दानापुर डिवीजन में चलने वाली पैसेजर ट्रेनों का हाल बेहाल
यात्री सुविधाओं का है अभाव कोचों में
हमनी के कुछो ना होखी भेंड़ बकरी जइसे सफर 20 साल से करते नु बानी जा। केतना रेल मंत्री देख लेनी जा ई उमिर में।ख़ाली भाड़ा बढ़ल। रेल मंत्री आके खाली बक्सर से किउल तक हमनी के साथे चल के देखावस, तब बुझाई की डेली पैसेंजर के दरद का होखेला। ये कुछो ना होखतई केतना अल्थुन हियाँ ,पटना से गया मे प्रान सुख जाइथी। गरमी के दिन आ गैइलव न अब बुझात। देखे ला पंखा लगल हई की।सबसे ज्यादा हमनी के दिक्कत हई ये है। रोज आवे जाए के मजबूरी के मन्त्री जी देखतन न नु । टीवीया में दिखावत हलथि 10 पर्सेंट बढ़ावे के । छोड़ न रे अब प्राइवेट हो जाई त सब बढ़िया हो जाई
पटना : कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया सुनने को मिली राजधानी पटना में नौकरी करने वाले लोगों की जो प्रतिदिन पैसेंजर ट्रेन में सफ़र करते है।
पैसेंजर ट्रेनों की संख्या यात्रियों के हिसाब के काफी कम है। इन यात्रियों का कहना है की बजट में पैसेंजर ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाने से डेली पैसेंजर को सुविधा मिलेगी। कई यात्रियों ने कहा की सिर्फ सुपर फ़ास्ट और मेल ट्रेनों में ही नहीं बल्कि पैसेंजर ट्रेन की कोच की भी सफाई प्रतिदिन होनी चाहिए। पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव सिर्फ एक या दो मिनट का होता है ऐसे में कोच में शौचालय का ना होना बहुत कष्टदायक होता है।
पटना के एक व्यवसायी के यहाँ काम करने वाले किशोर कुमार ने कहा की मैं 25 साल से डेली पैसेंजर के रूप में यात्रा करता हूँ। पहले स्टीम इंजन में जमाने में भी 50 किमी की यात्रा डेढ़ से दो घंटे में होती थी और आज बिजली से चलने वाली ट्रेन ईएमयू ट्रेनों से भी डेढ़ से दो घंटे लग जाते है। 50 किमी में 15 स्टॉपेज भी है। कई शिक्षक और सचिवालय के कर्मी भी पटना आते है या पटना से जाते है उन्हें भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। महिला बोगियों में भी शौचालय की कमी से महिलाओं भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है
सुनील कुमार जैन कहते है की हम कभी खड़े कभी ऊपर बैठ कर यात्रा करने को विवश होते है। एक्सप्रेस ट्रेनों में हम बैठ नहीं सकते क्योंकि फ़ाईन देना पड़ता है।ऑफिस से निकलने के बाद एक ही ट्रेन होती है जिससे सफ़र करना बहुत दुष्कर होता है। अगर यह ट्रेन छुट गई तो दो घंटे तक कोई पैसेंजर ट्रेन नहीं है लिहाजा बाल-बच्चों से दूर समय की बर्बादी है । आईटी सेक्टर में काम करने वाले विवेक कुमार कहते है की बजट में सिर्फ पैसा उगाहने के तरीके होते हैं कुछ नई ट्रेन चला दी जाती है लेकिन डेली पैसेंजर पर रेल मंत्री का ध्यान नहीं होता। अगर मुम्बई की तरह यहाँ भी ट्रेने चलने लगे तो हमारे दो से तीन घंटे बच जाएंगे। महिला यात्री प्रीति का कहना है महिला कोचों की संख्या अभी सिर्फ एक है उसे बढ़ाई जानी चाहिए ऐसा बजट में होना चाहिए लेकिन महिलाओं की सुविधा खास कर पैसेंजर ट्रेनों में नहीं है। डेली पैसेंजर एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा की पैसेंजर की सुविधा का ख्याल डिवीजन को होना चाहिए इसके लिए रेल मंत्री को विशेष ध्यान देने होंगे। डेली पैसेंजर ट्रेन के परिचालन और साफ़-सफाई पर यात्रियों की मांग जायज है साथ में शौचालय की व्यवस्था भी समय और महिला यात्रियों की बढ़ती संख्या को देख कर आवश्यक है। रेल मंत्री से यात्रियों की ढेरों अपेक्षायें है और होना भी लाजमी है। प्रतिदिन सफर करने वाले यात्री मुसीबतों का सामना करते है उनकी भी सुध लेने का प्रयास होना चाहिए।