कहानियों का संग्रह है ‘उसका फैसला’
साहित्यकार डॉ. नीरज सिंह की सद्य प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण
डॉ. कुंती सिंह को समर्पित है ‘उसका फैसला‘
आरा: कहानी संग्रह ‘उसका फैसला’ डॉ नीरज सिंह की नई पुस्तक का नाम है जिसे अभिधा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है । इस पुस्तक को डॉ. नीरज सिंह ने अपनी जीवन संगिनी डॉ. कुंती सिंह को समर्पित की है । इसका लोकार्पण भी उन्हीं के हाथों एक पारिवारिक आयोजन में सम्पन हुआ था ।
पुस्तक का सार्वजनिक लोकार्पण पटना के जमाल रोड स्थित जनवादी लेखक संघ के राज्य कार्यालय में सुप्रसिद्ध कवि श्रीराम तिवारी , सीटू के पूर्व राज्य महासचिव अरुण कुमार मिश्र, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की पत्रिका ‘ प्राच्यप्रभा ‘ के संपादक चर्चित कवि विजय कुमार सिंह , जनवादी लेखक संघ ,बिहार के सचिव चर्चित युवाकवि कुमार विनीताभ , शिक्षक नेता और साहित्यकार शाह जफर इमाम तथा हिदी और मगही के चर्चित साहित्यकार घमंडी राम के हाथों सम्पन्न हुआ.कार्यक्रम में जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा , बिहार के अध्यक्ष प्रख्यात लोकगायक अशोक मिश्र , राज्य किसान सभा के उपाध्यक्ष अरुण कुमार , आलोचक युगलकिशोर दुबे , डॉ उपेंद्र कुमार यादव , उर्दू के युवा कवि – आलोचक जफर इकबाल , युवा कवि सुनील प्रिय आदि अन्य कई गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.
डॉ नीरज सिंह की कहानियों में है क्या
क्लासिक अंदाज की मुकम्मल संरचना नीरज सिंह की ज्यादातर कहानियों में मिलती है, इसे आप इस संग्रह से गुजरते हुए सहज ही गौर कर सकते हैं। इसके साथ-साथ, इस बात पर भी गौर कर सकते हैं कि वे कहने से अधिक दिखाने की प्रविधि के उस्ताद हैं। उनके यहाँ वाचक का हस्तक्षेप न्यूनतम है। पहली कहानी को छोड़कर लगभग हर कहानी में पाठक स्वयं को ठीक घटित के सामने पाता है, उसका बयान करनेवाले किसी वाचक के सामने नहीं। ऐसा लगता है कि एक जीवन-व्यापार बिना किसी मध्यस्थता के हम तक पहुँच रहा हैऔर घटनाकाल तथा कथाकाल के बीच का अंतर नगण्य होता है। यह कला हमारे समय की कहानियों में लगातार कम होती गई है। साथ ही, एक और चीज जो हमारे समय की कहानियों में कम देखी जाती है, नीरज सिंह के यहाँ अपने आदर्श रूप में मौजूद है और आज के कहानीकार भी शायद उनसे कुछ सीख सकते हैं। वह है, बहुत सहज और रवाँ गद्य जिसे आप बिना किसी अटकाव के पढ़ते चले जाते हैं। उनकी कथाभाषा में ऐसा कसाव है जो बहुत सावधानी से अतिरिक्त की छँटाई करने के बाद ही हासिल होता है। वे उतना ही कहते हैं जितना कहने से घटित हमारे भीतर आकार ले ले और उसे अपनी कल्पना से सँवारने का अवकाश भी हमारे पास हो। भाषा में स्थितियों को जीवंत करने की कोशिश किस हद के बाद प्रति-उत्पादक हो जाती है, इसका गहरा बोध उनकी कथाभाषा में झलकता है। मैं उदाहरण नहीं दूंगा क्योंकि संग्रह की हर कहानी इसका उदाहरण है।
साहित्यकार डॉ नीरज सिंह का परिचय
नीरज सिंह
1954 बड़का डुमरा, आरा, शाहाबाद (सम्प्रति भोजपुर) बिहार
एम.ए. (हिन्दी). पी-एच. डी. प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) स्नातकोत्तर हिन्दी – भोजपुरी विभाग वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा।
प्रकाशन : दूसरा आदम (कहानी-संग्रह)
- 1986 अपनों के बीच (कहानी-संग्रह)
- 2000 प्रतिपक्ष तथा अन्य कहानियाँ (आठवें दशक में प्रकाशित कहानियों का संग्रह) – 2010 कई पुस्तकों एवं पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन
- आठवें दशक से ही चर्चित साहित्यिक पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ, गजलें एवं
- आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित सम्पर्क : वीर कुँवर सिंह नगर, कतिरा, आरा, बिहार-802301