आज दुनिया पूरी तरह से कंम्प्यूटर, मोबाइल और LED टीवी पर आकर ठहर गई है. इसने लोगों की जिंदगी आसान बना दी है. काम तेजी से होने लगे हैं. लेकिन इनसबके साथ एक गंभीर चुनौती भी सामने खड़ी है. वो चुनौती है ई कचरे की. जी हां, देश और दुनिया के ज्यादातर शहर ई कचरे के निस्तारण के लिए यूनिट लगा चुके हैं या लगा रहे हैं. वहीं बिहार में ई-कचरे के निस्तारण के लिए कोई यूनिट नहीं है. शहर से दूरदराज में स्थापित कंपनियां अपने कचरे को खुली जगहों पर फेंकती हैं. इसकी वजह से जल के साथ-साथ जमीन और हवा भी प्रदूषित हो रही है.
बिहार विधानसभा में विरोधी दल के मुख्य सचेतक अरूण कुमार सिन्हा ने कहा कि राजधानी पटना सहित राज्य के कई जिले प्रदूषण के मानक अनुसार प्रदूषित शहरों के सूची में आ चुके हैं. बिहार में पेट्रोलियम, थर्मल पावर, गैसीय और एसिड उत्पादन करने वाली 300 से अधिक औद्योगिक ईकाइयां काम कर रही हैं. यहाँ से केमिकल व ई-कचरा निकलता है. ऐसे कचरे को लेकर एसोचैम की रिपोर्ट में खतरा जाहिर होने के बावजूद इनके निस्तारण के लिए बिहार में कोई यूनिट या एजेंसी कार्यरत नहीं है.
उन्होंने कहा कि फैक्ट्रियाँ कचरे को आसपास के क्षेत्रों में फेंकती हैं. इन कचरों से रेडिएशन जबकि गैस व एसिड जैसे कचरे में केमिकल प्रदूषण का खतरा है. अरुण सिन्हा ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने 123 फैक्ट्रियों को चिन्ह्ति किया है जो खतरनाक उत्पादन करती हैं. इसके बावजूद इन कंपनियों के विरूद्ध कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को खतरनाक ई-कचरा के निस्तारण की भी व्यवस्था हेतु शीघ्र युनिट की स्थापना करनी चाहिए ताकि इनके दुष्प्रभावों से होने वाली बीमारियों से लोगों को बचाया जा सके.