एक पत्रकार का सनसनीखेज खुलासा …इंडिया न्यूज से जुड़े रहे टीवी पत्रकार खुलासा
अमित 3 साल तक इंडिया न्यूज के प्राइम टाइम शो ‘अंदर की बात ‘ के प्रोड्यूसर रहे हैं
दीपक चौरसिया के ‘न्यूज़सेंस’ को देश को जानना चाहिए… आलेख -अमित कुमार
टुनाइट विद दीपक चौरसिया में ही इस सच को सामने क्यों नहीं लाया ?
पूरा वीडियो दिखाकर पहले ही ये क्यों नहीं बता दिया कि ये कन्हैया का रफू करनेवाला वीडियो है?
क्यों इसी एंगल से बहस नहीं की थी ? ये तर्क उन्हें तब क्यों सूझा जब वो खुद अपनी खबर को रफू करने बैठे ? दीपक जी ने इस शो के दौरान बार-बार कहा…’कन्हैया एक रूप अनेक’
17 फरवरी, 2016
रात 10 बजकर 40 मिनट
इंडिया न्यूज़ के एडिटर इन चीफ दीपक चौरसिया के लिए ये यक्ष प्रश्न से कम नहीं था. चैनल की साख पर संकट खड़ा हो चुका था. चुनौती ये थी कि एबीपी न्यूज़ की ख़बर के मुकाबले अपनी ख़बर को कैसे सच साबित किया जाए, ख़ुद को सही साबित करने के लिए अब क्या किया जाए ?
दीपक बुरी तरह परेशान थे दीपक …तब तक 10 बजकर 45 मिनट हो चुके थे. अचानक उन्होंने फैसला किया कि हम 11 बजे फिर इस मुद्दे पर शो करेंगे और जेएनयू में 9 फरवरी को हुई देशविरोधी नारेबाज़ी के वीडियो के साथ वो तमाम वीडियो दिखाएंगे जो हमारे पास मौजूद हैं.
साफ हो चुका था कि दीपक चौरसिया उस वीडियो पर अड़े रहने को तैयार नहीं थे जिसके बारे में आधे घंटे पहले तक उन्होंने बार-बार दोहराया था कि इसमें कन्हैया देशविरोधी नारेबाजी कर रहा है.
11 बजे के शो का नाम रखा गया ‘गर्दन बचाने वाले वीडियो का सच’…इसके साथ ही एक चौंकानेवाली बात हुई…तय हुआ कि 11 बजे की बहस में दीपक चौरसिया मौजूद तो रहेंगे लेकिन वो एंकरिंग नहीं करेंगे.
थोड़ी देर बाद शो शुरू हुआ. इसमें बताया गया कि कुछ चैनलों ने कन्हैया का ऐसा वीडियो दिखाया है जिसमें वो आज़ादी के दूसरे नारे लगा रहा है. वो सामंतवाद, मनुवाद और जातिवाद से आज़ादी के नारे लगा रहा है.
दावा किया गया कि इंडिया न्यूज का वीडियो दूसरे चैनलों के वीडियो से बिल्कुल अलग है…जिससे साफ हो जाता है कि कन्हैया के आज़ादी के नारे का सही मतलब क्या है…यानी उसके नारे का संदर्भ क्या है.
साफ था कि एबीपी न्यूज़ के वीडियो को इंडिया न्यूज़ नकारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.
‘गर्दन बचाने वाले वीडियो का सच’ शो में कहा गया कि ज़िम्मेदार चैनल के नाते हम 4 वीडियो आपके सामने रख रहे हैं.
इन वीडियो में जेएनयू में 9 फरवरी को हुई देशविरोधी नारेबाज़ी का वीडियो भी शामिल था…जिसमें ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाए गए थे, इसके साथ ही वो वीडियो भी शामिल था जिसमें कन्हैया उसी दिन शाम की सभा में मौजूद दिख रहा था…इसके साथ ही वो वीडियो भी था, जिसे दिखाकर दीपक चौरसिया ने बार-बार दावा किया था कि आप पहली बार कन्हैया का वो वीडियो देखिए, जिसमें वो बार-बार देशविरोधी नारेबाज़ी कर रहा है.
