जब बेटे ने पिता की सेवा के लिए छोड़ दी नौकरी

By Amit Verma Jun 19, 2017

फादर्स डे पर पटना नाउ में एक ऐसे बेटे की कहानी जिसने अपनी नौकरी छोड़ जिंदगी पिता की सेवा में लगा दी. ऐसे पिता के समर्पित पुत्र को फादर्स डे पर पटना नाउ की यह सौगात

कहते हैं मां के चरणों में स्वर्ग होता है. मां बिना जीवन अधूरा है. लेकिन, अगर मां जीवन की सच्चाई है तो पिता जीवन का आधार. मां बिना जीवन अधूरा है तो पिता बिना अस्तित्व अधूरा है. जीवन तो मां से मिल जाता है लेकिन, जीवन की परेशानियों से निबटना पिताजी ही सिखाते हैं. सभी पिता चाहते हैं कि उनका बेटा बड़ा होकर एक बेहतर इंसान बने. जो बुढ़ापे में उनकी असहाय अवस्था में सहारा बने. एक ऐसे ही शख्सियत हैं ब्रह्मपुर प्रखंड के भदवर निवासी राधेश्याम तिवारी. जिन्होंने अपने पिता के लिए न सिर्फ अपनी नौकरी बल्कि अपनी पत्नी व बेटे-बेटियों का भविष्य दांव पर लगा दिया. वे कहते हैं कि पिता एक छतरी की तरह हैं जिनके नहीं रहने के बाद ही उनकी कमी का एहसास होता है. पिता अगर पास हैं तो बच्चे को असुरक्षा का एहसास नहीं होता. हर पिता की भी यह ख्वाहिश होती है कि उनका बेटा कुछ ऐसा करे कि सीना चौड़ा हो जाय.




पिता की सेवा के लिए छोड़ी नौकरी

बात वर्ष 1978 की है. जब पिताजी रिटायर होकर गांव आये थे. वे लकवाग्रस्त हो गए. उनके भारी भरकम शरीर किसी और से संभाल नहीं हो सकता था. तब मैंने नौकरी छोड़ उनकी सेवा करने का फैसला किया. हालांकि, कई लोगों ने इसका विरोध किया इसके बावजूद गांव पर ही रहकर मां के साथ पिता की सेवा में लग गया. उनका खाना-पीना से लेकर नित्य क्रिया क्रम सबकुछ अपने से किया. खेती भी नहीं करा पा रहा था. इधर, छोटे भाई को यूपीएससी की तैयारी कराता रहा. मेरे बच्चे भी बड़े हो रहे थे. बड़ी बेटी की शादी चिंता से पर थी. घर की माली हालत खराब होने लगी. तभी वर्ष 1990 में पिताजी को अल्सर हो गया. गांव के डक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए. गांववालों से कर्ज लेकर उनका इलाज कराने पटना गया. वहां डॉक्टर ने 30 हजार रुपये खर्च बताया. किसी तरह इलाज कराकर घर लाया. लकवाग्रस्त होने के साथ इतनी बड़ी बिमारी में भी अनवरत 24 वर्षों तक पिताजी की सेवा की.

पिता की सेवा से बने आदर्श पुत्र 

वर्ष 2002 में उनकी मृत्यु हो गयी. उनका पेंशन मिलना भी बंद हो गया. अब पारिवारिक हालात इतने खराब हो चले थे कि बच्चों को पढ़ाना संभव नहीं हो रहा था. लेकिन, पिता की सेवा का प्रतिफल हुआ कि उनकी मृत्यु के वर्ष में ही भाई माधव जी यूपीएससी पास कर बड़े अधिकारी बन गए. मेरी भी एक नौकरी जिसमे कई वर्षों से केस चल रहा था. उसमे जीत हो गयी. अब मैं बिक्रमगंज महिला कॉलेज में कार्यरत हूं. राधेश्याम तिवारी गांव समेत उस इलाके में पिता किए सेवा का उदाहरण बन गए हैं. उन्होंने कहा कि मैं जो कुछ भी हूं अपने पिताजी की बदौलत हूं. पिता वो आग हैं जो पकाते हैं घड़े रूपी बेटे को लेकिन, जलने से बचा देते हैं.

आरा  से ओपी पांडे

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