09 में बिहार के बीमित श्रमिकों के लिये केंद्र की सरकार ने 500 बेड का अस्पताल बनाने की बड़ी घोषणा कर दी. केंद्र के इस फैसले से श्रमिकों में खुशी की लहर दौड़ गई. राज्य की सरकार ने भी इसका स्वागत किया और अस्पताल के लिये बिहटा के सिकदंरपुर में 25 एकड़ जमीन उपलब्ध करा दिए. तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका शिलान्यास किया. अस्पताल निर्माण कराने वाली कंपनी को 2 साल में निर्माण की जवाबदेही दी गई थी. श्रमिकों को लगा कि अब उनके दिन बहुरेंगे. स्वास्थ्य संबंधी सभी तरह की परेशानी एक छत के नीचे हल हो जाएंगे. लेकिन 2साल में पूरा होने वाला उनका ये सपना 10 साल बाद भी हकीकत नहीं बन सकी. अस्पताल भवन निर्माण में विलंब का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़कर सभी अपने जिम्मेदारी से बचते रहे. लोगों की लगातार मिल रही शिकायतों पर चुनाव में जाने के पूर्व केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने अस्पताल का निरीक्षण किया तथा ईएसआईसी के अधिकारियों से आनन- फानन में 100 बेड अस्पताल चालू करने की 7 जुलाई 2018 को डेड लाइन घोषित कर दी. इस आदेश पर तेजी से कार्रवाई शुरू हुआ, लेकिन उद्घाटन के दिन श्रमिकों को पता चला कि 100 नहीं महज 50 बेड ही चालू किया जा रहा है. लोगों ने ये सोचकर संतोष व्यक्त किया चलो चालू तो हुआ. लेकिन 13 माह बीत जाने के बाद भी अभी ये अस्पताल डिस्पेंसरी से आगे नहीं बढ़ सका है. क्यूंकि मॉडल डिस्पेंसरी में भी 6बेड पर इनडोर की व्यवस्था होती है.
50 बेड के लिये चाहिए 39 चिकित्सक बहाल हुए 17, पारामेडिकल स्टॉफ 89 के जगह 24 की प्रतिनियुक्ति
13 माह पूर्व हुए उद्घाटन में 50 बेड चालू करने की घोषणा की गई थी. बताया जाता है कि 50 बेड चालू करने के लिये जो चिकित्सक व पारामेडिकल स्टॉफ जरूरी है उसमें चिकित्सकों की संख्या 39 बताई गई है. जिसमें 26 डीजीएमओ व 13 स्पेस्लिस्ट चिकित्सक होने चाहिए. लेकिन महज 17 चिकित्सक बहाल हो सके है. इसमें चार स्पेस्लिस्ट है जो मानक से काफी कम है. इसके साथ पारामेडिकल स्टॉफ 89 चाहिए. इसमें नर्सिंग 52, ओटी के लिये 5, प्लास्टर में 4, पैथोलॉजी में 3, फार्मेसी में 4 एवम नर्सिंग ऑर्डरली में 21 स्टॉफ चाहिए. लेकिन मात्र 24 की ही अभी तक प्रतिनियुक्ति की जा सकी है.
ईएसआईसी को इनडोर शुरू करने के लिये ढूंढे नहीं मिल रहा एनेस्थीसिया का डॉक्टर
अस्पताल में इनडोर व्यवस्था शुरू करने के लिये एनेस्थीसिया के डॉक्टर की सख्त जरूरत होती है. क्यूंकि मरीज को किसी भी तरह के ऑपरेशन में बगैर उनके काम नहीं चल सकता है. लेकिन कई बार विज्ञापन निकाले जाने के बावजूद ये मामला सुलझ नहीं सका. बताया जाता है कि इस बार जिन चिकित्सको ने इच्छा जताई थी. उनके योगदान की अंतिम तिथि 14 अगस्त है. अगर इसके बाद भी चिकित्सक नहीं आते है तो दूसरा विकल्प तलाशा जाएगा.
