मॉनसून सीजन में भी बिहार के 36 जिलों में सूखे जैसी स्थिति है वही राजस्थान और मध्य पदेश समेत कई राज्य ऐसे हैं जो अतिवृष्टि झेल रहे हैं. ये दुष्परिणाम है जलवायु परिवर्तन का. जलवायु परिवर्तन की वजह और इसके उपाय को जानने की कोशिश लंबे समय से चल रही है वर्ष 2015 में हुए जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के तहत देश के 4 राज्यों में क्लाइमेट चेंज लर्निंग लैब की स्थापना होनी है. आज पटना स्थित संजय गांधी जैविक उद्यान अर्थात पटना जू में ऐसे ही एक क्लाइमेट चेंज लैब की शुरुआत हो रही है जिसका उद्घाटन वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री नीरज कुमार सिंह करेंगे.
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मीडिया सलाहकार वीरेंद्र कुमार ने बताया कि संजय गांधी जैविक उद्यान परिसर के गेट संख्या 2 के समीप स्थित “ZOO EDUCATIONAL HALL” में यूरोपियन यूनियन एवं जर्मनी की एक संस्था GIZ द्वारा इस जलवायु परिवर्तन के संबंध में सीखने की प्रयोगशाला (Climate Change Learning Laboratory) स्थापित की गई है, जिसका उद्घाटन आज शाम 5:00 बजे मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, बिहार नीरज कुमार सिंह करेंगे.
वीरेंद्र कुमार ने बताया कि यह जलवायु परिवर्तन अध्ययन प्रयोगशाला जलवायु परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर दृश्य-श्रव्य (Audio Visual) मीडिया के साथ आम जनता को विशेष कर स्कूली बच्चों को आकर्षित करेगा तथा जागरूक करेगा. यह सुविधा बिहार में पहली बार स्थापित की गई है. यहां बिहार से सम्बन्धित जलवायु परिवर्तन की विशेष जानकारी जैसे इसका प्रभाव, सरकार द्वारा इसका सामना करने हेतु की जा रही कार्रवाई, भविष्य में यह हमें किस प्रकार अधिक प्रभावित करेगा आदि की जानकारी आँकड़ों के साथ आधुनिक उपकरणों यथा इन्टरएक्टिव मीडिया (Intractive Media) एवं पोस्टर आदि के साथ प्रदर्शित है. विभिन्न मानवीय क्रियाओं व प्रांकृतिक कारणों से विश्व के तमाम देशों में जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है. कही अतिवृष्टि जनित बाढ़ तो कहीं अनावृष्टि जनित सूखा, भीषण गर्मी से प्रभावित जन-जीवन तथा इन सब कारणों से मौसम में परिवर्तन के कारण फसलों की उत्पादकता में कमी देखी जा सकती है.
क्या हैं क्लाइमेट चेंज के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में लू (Heatwaves). अत्याधिक वर्षा तीव्र बिजली गिरना, चक्रवात, समुद्र के स्तर में वृद्धि आदि आते हैं जलवायु परिवर्तन के अप्रत्यक्ष प्रभावों में संरचनाओं की हानि एवं क्षति आदि है. मानव जनित क्रियाओं व प्राकृतिक कारणों से वैश्विक तापमान वृद्धि भी जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है. वैश्विक तापमान वृद्धि (Global warming) के लिए जिम्मेवार प्रमुख ग्रीनहाउस गैसे है:- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मिथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O). हाइड्रोकार्बन और परफ्ल्यूरोकार्बन सल्फर डेक्साफ्लोराइड (SF).
वैश्विक तापमान में वृद्धि को कम करके जलवायु परिवर्त्तन के कुप्रभावों को सीमित किया जा सकता है.
जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
सन् 1988 में “जलवायु परिवर्त्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Inter Governmental Panel on Climate Change) की स्थापना के बाद सन् 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया जो जलवायु परिवर्त्तन से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक रूप रेखा प्रदान करता है. तत्पश्चात सन् 1995 में विश्व के सभी देश जो संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेशन (UNFCCC) के हस्ताक्षरकर्ता हैं, के साथ पहला सम्मेलन (COP-I) बर्लिन में आयोजित किया गया.
इसके पश्चात सन् 2012 में दोहा सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें प्रस्तावित संशोधनों को अपनाया गया जिसके तहत 2013 से 2020 तक 37 देशों के लिए दूसरी ‘उत्सर्जन कटौती पर प्रतिबद्धता अवधि स्थापित की गयी. सन् 2015 में पेरिस समझौता को अपनाया गया जिसके तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तथा तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना था. इसके तहत उन देशों को वित्तीय तकनीकी और क्षमता निर्माण सहायता के लिए ढाचा भी प्रदान किया गया है, जिन्हें इसकी जरूरत है.
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