दंगल के बाद बदलेगी लोगों की सोंच

By pnc Dec 22, 2016

100 करोड़ के क्लब में शामिल होगी फिल्म 

लोगों के मन से हटेगा लड़का लड़की  का भेदभाव 




दंगल नहीं देखा तो तो क्या देखा 

फिल्म की स्क्रीनिंग में लोगों ने दंगल को सराहा है फिल्म अच्छी बन पड़ी है. परिवार के साथ आप इस फिल्म को देख सकते है और इस फिल्म को देखने में मज़ा भी आएगा. कहानी भी अच्छे से फिल्माई गई है.इस फिल्म के निर्देशक है नितेश तिवारी और कलाकार के रूप में दिखेंगे आमिर खान, साक्षी तंवर, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा व् अन्य.

क्या है कहानी

महावीर फोगाट देश के लिए मेडल जीतना चाहते थे. जीत नहीं पाए. बेटा पैदा करने की आस लिए रहे. लेकिन बेटियां पैदा होती रहीं. महावीर के मन में देश के लिए मेडल जीतने का जूनून था. धुन सवार थी कि अपने बेटे से वो करवाएंगे जो खुद न कर सके. जब बेटियां पैदा होने के कारण निराश हो गए, मालूम पड़ा कि ‘छोरियां किसी छोरे से कम हैं के?’, और लगा दिया दोनों बेटियों को ट्रेनिंग में. बेटियों के सलवार कमीज़ शॉर्ट्स और टीशर्ट में बदल गए. लोग ताने देते रहे. गांव वाले तरह तरह की बातें करते रहे लेकिन  लेकिन महावीर ने हिम्मत नहीं हारी. लड़कियों ने खूब लड़कों को चित्त किया. और बड़ी बेटी गीता बन गई नेशनल चैंपियन. जब भटकने लगी, तो बाप ने संभाल लिया. और धीरे-धीरे कॉमनवेल्थ गेम्स में देश के लिए गोल्ड मेडल जीत लाई.

फिल्म गीता और बबिता फोगाट कि असल जिंदगी पर बनी है. लेकिन फिल्म को देखते हुए आप पाएंगे कि ये गीता और बबिता से ज्यादा महावीर फोगाट की कहानी है. और महावीर फोगाट को एक रेसलर से ज्यादा आमिर खान के कैरेक्टर को एस्टेब्लिश करने में खर्च हुई है.

महावीर कुश्ती लड़ता था. लेकिन गोल्ड जीतने का उसका सपना पूरा न हो सका. ये उसी तरह है जैसे चक दे इंडिया में कबीर खान खुद को हारा हुआ महसूस करते हैं. और अपनी मेहनत, लगन और सच्चाई का प्रूफ देने के लिए औरतों की हॉकी टीम के कोच बन जाते हैं. चाहे चक दे की हॉकी टीम हो, या गीता-बबिता, पूरा खेल एक पुरुष (एक बड़ा स्टार : शाहरुख़/आमिर) के पर्सनल लक्ष्य को पूरा करने के लिए है. फर्क सिर्फ इतना है कि चक दे में लड़कियां अपनी मर्जी से हॉकी खेल रही थीं. और दंगल में उनसे जबरन कुश्ती लड़वाई जा रही है. जो खुद को साबित करती हैं.

 

 

 

 

 

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