जय श्री महाकाल
ॐ गं गणपतये नमः ॥
गजाननं भूत गणाधिसेवितम् । कपित्थजम्बूफलसारभक्षितम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारणम् ।
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
गजानन, ॐ गजवदन । हेरम्ब गजानन ॥ मूषक वाहन गजानन । मोदक हस्त गजानन ॥ पाहि पाहि, गजानन । पार्वति नन्दन गजानन॥
श्री गणेश अग्रपूज्य हैं, गणों के ईश गणपति हैं और स्वस्तिक रूप तथा प्रणव स्वरूप भी हैं। उनके स्मरण मात्र से ही संकट दूर होकर शांति और समृद्धि आ जाती है
माता-पिता : शिव और पार्वती
भाई-बहन : कार्तिकेय और अशोक सुंदरी
पत्नी : प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि।
पुत्र : सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है।
प्राचीन प्रमाण : दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र है। ऋग्वेद में ‘गणपति’ शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है।
गणेश ग्रंथ : गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेशजी की आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र।
गणेश संप्रदाय : गणेश की उपासना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते हैं।
गणेशजी के 12 नाम : सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन।
अन्य नाम : अरुणवर्ण, एकदन्त, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन।
गणेश का स्वरूप : वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।
प्रिय भोग : मोदक, लड्डू
प्रिय पुष्प : लाल रंग के
प्रिय वस्तु : दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
अधिपति : जल तत्व के
प्रमुख अस्त्र : पाश, अंकुश
वाहन : मूषक
गणेशजी का दिन : बुधवार।
गणेशजी की तिथि : चतुर्थी।
ग्रहाधिपति : केतु और बुध
गणेश पूजा-आरती : केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है।
उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।॥।
श्री गणेश मंत्र : ॐ गं गणपतये नम:।
ऋद्धि मंत्र : ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम:।
सिद्धि मंत्र : ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम:।
लाभ मंत्र : ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:।
शुभ मंत्र : ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:।
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
यह मंत्र अपार लक्ष्मी देने वाला है। गणेशजी की पूजा करने के बाद गणेश कुबेर मंत्र का 11 दिन तक नियमित रूप से जाप करने से व्यक्ति को धन के नवीन स्त्रोत मिलना आरंभ होते हैं। जीवन में खुशियां दस्तक देने लगती है।
हर संकट से बचाएंगे श्रीगणेश के ये 21 नाम
1- ऊँ सुमुखाय नम:
2- ऊँ गणाधीशाय नम:
3- ऊँ उमापुत्राय नम:
4- ऊँ गजमुखाय नम:
5- ऊँ लंबोदराय नम:
6- ऊँ हरसूनवे नम:
7- ऊँ शूर्पकर्णाय नम:
8- ऊँ वक्रतुण्डाय नम:
9- ऊँ गुहाग्रजाय नम:
10- ऊँ एकदंताय नम:
11- ऊँ हेरम्बाय नम:
12- ऊँ चतुर्होत्रे नम:
13- ऊँ सर्वेश्वराय नम:
14- ऊँ विकटाय नम:
15- ऊँ हेमतुण्डाय नम:
16- ऊँ विनायकाय नम:
17- ऊँ कपिलाय नम:
18- ऊँ कटवे नम:
19- ऊँ भालचंद्राय नम:
20- ऊँ सुराग्रजाय नम:
21- ऊँ सिद्धिविनायकाय नम
हर प्रकार की सिद्धि दिलाता है गणेश गायत्री मंत्र
ॐ एकदंताया विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि,, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
यह गणेश गायत्री मंत्र है। इस मंत्र का प्रतिदिन शांत मन से 108 बार जप करने से गणेशजी की कृपा होती है। लगातार 11 दिन तक गणेश गायत्री मंत्र के जप से व्यक्ति के पूर्व कर्मो का बुरा फल खत्म होने लगता है और भाग्य उसके साथ हो जाता है।
श्री गणेश श्लोक
ॐ गजाननं भूंतागणाधि सेवितम्, कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम् |
उमासुतम् शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ||
श्री गणेश स्तुति
गाइये गणपति जगवंदन |
शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
सिद्धी सदन गजवदन विनायक |
कृपा सिंधु सुंदर सब लायक़ ॥
मोदक प्रिय मृद मंगल दाता |
विद्या बारिधि बुद्धि विधाता ॥
मांगत तुलसीदास कर ज़ोरे |
बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥
गणेश कुबेर मंत्र
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
यदि व्यक्ति पर अत्यन्त भारी कर्जा हो जाए, आर्थिक परेशानियां आए-दिन दुखी करने लगे। तब गणेशजी की पूजा करने के बाद गणेश कुबेर मंत्र का नियमित रूप से जाप क रने से व्यक्ति का कर्जा चुकना शुरू हो जाता है तथा धन के नए स्त्रोत प्राप्त होते हैं जिनसे व्यक्ति का भाग्य चमक उठता है।
“कैसे हुआ श्रीगणेश का विवाह”
भगवान गणेश का सिर हाथी का था। लेकिन, जब उनका विवाद भगवान परशुराम से हुआ तो युद्ध में उनका एक दांत भी टूट गया। इसलिए उन्हें एक दंत भी कहा जाता है।