उद्घाटन के समय केंद्रीय मंत्री ने जल्द 300 बेड चालू करने का दिया था आश्वासन
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार, डिप्टी सीएम सुशील मोदी, केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव, बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, श्रम मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने श्रमिकों के बहुप्रतीक्षित अस्पताल का उद्घाटन संयुक्त रूप से किया. केंद्रीय मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने तब माना था कि ईएसआईसी का ये अस्पताल लंबे अड़चनों से जूझ रहा था जिसे गति देकर चालू कराया गया ताकि बिहार जो श्रमिकों का एक बड़ा राज्य है. यहां के लोगों को परेशानियों का सामना नही करना पड़े. उन्होंने कहा था जल्द ही इसे 300 बेड करने की योजना है ताकि यहां मेडिकल कॉलेज की मान्यता मिल जाये और श्रमिकों को सारी सुविधाएं मिलने लगे. हमारे देश के अंदर मजदूर एक बड़ा हिस्सा है. महज 6 करोड़ श्रमिक ही बीमित है, जिन्हें सभी प्रकार की सुविधा मिल रही है. जबकि 40 करोड़ मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते है. हमारी सरकार के मुखिया पीएम नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद इस बड़ी आबादी के परिवार के जीवन की सुरक्षा पर चिंता जताई थी. इसी के मद्देनजर श्रम कानून जो पहले काफी जटिल थे उन्हें तर्कसंगत बनाया जा रहा है. जिससे कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिले और उसे हासिल करने में परेशानी का सामना नही करना पड़े. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिये केंद्र की ओर से विशेष योजना चलाई जा रही है. जिसमें केंद्र व राज्य को 171 रुपये का अंशदान देना है. इस राशि से उनकी संरक्षा सुनिश्चित की जाएगी. कई राज्यों मे इस पर काम शुरू किया जा चुका है. लगभग 3 करोड़ मजदूर इस योजना से जुड़ भी गए है. उन्होंने कहा कि आनेवाले दिनों में केंद्र की सरकार श्रमिकों के सभी पहलुओं पर काम कर मोदी सरकार के स्वस्थ भारत के परिकल्पना को साकार करेगी. लेकिन ऐसे हालात को देखकर नहीं लगता कि मंत्री जी की चिंता से अधिकारियों को कोई मतलब है.
50 बेड में हालात ऐसे तो कैसे शुरू होगा तीन सौ बेड व कॉलेज
अस्पताल की इस व्यवस्था व तैयारी को देखकर तरह तरह के सवाल बीमित श्रमिकों के ही नहीं आम लोगों के मन में उठने लगे है. जिसका कोई जवाब देने वाला नहीं है. लोगों का कहना था कि ये अस्पताल 500 बेड का है. जब 50 बेड में विभाग को ढूंढे चिकित्सक व स्टाफ नहीं मिल रहे है तो मेडिकल कॉलेज के लिये 300 बेड कैसे चालू होगा. इस मामले में ईएसआईसी के अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे है.
10 रुपया रजिस्ट्रेशन फी के बावजूद नहीं बढ़ी बाहरी लोगों की संख्या
अस्पताल में केंद्र सरकार की ओर से बाहरी लोगों के इलाज की भी व्यवस्था की गई है. दवा भी कम रेट पर मिलना है. लेकिन बिहटा में दूसरे चिकित्सकों के करीब 400 रुपया देकर 500 से अधिक मरीज दिखा रहे है. वहीं इस अस्पताल में 10 रुपया में तीन चिकित्सकों से परामर्श की सुविधा के बावजूद संख्या अभी तक 20- 25 पहुंची है. आईपी की संख्या मात्र 100 के पार.
जल्द शुरू होगा इनडोर – एमएस
अस्पताल के एमएस डॉ असीम लोगानी ने बताया कि जिस प्रकार का संसाधन हमारे पास उपलब्ध है. उसमें हम बेहतर कर रहे है. अस्पताल में हमने डिलीवरी व सर्पदंश के मरीज का इलाज किया है. जल्द इनडोर व्यवस्था शुरू की जाएगी.
(ब्यूरो रिपोर्ट)