रामधारी सिंह दिनकर स्वतंत्रता पूर्व के विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने जाते रहे है . वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे. एक ओर उनकी कविताओं में ओज विद्रोह आक्रोश और क्रांति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है. इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें कुरुक्षेत्र और उर्वशी में मिलता है वहीँ रश्मि रथी में वे कर्ण के युद्ध कालीन अभिव्यक्तियों को प्रस्तुत करते है ,संस्कृति के चार अध्याय लिख कर दिनकर जी ने पूरे राष्ट्र को गौरवान्वित करने का काम करते है .
उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था. पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक हाईस्कूल में अध्यापक हो गए. 1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया. 1950 से 1942 तक मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय(एल.एस.कॉलेज) में हिन्दी के शिक्षक रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और इसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने.
रामधारी सिंह दिनकर को भारत सरकार की उपाधि पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया. पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिए उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कर प्रदान भी मिल चुके है.24 अप्रैल 1974 को उनका स्वर्गवास हो गया.
प्रमुख कृतियाँ :
गद्य रचनाएँ : मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, रेती के फूल, वेणुवन, साहित्यमुखी, काव्य की भूमिका, प्रसाद पंत और मैथिलीशरणगुप्त, संस्कृति के चार अध्याय।
पद्य रचनाएँ : रेणुका, हुंकार, रसवंती, कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतिज्ञा, उर्वशी, हारे को हरिनाम।
शत शत नमन …