इन दो कारणों से उनसे कोई भी देव कन्या विवाह के लिए तैयार नहीं थी। इस बात से अमूमन गणेशजी नाराज रहा करते थे। और जब किसी अन्य देवता का विवाह होता तो उन्हें किसी न किसी तरह कष्ट पहुंचाते।
इस कार्य में उनका चूहा भी साथी होता, वह विवाह के मंडप में जाकर उसे खोखला कर देता और इस तरह विवाह में किसी न किसी तरह विघ्न हो जाता है। सारे देवता इस बात को लेकर परेशान थे।
सभी देवता परेशान हो गए और वह शिवजी के पास गए। शिव-पार्वती ने सलाह दी कि देवगण आपको इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्माजी के पास जाना चाहिए। सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे तब वह योग में लीन थे।
लेकिन कुछ देर बाद योगबल से दो कन्याएं अवतरित हुईं। जिनके नाम ब्रह्मा जी ने ऋद्धि और सिद्धि रखें। यह ब्रह्मा जी की मानस पुत्रियां थीं। उन दोनों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और कहा वह उन्हें शिक्षा दें।
गणेशजी तैयार हो गए। जब भी चूहा गणेशजी के पास किसी के विवाह की सूचना लाता तो ऋद्धि और सिद्धि ध्यान बांटने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं।
इस तरह विवाह भी निर्विघ्न होने लगे। एक दिन चूहा आया और उसने देवताओं के निर्विघ्न विवाह के बारे में बताया तब गणेश जी को सारा मामला समझ में आया।
गणेशजी के क्रोधित होने से पहले ब्रह्माजी उनके पास ऋद्धि-सिद्धि को लेकर प्रकट हुए। उन्होंने कहा, आपने स्वयं इन्हें शिक्षा दी है। मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है। आप इनसे विवाह कर लें।
इस तरह ऋद्धि (बुद्धि- विवेक की देवी) और सिद्धि (सफलता की देवी) से गणेशजी का विवाह हो गया। और फिर बाद में गणेश जी के शुभ और लाभ दो पुत्र भी हुए।
मंगल विधान और विघ्नों के नाश के लिए गणेश जी के इस मंत्र का जाप करें।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्।
गणपत्यथर्वशीर्ष
॥ शान्ति पाठ ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा:भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा: स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूर्भिर्व्यशेम देवहितं (देवहितैं) यदायु: ||१|| ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदाः | स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ||२|| ॐ तन्मा अवतु। तद् वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम् ।
॥ॐ शांति : शांतिः शांति : ॥
॥ स्वरूप तत्त्व ॥
ॐ नमस्ते गणपतये || त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि || त्वमेव केवलं कर्तासि || त्वमेव केवलं धर्तासि || त्वमेव केवलं हर्तासि ||त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि || त्वं ( त्वौं ) साक्षादात्मासि नित्यम् ||१||
ऋतम् वच्मि || सत्यं ( सत्यौं ) वच्मि || २||
अव त्वं माम्|| अव वक्तारम् || अव श्रोतारम् || अव दातारम् || अव धातारम् || अवानूचानमव शिष्यम् || अव पश्चात्तात्|| अव पुरस्तात् || अवोत्तरात्तात् || अव दक्षिणात्तात् || अव चोर्ध्वात्तात् || अवाधरात्तात् || सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात् ||३||
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय: || त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममय: || त्वं ( त्वौं ) सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि | त्वं ( त्वौं ) प्रत्यक्षं ब्रह्मासि | त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ||४||
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते || सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति || सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति || सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति ||
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ: || त्वं चत्वारि वाक्पदानि ||५|| त्वं गुणत्रयातीत: | त्वं देहत्रयातीत: | त्वं कालत्रयातीत: | त्वं अवस्थात्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् || त्वं ( त्वौं ) शक्तित्रयात्मक: | त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् || त्व्ं ब्रह्मा त्वं विष्णुस् त्वं रुद्रस् त्वं इन्द्रस् त्वम् अग्निस् त्वं ( त्वौं ) वायुस् त्वं सूर्यस् त्वं चंद्रमास् त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोS म् ||६||
॥ गणेश मंत्र ॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम् | अनुस्वार: परतर: | अर्धेन्दुलसितम् | तारेण ऋद्धम् | एतत्तव मनुस्वरूपम् | गकार: पूर्वरूपम् | अकारो मध्यमरूपम् | अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् | बिंदुरुत्तररूपम् | नादः संधानम् || संहिता (सौंहिता ) संधिः | सैषा गणेशविद्या | गणक ऋषि: | निचृद्गायत्रीछंदः गणपतिर्देवता | ॐ गं गणपतये नम: ||७||
