वेतन और पेंशन लटकाने पर कोर्ट नाराज सरकार को उपस्थित होने का आदेश

विश्वविद्यालयों 6 सालों से अधर में लटका है 7 वें वेतन पेंशन का बकाया




आरा, 7 जनवरी. विश्वविद्यालय शिक्षकों के 6 साल से अधर में लटके 7वें वेतन पेंशन के बकाए पर कोर्ट के आदेश के बाद सरकार के कच्छप गति और कान पर जूं न रेंगने पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए सरकार को 9 जनवरी को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है. आगामी सोमवार को वर्षों से लंबित इस मामले में निजात मिलने की आशंका है.

विश्वविद्यालय शिक्षकों को नियमित पेंशन/वेतन भुगतान संबंधी पटना उच्च न्यायालय के 2018 के एक आदेश का अनुपालन नहीं होने के विरूद्ध दायर अवमानना याचिका 341/2021, अमरेश शांडिल्य बनाम बिहार सरकार में पटना उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह को आगामी सोमवार (9 जनवरी ) को न्यायालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया है.

बिहार राज्य विश्वविद्यालय शिक्षक महासंघ (फुटाब) ने एक विज्ञप्ति जारी कर इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के के.के. सिन्हा, महासचिव,सेवानिवृत्त शिक्षक संघ द्वारा दायर याचिका CWJC 17619/2016 को एक जनहित याचिका में परिवर्तित करते हुए, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एमआर शाह और न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की एक खंडपीठ द्वारा 8 अक्तूबर 2018 को पारित आदेश में माननीय न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों को पेंशन आदि का भुगतान प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह तक सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकार सेवानिवृत्त कर्मचारियों को देय वेतन/पेंशन का अनुदान अग्रिम रूप से जारी करे.

कार्यकारी अध्यक्ष कन्हैया बहादुर सिन्हा और संजय कुमार सिंह, एमएलसी, महासचिव, फ़ुटाब, ने कहा कि माननीय न्यायालय ने 22 दिसंबर 2022 को अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की और कहा कि जब सरकारी कर्मचारियों को समय पर पेंशन भुगतान हो जाता है तो विश्वविद्यालय कर्मियों को क्यों नहीं किया जाता है? सरकार द्वारा अपना जवाब निर्धारित तिथि को दाखिल नहीं करने पर कोर्ट ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए जुर्माना लगाना चाहा ,लेकिन राज्य के वकील के आग्रह पर इसके लिए समय देने पर सहमति बनी.

इस मामले में 3 जनवरी 2023 को मामले की फिर से सुनवाई हुई. महासंघ ने बताया कि सरकार के हलफनामे से संतुष्ट नहीं होने पर अदालत ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग को आने वाले सोमवार (9/1/23) को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेशी के लिए बुलाया है. फुटाब नेताओं ने मौजूदा स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि 8 अक्टूबर 2018 के अदालत के आदेश के बाद से कुछ भी सुधार नहीं हुआ है. राज्य का बजट जिसमें विश्वविद्यालयों का बजट भी शामिल है, हालांकि हर साल फरवरी/मार्च में पारित किया जाता है लेकिन विश्वविद्यालयों के लिए बजटीय आवंटन को अगस्त/सितंबर से पहले शिक्षा और वित्त विभाग द्वारा मंजूरी नहीं दी जाती है जिससे बड़ी कठिनाई उत्पन्न हो जाती है. ऐसी शिथिलता समक्ष से परे है.

विश्वविद्यालयों के लिए वित्त वर्ष 2022-23 के बजट को अंतिम रूप देने का हवाला देते हुए, उन्होंने बताया कि तीन महीने का एडहॉक अनुदान जून में जारी किया गया था और अगस्त 2022 से फरवरी 2023 के आवंटन को पत्र संख्या 89 दिनांक 22/10/22 के माध्यम से अंतिम रूप दिया गया था.

आश्चर्यजनक रूप से जेपी विश्वविद्यालय, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पूर्णिया विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय के लिए अगस्त से अक्टूबर तक केवल तीन महीने की पेंशन और बीएन मंडल विश्वविद्यालय के लिए दिसंबर तक आवंटित किया गया, आवंटन आदेश में इसका कोई कारण नहीं बताया गया. दिसंबर के अनुदान में तो जेपी विश्वविद्यालय, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पूर्णिया विश्वविद्यालय और संस्कृत विश्वविद्यालय में पेंशन मद में शून्य आवंटन था. न तो विश्वविद्यालय और न ही सरकार इसके लिए कोई तर्क देती है. यहां तक कि डी.ए. अप-टू-डेट नहीं है.

1/1/16 से पहले सेवानिवृत्त हो चुके लोगों के लिए 7 वें वेतन पेंशन का बकाया सभी विश्वविद्यालयों को अभी तक जारी नहीं किया गया है और 1/1/16 के बाद सेवानिवृत्त होने वालों के लिए बकाया को आंशिक रूप से जारी किया गया है, जो उन्हें 1/1/16 से अप्रैल 2019 तक के पूर्ण सेवानिवृत्ति लाभों से वंचित करता है.

उन्होंने आरोप लगाया कि पारंपरिक विश्वविद्यालय सरकार की प्राथमिकता सूची से बाहर हो गए हैं. इस तथ्य के बावजूद कि केवल ये विश्वविद्यालय हीं 2030 तक राष्ट्रीय औसत तक जीईआर तक पहुंचने के सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं और गरीब और वंचित वर्ग की उच्च शिक्षा की महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं. समाजिक न्याय की अवधारणा की नीति पर चलने का दावा करने वाली सरकार का यह संवैधानिक दायित्व भी है कि वह शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के प्रति भी न्याय करे.

आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट

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