वाकई ये गर्दन बचाने के वीडियो का ही शो था !
इस शो में कहा गया कि हमने जो दिखाया वो भी सही है और दूसरे चैनल जो दिखा रहे हैं उसे भी हम खारिज नहीं कर रहे.
भला ये कैसे हो सकता है ? ये कैसे संभव है ?
सच तो ये था कि दोनों ही वीडियो एक दिन के थे . लेकिन इंडिया न्यूज़ ने उसे जिस परिप्रेक्ष्य में दिखाया उससे ये जाहिर हो रहा था कि कन्हैया ने खुद भी देशविरोधी नारेबाजी की थी.
जबकि एबीपी न्यूज़ ने उसी वीडियो को पूरा दिखाया. जिसमें सिर्फ ‘हम ले के रहेंगे आज़ादी’ की आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी…उसमें ‘हम ले के रहेंगे आज़ादी…सामंतवाद से आज़ादी..पूंजीवाद से आज़ादी, जातिवाद से आज़ादी’ ये सब सुनाई दे रहा था.
इस नारेबाज़ी और इंडिया न्यूज़ की नारेबाज़ी के अधूरे क्लिप में जमीन-आसमान का फर्क था. एक में ख़बर को तोड़ा-मरोड़ा गया…दूसरे में सच सामने आया.
एबीपी न्यूज़ ने शुरू से आखिर तक इसे पूरा दिखाया.
दीपक चौरसिया ने बहस के दौरान बार-बार कहा कि कन्हैया ने खाल बचाने के लिए बाद में ऐसी नारेबाज़ी की…कि जिससे लगे कि उसने देश के ख़िलाफ़ आज़ादी के नारे कभी नहीं लगाए .
हो सकता है…इस तर्क में सच्चाई हो लेकिन एक नेशनल न्यूज़ चैनल के एडिटर इन चीफ की हैसियत रखनेवाले इस शख्स ने ये बात पहले क्यों नहीं कही ?
‘गर्दन बचाने वाले वीडियो का सच’ नाम के इस शो में कहा गया कि हमें सूत्रों ने जो वीडियो दिया हमने उसे दिखाया…हम किसी दूसरे चैनल के वीडियो को खारिज नहीं कर रहे…लेकिन हमने जो वीडियो दिखाया वो सही संदर्भ में था.
साफ था कि जिस वीडियो को रात करीब साढ़े 8 से साढ़े दस तक दीपक चौरसिया ने सबूत के बतौर दिखाया…जिसे छानबीन के लिए पुलिस तक को सौंपने की बात कही.
अब वो ख़ुद उस पर सौ फीसदी अड़े रहने को तैयार नहीं थे..अगर दीपक सही थे तो उनकी पूरी की पूरी बहस तार्किक होती.
इसमें बार-बार संदर्भ समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती..साफ-साफ कहा जाता कि हमारा वीडियो सही है. दूसरे न्यूज़ चैनलों के वीडियो को झूठा साबित किया जाता.
इस शो में दीपक चौरसिया ने बार-बार कहा कि कन्हैया ने अपने ऊपर लगे आरोपों को रफू करने के लिए नए नारे गढ़े..लेकिन वो ये बताने को तैयार नहीं थे कि अगर वाकई ऐसा था…तो उन्होंने…टुनाइट विद दीपक चौरसिया में ही इस सच को सामने क्यों नहीं लाया ?
पूरा वीडियो दिखाकर पहले ही ये क्यों नहीं बता दिया कि ये कन्हैया का रफू करनेवाला वीडियो है?
