अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव
पटना हाई कोर्ट के फरमान पर नाराज पार्षदों ने दिया प्रस्ताव
अविश्वास पर 15 फरवरी को होगी चर्चा
संजय मिश्र,दरभंगा
नया साल जिला परिषद के लिए उहापोह का सबब लिए है. पार्षदों के बीच हलचल थमने का नाम नहीं ले रही. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव.. उस पर चर्चा .. प्रस्ताव स्वीकार हो जाना .. मामला पटना हाई कोर्ट जाना .. तकनीकी पहलू पर कोर्ट का पूरी प्रक्रिया को रद्द कर देना .. फिर से नाराज पार्षदों को अविश्वास व्यक्त करने का मौका देना और शुक्रवार को दुखित पार्षदों का अविश्वास प्रस्ताव पेश कर देने तक का सफर उधेड़बुन से भरा रहा है. पर्दे के पीछे की सियासत को छोड़ दें तो कम से कम 3 जनवरी से लेकर 2 फरवरी तक की अवधि उनके लिए बेचैनी से भरी रही है.
शुक्रवार 2 फरवरी को पार्षद सीता देवी ने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ दिए अविश्वास प्रस्ताव में अनेको आरोप लगाए हैं. कहा गया है कि 3 – 1- 22 को रेणु देवी अध्यक्ष बनी. लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद से किसी वर्ष का बजट तैयार करवाने में नाकाम रहीं. जबकि जिला परिषद की निधि से करोड़ों रुपए की निकासी हुई. रोचक आरोप है कि अध्यक्ष ने कथित तौर पर अपने किसी समर्थक पार्षद (लाल कुमार सिंह पढ़ें) से 3 – 1- 24 को अविश्वास का प्रस्ताव लगवाया और उसी दिन चर्चा के लिए 12 जनवरी की तारीख दे दी. और सदन के द्वारा प्रस्ताव स्वीकार कर लेने के बाद इसके खिलाफ खुद ही कोर्ट चली गईं. उपाध्यक्ष पर भी कमोवेश इसी तरह का आरोप लगाया गया है. अध्यक्ष रेणु देवी ने कहा है कि चर्चा के लिए 15 फरवरी की तिथि दी है.
सीता देवी की ओर से पेश इस प्रस्ताव में 15 पार्षदों के हस्ताक्षर हैं. अध्यक्ष पर 8 जबकि उपाध्यक्ष पर 7 आरोप मढ़े गए हैं. इस बात पर रोष जताया गया है कि सदन में अपनी आवाज बुलंद करने वाले कई पार्षदों के खिलाफ हुए केस की न तो अध्यक्ष ने और न ही उपाध्यक्ष ने निंदा की
इससे पहले हाई कोर्ट का फैसला आते ही एक खेमे में खुशी तो दूसरे खेमे में मायूसी छा गई.
कोर्ट का फैसला –
याचिकाकर्ता रेणु देवी (अध्यक्ष) और ललिता झा (उपाध्यक्ष)
अध्यक्ष ने दो वर्ष पूरा होने से पहले ही प्रस्ताव स्वीकार किया. पंचायत राज कानून 2006 के सेक्शन 70 (4) के तहत अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में यह नहीं आता है. अतः कोर्ट इस कदम को शून्य करार देता है. एनेक्सचर 4 में समाहित प्रस्ताव सेक्शन 70 (4) के प्रावधानों के अनुकूल नहीं है इसलिए इसे खारिज किया जाता है. दुखित हुए चुन कर आए सदस्य चाहें तो दो दिनों के भीतर अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव ला सकते हैं. 2 फरवरी तक आने वाले ऐसे किसी प्रस्ताव को स्वीकार करने में अध्यक्ष आना – कानी नहीं कर सकते.
अध्यक्ष को ऐसे किसी अविश्वास प्रस्ताव के लिए तारीख तय करनी होगी. मौजूदा समय में खाली पद (अध्यक्ष उपाध्यक्ष) के चुनाव के लिए की गई घोषणा प्रभावी नहीं रही. (यानि इस वक्त पद खाली नहीं रहे. यानि अध्यक्ष उपाध्यक्ष अपने पद पर आसीन हैं.) चुनाव आयोग के वकील को निर्देश दिया जाता है कि कोर्ट के इस आदेश से राज्य चुनाव आयोग को अवगत करा दें. राज्य (सरकार) की तरफ से हाजिर वकील को निर्देश दिया जाता है कि संबंधित पक्षों को कोर्ट के इस फैसले की जानकारी दें.
नाराज पार्षदों के वकील मंगलम ने कहा था –
अध्यक्ष ने 3 जनवरी को प्रस्ताव स्वीकार किया और उसी तारीख को विशेष बैठक की तारीख 12 जनवरी तय कर दी. 12 जनवरी की तारीख दो साल की अवधि पूरा होने के बाद की है. अध्यक्ष को एक बार बैठक की तारीख तय कर उससे पीछे हटने की कलाबाजी दिखाने की छूट नहीं दी जा सकती.अब ये देखना दिलचस्प होगा कि दोनो गुट पार्षदों की गोलबंदी में कितने कामयाब हो पाते हैं.