फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटीज टीचर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार (फुटाब) ने राजभवन, विश्वविद्यालयों और शिक्षा विभाग के बीच कई महीनों से चल रहे गतिरोध के समाधान का स्वागत किया है और इसमें शिक्षा मंत्री सुनील कुमार और एसीएस एस सिद्धार्थ की सकारात्मक भूमिका की सराहना की है. उन्होंने एक ऐसी स्थिति को सामान्य बनाया जिसने अब तक विश्वविद्यालयों के कामकाज को ठप्प कर रखा था.
फुटाब के कार्यकारी अध्यक्ष कन्हैया बहादुर सिन्हा और महासचिव विधान पार्षद संजय कुमार सिंह ने कहा कि जिस तरह से शिक्षा विभाग ने कुलाधिपति और कुलपतियों को उचित सम्मान देकर गतिरोध को समाप्त करने का काम किया है, वह इस आमधारणा की पुष्टि करता है कि उच्च शिक्षा संस्थानों के वैधानिक अधिकारियों को नीचा दिखाकर और संविधान के साथ-साथ विश्वविद्यालय अधिनियम और क़ानून के प्रावधानों को दरकिनार करके एक व्यक्ति की मर्जी से नहीं चलाया जा सकता है.
उन्होंने आशा व्यक्त की है कि वेतन, पेंशन और बकाया भुगतान के तरीके और अवधि के संबंध में लिए गए निर्णय तय समय सीमा के भीतर लागू किए जाएंगे.
विदित है कि विवादों की वजह से बैंक खातों पर प्रतिबंध लग गया, कुलपतियों के वेतन पर रोक और शिक्षा विभाग के कुछ अवैध और अनधिकृत निर्णयों के खिलाफ असहमति व्यक्त करने वाले शिक्षकों के वेतन/पेंशन पर रोक , जिससे न केवल गंभीर नाराजगी हुई, बल्कि हजारों शिक्षकों और कर्मचारियों को महिनों वगैर वेतन/ पेंशन गंभीर आर्थिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा.
सबसे अधिक पीड़ित पारिवारिक पेंशनभोगी और गंभीर रूप से बीमार लोग हुए हैं. इतना अमानवीय रवैया पहले कभी नहीं देखा गया था. उन्होंने आगे कहा कि सम्मानजनक समाधान और कुलपतियों की गरिमा की बहाली के बाद, अब यह कुलपतियों का दायित्व है कि वे विश्वविद्यालयों को अधिनियम और परिनियमों के प्रावधानों के अनुसार विश्वविद्यालय को अत्यधिक पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन बनाए रखते हुए भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन चलाने का गंभीर प्रयास करेंगे.
उन्होंने कहा कि FUTAB विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और उसकी गरिमा की रक्षा के लिए चट्टान की तरह खड़ा रहा है ऐसे में विश्वविद्यालयों में किसी भी अनियमितता के खिलाफ आवाज उठाने से महासंघ कभी भी पीछे नहीं हटेगा. विश्वविद्यालयों को ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे सरकार को हस्तक्षेप करने पर मजबूर होना पड़े.
उन्होंने बताया कि फेडरेशन ने पहले नए एसीएस को एक ज्ञापन भेजकर शिक्षकों को किसी भी संघ को बनाने या उसमें शामिल होने से रोकने वाले आदेश को वापस लेने की मांग की थी. विभाग द्वारा इसे अनुशासनहीनता की श्रेणी में रखते हुए कठोर दंडात्मक कार्रवाई का आदेश दिया था जबकि ऐसा करना संविधान अनुच्छेद 19 से 21 के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार के विरुद्ध था.
ज्ञापन में शिक्षा विभाग से सीधे भुगतान के प्रस्तावित तरीके को खत्म करने की भी मांग की गई थी.
इसमें एनपीएस के प्रभावी कार्यान्वयन, बाल देखभाल अवकाश कानूनों की मंजूरी और पीएचडी धारक नव नियुक्त शिक्षकों को अग्रिम वेतन वृद्धि की भी मांग की गई.
वेतन और पेंशन का समय पर भुगतान सुनिश्चित करने, एनईपी के प्रभावी कार्यान्वयन और शैक्षणिक सुधार और छात्रों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रिया पर विचार हेतु सरकार के साथ विस्तृत बातचीत करने की भी इच्छा जताई.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल हितधारकों के साथ नियमित बातचीत ही सुधार ,सहयोग और समझ के लिए एक प्रभावी साधन हो सकती है.
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