जलवायु परिवर्तन के फौरी खतरे के मद्देनजर जैविक खेती का महत्व कई गुना बढ़ा
उत्तराखंड से लेकर बंगाल तक 1657 ग्राम पंचायतों में जैविक खेती प्रणाली विकसित की जाएगी
देश में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना एवं जैविक मूल्य संवर्धित विकास योजनाएं
जलवायु परिवर्तन के फौरी खतरे के मद्देनजर जैविक खेती का महत्व कई गुना बढ़ गया है. इसलिए सरकार ने देश में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत देश में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और जैविक मूल्य संवर्धित विकास योजनाएं शुरू की हैं. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने विज्ञान भवन में जैविक खेती पर आयोजित एक कार्यशाला में यह कहा. राधा मोहन सिंह ने कार्यशाला में उपस्थित लोगों को पंडित दीन दयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना के बारे में भी जानकारी दी.
मंत्री ने कहा कि परंपरागत कृषि विकास योजना ऐसी पहली विस्तृत योजना है जिसे केन्द्र द्वारा प्रयोजित कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया है. इस योजना का कार्यान्वयन राज्य सरकारें कर रही हैं जिसका आधार प्रत्येक 20 हेक्टेयर खेत को निर्धारित किया गया है और इसके संबंध में क्लस्टर बनाएं गए हैं. क्लस्टरों के तहत किसानों को अधिकतम एक हेक्टेयर जमीन के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है और भारत सरकार ने तीन वर्ष की निर्धारित अवधि के दौरान प्रत्येक हेक्टेयर भूमि के लिए 50,000 रुपए निर्धारित किए हैं. इस संबंध में 10,000 क्लस्टरों का लक्ष्य रखा गया है जिसके दायरे में 2 लाख हेक्टेयर का रकबा निर्धारित है.
राधा मोहन सिंह ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए केन्द्रीय क्षेत्रीय योजना-जैविक मूल्य संवर्धित विकास योजना शुरू की है. यह योजना 2015-16 से 2017-18 के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में कार्यान्वित की जाएगी. इसके संबंध में पूर्वोत्तर क्षेत्र के किसानों की क्षमता को ध्यान में रखा जाएगा. योजना का उद्देश्य वास्तविक जैविक उत्पादों को मूल्य संवर्धित आधार पर विकसित करना है. इसके तहत उपभोक्ता बीज प्रामाणीकरण, प्रसंस्करण, विपरण आदि गतिविधियों से जुड़ सकेंगे. सम्पूर्ण मूल्य संवर्धित विकास के लिए सहायता दी जाएगी. उन्होंने कहा कि योजना के लिए तीन वर्ष की अवधि के संबंध में 400 करोड़ रुपए को मंजूरी दी गई है.
मंत्री ने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना के नाम से एक नई योजना शुरू की है ताकि भारतीय युवाओं की प्रतीभा को खोजा जा सके. ग्रामीण भारत के समग्र विकास के लिए यह योजना शुरू की गई है. इस योजना का कार्यान्वयन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि शिक्षा प्रखंड द्वारा किया जा रहा है. सिंह ने बताया कि ग्रामीण स्तर पर प्रशिक्षकों को चुना जाएगा, ताकि प्रशिक्षण केन्द्रों का गठन किया जा सके और प्राकृतिक/जैविक/सतत खेती/ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जानकारी प्रदान की जा सके. इन केन्द्रों के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे. देशभर में लगभग 100 प्रशिक्षण केन्द्र बनाए जाएंगे, जिनमें इस योजना के तहत कृषि अनुसंधान परिषद/मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा चलाए जाने वाले अग्रिम भारत अभियान के लिए विभिन्न गतिविधियों के संबंध में अध्यापकों की भागीदारी सुनिश्चित हो.
राधा मोहन सिंह ने गंगा नदी के किनारे जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के संबंध में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बीच हुए समझौतें का उल्लेख किया. इस योजना के तहत परंपरागत कृषि विकास योजना के परिप्रेक्ष्य में 1657 क्लस्टरों के तहत विकास और गंगा के किनारे उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक 1657 ग्राम पंचायतों में चलने वाली नामामि गंगे परियोजनाओं के आधार पर एक जैविक खेती प्रणाली विकसित की जाएगी.
मंत्री ने उपस्थित व्यक्तियों को यौगिक खेती के बारे में जानकारी दी. सिंह ने कहा कि किसान सबसे पहले योग प्रक्रिया के आधार पर बीजों का प्रसंस्करण करते है यानी बीजों को अलौकिक शक्तियों द्वारा संचारित किया जाता है, जिससे उनकी उगने की क्षमता बढ़ती है. राज योग से भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और उसका माइक्रो मेटाबोलिज्म सक्रिय हो जाता हैं. इससे पौधे और उसकी जड़ मजबूत होती है. किसान तरंगों के आधार पर पौधों को शांति और प्रेम का संदेश देते हैं जिससे उनकी शुद्धता बढ़ती है और फसल की प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है. परिणामस्वरूप उत्पादकता बढ़ती है. फसल में प्रोटीन जैसे तत्वों की मात्रा बढ़ती है और फसल की पोषणता, शुद्धता तथा गुणवत्ता में भी इजाफा होता है.