साहित्यकारों में शोक की लहर
राज्य के कई साहित्यकारों ने जताया शोक
हिंदी साहित्य के वरिष्ठ मार्क्सवाद आलोचक डॉ. मैनेजर पाण्डेय का निधन हो गया. उन्होंने हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना को, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के आलोक में, देश-काल और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अधिक संपन्न और सृजनशील बनाया है.
वैश्विक विवेक और आधुनिकता बोध उनकी आलोचना की प्रमुख विशेषताएं हैं. ‘साहित्य और इतिहास दृष्टि’, ‘शब्द और कर्म’, ‘साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका’, ‘भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य’, ‘आलोचना की सामाजिकता’, ‘हिन्दी कविता का अतीत और वर्तमान’, ‘आलोचना में सहमति असहमति’, ‘भारतीय समाज में प्रतिरोध की परंपरा’, ‘अनभै सांचा’ आदि पाण्डेय जी की महत्वपूर्ण समीक्षात्मक कृतियां हैं.
मैनेजर पाण्डेय हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक हैं. उन्हें गम्भीर और विचारोत्तेजक आलोचनात्मक लेखन के लिए पूरे देश में जाना जाता है.उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है.बिहार के साहित्यकार हृषिकेश सुलभ,डॉ उषा किरण खान ,डॉ नीरज सिंह ने शोक सम्वेदना व्यक्त की है.
मैनेजर पाण्डेय का जन्म 23 सितम्बर, 1941 को बिहार प्रान्त के वर्तमान गोपालगंज जनपद के गाँव ‘लोहटी’ में हुआ. उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में तथा उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने एम.ए. और पीएच. डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं.आजीविका के लिए अध्यापन का मार्ग चुनने वाले मैनेजर पाण्डेय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा संस्थान के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफेसर रहे हैं. वे जेएनयू में भारतीय भाषा केन्द्र के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इसके पूर्व पाण्डेय जी बरेली कॉलेज, बरेली और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी प्राध्यापक रहे.
डॉ० मैनेजर पांडेय के कहते थे कि विचारधारा के बिना आलोचना और साहित्य दिशाहीन होता है. आलोचना में पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग ईमानदारी से होना चाहिए क्योंकि पारिभाषिक शब्द विचार की लम्बी प्रक्रिया से उपजते हैं. …साहित्य की सामाजिकता की खोज और सार्थकता की पहचान करना ही आलोचना की सबसे बड़ी चुनौती है. डॉ० मैनेजर पाण्डेय की साहित्यिक समीक्षा जगत में अपनी एक अलग पहचान है. समकालीन साहित्य के साथ भक्तिकाल और रीतिकाल के साहित्य पर पाण्डेय जी ने सर्वथा नवीन दृष्टि से विचार किया है और नवीन स्थापनाएँ दीं हैं. जिस रीतिकाल को राग और रंग का साहित्य कहा जाता है वहाँ भी वह समकालीन चेतना के बीज तलाश लेते हैं.
मैनेजर पाण्डेय उन आलोचकों में हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा में हिन्दी पाठ्यक्रम को विस्तार प्रदान किया है. साहित्य का समाजशास्त्र और साहित्य की इतिहास-दृष्टि पर उनका व्यवस्थित चिंतन और लेखन आज की तारीख़ में हिन्दी पाठ्यक्रम के अभिन्न हिस्सा हैं. वे हिन्दी के पहले आलोचक हैं जिन्होंने इन दोनों विषयों को सर्वाधिक गंभीरता से लिया है. साहित्य की समाजशास्त्रीय भूमिका के महत्व को बालकृष्ण भट्ट, महावीर प्रसाद द्विवेदी और आचार्य रामचंद्र शुक्ल से लेकर नामवर सिंह तक ने स्वीकार किया है और अपने लेखन में इसकी सार्थकता की ओर संकेत भी किया है. लेकिन इसे अकादमिक आधार मैनेजर पाण्डेय ने अपनी पुस्तक साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका में प्रदान किया. पुस्तक की भूमिका में उन्होंने लिखा है कि
“साहित्य के समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य है-समाज से साहित्य के सम्बन्ध की खोज और उसकी व्याख्या, ऊपरी तौर पर समाज से साहित्य का सम्बन्ध जितना सरल और सहज दिखाई देता है, उतना वह होता नहीं है. गहरे स्तर पर छानबीन करने के दौरान उसकी जटिलता सामने आती है.”
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