॥ गणेश गायत्री ॥
एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि | तन्नो दंती प्रचोदयात् || ८ ||
॥ गणेश रूप (ध्यानम्)॥
एकदंतं चतुर्हस्तम् पाशमंकुशधारिणम् || रदं च वरदं ( वरदौं ) हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् | रक्तम् लंबोदरम् शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् || रक्तगन्धानुलिप्ताड्गम् रक्तपुष्पै: सुपूजितम् |भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् | आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृते: पुरुषात्परम् || एवं ध्यायति यो नित्यम् स योगी योगिनां(उं) वर: ||९||
॥ अष्ट नाम गणपति ॥
नमो व्रातपतये नमो गणपतये नम: प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय विघ्ननाशिने शिवसुताय श्री वरदमूर्तये नम: || १० ||
।।फलश्रुति।।
एतदथर्वशीर्षम् योऽधीते || स ब्रह्मभूयाय कल्पते || स् सर्वविघ्नैर्न बाध्यते || स सर्वत: सुखमेधते || स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते || सायमधीयानो दिवसकृतम्पापम् नाशयति || प्रातरधीयानो रात्रिकृतम्पापम् नाशयति || सायं प्रात: प्रयुंजानो अपापो भवति || सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति | धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति || इदम्अथर्वशीर्षम्अशिष्याय न देयम्|| यो यदि मोहाद्दास्यति || स पापीयान्भवति || सहस्रावर्तनात्यं (यैं) यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्||११||
अनेन गणपतिम् अभिषिंचति || स वाग्मी भवति || चतुर्थ्यामनश्नञ्जपति || स विद्यावान्भवति || इत्यथर्वणवाक्यम्|| ब्रह्माद्यावरणं (णौं) विद्यात्|| न बिभेति कदाचनेति || १२ ||
यो दूर्वांकुरैर्यजति || स वैश्रवणोपमो भवति || यो लाजैर्यजति || स यशोवान्भवति || स मेधावान्भवति || यो मोदकसहस्रेण यजति || स वांछितफलमवाप्नोति || यः साज्यसमिदभिर्यजति || स सर्वम् लभते स सर्वम् लभते || अष्टौ ब्राह्मणान्सम्यग्राहयित्वा || सूर्यवर्चस्वी भवति || सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति || महाविघ्नात्प्रमुच्यते | महादोषात्प्रमुच्यते || महापापात्प्रमुच्यते || स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति || य एवं वेद इत्युपनिषत्||१३||
॥ शान्ति मंत्र ॥
ॐ सहनाववतु ॥ सहनौभुनक्तु ॥ सह वीर्यं करवावहै ॥ तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥ स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥ स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः ॥।
॥ इति श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं समाप्तम् ॥
परमपिता सदाशिव और मां जगदंबा ने भगवान गणेश को उत्पन्न किया है, मनुष्य को सुख समृद्धि देने के लिए। इसलिए परमेश्वर ने सबसे पहले गणपति की पूजा का आदेश दिया है। जिस घर में गणपति का प्रेम से आह्वान किया जाता है, वहां गणपति जरुर विराजते हैं और साथ जाती हैं उनकी पत्नियां ऋद्धि और सिद्धि। जिसकी वजह से उस स्थान पर खुशियां ही खुशियां बिखर जाती हैं। क्योंकि गणपति बाप्पा और देवी ऋद्धि-सिद्धि के साथ उनके बेटे शुभ और लाभ भी उस घर में हमेशा के लिए डेरा डाल देते हैं। जिस घर में ऋद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ एक साथ विराजमान हों वहां दुख और दरिद्रता कोसों दूर तक भी नहीं फटकती है।
इसलिए गणेश जी की पूजा करिए उनके साथ ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ स्वयं ही आ जाएंगे। गणपति का दिन बुधवार माना जाता है। गणोबा की कृपा पाने के लिए लिखें
श्री गणेशाय नम:
सुख-समृद्धि आपके घर में स्थायी रुप से निवास करेंगी। जय गणेश !
भगवान गणेश के १२ नाम लेने से सभी प्रकार की मनोकामना पूरी होती है।
यह १२ नाम सुनकर श्री गणेश विशेष प्रसन्न होते है।
वास्तव में जीवन की रक्षा कवच है श्री गणेश के १२ पवित्र नाम।
इन्हें श्री गणेश के सामने धूप व दीपक लगाकर बोलों –
१ वक्रतुंड
२ एकदंत
३ कृष्णा पिंगाक्ष
४ गज वक्त्र
५ लंबोदर
६ विकट
७ विघ्न राजेन्द्र
८ घुरमवर्ण
९ भालचंद्र
१० विनायक
११ गणपति
१२ गजानन
आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा .
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा ..
एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी,
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी .
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा ..
अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया .
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा,
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
जय श्री महाकाल
जय श्री गणेश
ज्योतिषाचार्य
पंडित अजय दुबे
महाकालेश्वर उज्जैन
WhatsApp नंबर 7389565090