नवरात्रि के नौ दिनों का पावन पर्व अब अपने अंतिम पड़ाव पर है. नौ दिनों में प्रतिदिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के आठवें दिन मां के आठवें रूप महागौरी की पूजा-उपासना की जाती है. इनके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है. मां का वाहन वृषभ( बैल) है.
महागौरी के बारे में कहा जाता है कि मां ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी तथा शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था. शिव जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए मां महागौरी का शरीर धूल, मिट्टी से ढंककर काला हो गया था. जब भगवान शंकर ने गंगाजल से इनके शरीर को धोया तब गौरी जी का शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया और तभी से देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुईं. इनकी गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गयी है. इनके सभी वस्त्र और आभूषण भी सफेद हैं.
महागौरी मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..
नवरात्रे के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा का विशेष महत्व हैं. कहा जाता है माँ महागौरी अपने भक्तों को अनेक कष्टो से मुक्त करने वाली माता हैं. इनकी आराधना से मनुष्य के अनेक पाप समाप्त हो जाते हैं. महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है. माता महागौरी की कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं.
नवरात्री के आंठवे दिन विवाहित स्त्रियाँ आस्था के साथ माँ गौरी की पूजा करती हैं तथा सदा सुहागिन रहने का आशिर्वाद मांगती हैं और माता को चुनरी चढ़ाती है. कहा जाता है कुंवारी कन्याओं को माता की पूजा अर्चना करने से मनचाहा वर मिलता है तथा माँ महागौरी अपने भक्तों के सभी दुखों को हरकर उनकों सुखमय जीवन प्रदान करती हैं.
नवरात्र के आठवें दिन प्रातः काल के समय अन्नकूट पूजा यानी कन्या पूजन का भी विधान है. कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन कहा जाता है कि अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता है. कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम है. कन्याओं की आयु 2 वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या रोहिणी, छह वर्ष की कन्या कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा मानी जाती है.
कैसे करें कन्याओं की पूजा:
कन्या पूजन के लिए सबसे पहले पूरी ,हलवा, खीर, भुना हुआ चना आदि तैयार कर लेना चाहिए. सभी प्रकार के भोजन में से पहले मां दुर्गा को भोग लगाना चाहिए. इसके बाद कन्याओं को भोजन के लिए बुलाएं. भोजन कराने से पहले अपने हाथ से कन्याओं का पैर शुद्ध पानी से धोकर उन्हें भोजन के लिए साफ स्थान पर कपड़ा बिछाकर बिठाना चाहिए.
इसके बाद कन्याओं के हाथों में रक्षा सूत्र बांधकर माथे पर रोली का टीका लगाना चाहिए. मां दुर्गा को जिस भोजन का भोग लगाया हो उसे सर्वप्रथम प्रसाद के रूप में कन्याओं को खिलाना चाहिए. इसके बाद उन्हें दक्षिणा में रुपया, सुहाग की वस्तुएं, चुनरी आदि वस्तुएं उपहार में देना चाहिए. अंत में कन्याओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें प्रेम पूर्वक विदा करना चाहिए.
मान्यता है कि नवरात्र की पूजा व व्रत कन्या पूजन के बिना अधूरी होती है. अंतिम दिन जो भी श्रद्धा भाव से कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोजन करवाता है उसकी सारे मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. कुछ लोग नौ कन्याओं के साथ भैरों बाबा के रूप में एक छोटे बालक को भी भोजन करवाते हैं.