क्यों इसी एंगल से बहस नहीं की थी ? ये तर्क उन्हें तब क्यों सूझा जब वो खुद अपनी खबर को रफू करने बैठे ? दीपक जी ने इस शो के दौरान बार-बार कहा…’कन्हैया एक रूप अनेक’…लेकिन यहां तो बात कुछ और थी.
यहां कन्हैया के सही या गलत होने का सवाल नहीं है, सवाल है पत्रकारिता का…सवाल है निष्पक्षता का, सवाल है तथ्यों का.
क्या हम परिस्थितिजन्य तस्वीरों के आधार पर कुछ भी कह सकते हैं…क्या हम सीधे-सीधे किसी पर देशविरोधी नारेबाजी का आरोप लगा सकते हैं ?
ये तो हुई पर्दे की बात. जिसे सबने देखा…और 17 फरवरी 2016 के रात 11 बजे के इस शो का वीडियो अब तक यूट्यूब पर मौजूद है.
उस रात पर्दे के पीछे और क्या हुआ ये जानना भी ज़रूरी है.
दरअसल जब एबीपी न्यूज़ ने इंडिया न्यूज़ को बिना नाम लिए कठघरे में खड़ा कर दिया तो बात इंडिया न्यूज़ के मालिक तक पहुंची. कार्तिकेय शर्मा ने पूछा कि इतनी बड़ी गलती कैसे हुई…ये वीडियो कहां से आया…किसने इसे आउटपुट को उपलब्ध कराया…किसने इसे एडिट किया था…और क्या उस वक्त इसे ठीक से देखा नहीं गया था कि इसमें कैसी नारेबाज़ी की जा रही है ? आख़़िर ग़लती किसकी है ?
दीपक चौरसिया इन सवालों से मुश्किल में पड़ गए…सच तो ये था कि इस वीडियो को उस रूप में किसी ने भी आगे नहीं बढ़ाया था…जिस तरह से दीपक चौरसिया ने टुनाइट विद दीपक चौरसिया में इसे पेश किया था.
उन्होंने शो के इंट्रो पैकेज में इस्तेमाल की गई क्लिप और डिस्कशन के दौरान विजुअल से रूप में इस्तेमाल की जा रही वीडियो क्लिप को खुद बहस का मुख्य मुद्दा बनाने का फैसला किया था…और सिर्फ ‘हम लेके रहेंगे आज़ादी’ शब्द को लेकर इसे देशविरोधी नारेबाज़ी का वीडियो करार दे दिया.
कायदे से दीपक जी को इस सच को हिम्मत के साथ कबूल कर लेना चाहिए था..लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया..उन्होंने बलि के बकरे की तलाश शुरू कर दी. पैकेजिंग की टीम की कार्तिकेय शर्मा के सामने पेशी हुई जहां सबने सच बयान कर दिया. इससे बात साफ हो गई कि गलती कहां हुई थी..किसने की ?
एक और बात हुई…अमूमन रात साढ़े 10 बजे तक ऑफिस से घर जानेवाले दीपक जी उस दिन रात 1 बजे तक दफ्तर में रुके रहे.
इस दौरान ज्यादातर वक्त वो आउटपुट डेस्क पर रहे. वो बेहद भावुक थे. आंखें भर आई थीं…उन्होंने डेस्क के सहयोगियों से कहा कि…’हां मैंने माना मुझसे ग़लती हुई लेकिन क्या आपमें से कोई मुझे रोक नहीं सकता था..पत्रकारिता आप सबकी भी तो रोज़ी-रोटी है’.
दीपक चौरसिया को अपनी ग़लती का अहसास तब हुआ जब कोई रास्ता नहीं बचा था…उन्हें यही बात हिम्मत के साथ टीवी के पर्दे पर कहनी चाहिए थी…लेकिन उन्होंने करोड़ों दर्शकों के सामने सच बोलने का साहस नहीं दिखाया.