सूर्योपासना का महापर्व छठ के लोकगीतों में समाज के हरपहलु की महत्ता समाहित है. छठ में व्रती महिलायें भगवान भास्कर सेबेटियां भी मांगती हैं. महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा के इस दौरमें बेटियों की कामना वाले इस पर्व की यह बहुत बड़ी खूबी हैं. कन्याभ्रूण हत्या जैसी कुरीति पर छठ गीतों के माध्यम से प्रहार होता है. छठ के गीत समाज को आईना दिखाते हैं. ‘कांच ही बांस केबहंगिया… में बटोही पुछता है कि ये भीड़ कहाँ जा रही है? तोमहिलायें गाती हैं कि तू त आन्हर हवे रे बटोहिया’ गीत से यह दर्शायागया है कि छठ ऐसा पर्व है जिसके बारे में सभी को पता है. सामूहिकगीतों से लोग आपसी वैमनस्य कम करते हैं. एक और गीत केलवा जेफरेला घवध से.. सुगा देले जूठियाय, में व्रती महिलाएं सूर्य सेशिकायत के लहजे में कहती हैं कि आपके पूजन के लिए जो केला थाउसे तोते ने जूठा कर दिया है. इसके बाद सूर्य भगवान खुद उस तोतेको मरकर मूर्छित कर देते हैं. तब तोते की मादा आग्रह करती है तोतोता जीवित हो जाता है. इस गीत से व्रती सूर्य के प्रभाव को महसूसकरती हैं.
डूबते सूर्य को अर्घ्य देना आशा और विश्वास का प्रतीक
लोकाचार्य विद्वान पंडित राधेश्याम तिवारी कहते हैं कि चार दिनों तकचलनेवाले इस व्रत में डूबते व उगते सूर्य को अर्घ्य देने की विशेषता है.इसका मतलब है जो गया है, वह आयेगा. इस परंपरा में आशा दिखतीहै. एक गीत में सूर्य देव स्त्री की तपस्या से प्रसन्न हो जाते हैं. वे कहतेहैं – ‘मांगू मांगू तिरिया कवन बरवा मंगबु, जे तोहरा हृदया समाये.’ व्रतीमहिला सूर्य से मांगना प्रारंभ करती हैं. ‘बायन बांटे खातिर बेटी मांगीले, पढ़ल पंडित दामाद’ सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. वे उस व्रती महिला कीसभी मांगें पूरी करने का आश्वासन देते हैं और कहते हैं- ‘एहो जेतिरिया सर्व गुण आगर, सब कुछ मांगे समलुत. ‘यह व्रती सभी गुणोंसे भरपूर है. इसने परिवार चलाने के जो चीजें मांगी हैं, वे एकपारिवारिक जीवन के लिए आवश्यक हैं.
सूर्य को आभार प्रकट करते हैं व्रती
छठ पूजा (कार्तिक शुक्ल पक्ष, षष्ठी तिथि) सूर्य की पूजा है. सूर्य से हीसृष्टि है. सब कुछ सूर्य पर निर्भर है. इसलिए सूर्य को आभार प्रकटकिया जाता है. ‘अन्न, धन, लक्ष्मी हे दीनानाथ रउरे दिहल ह’ लोकगीतके माध्यम से यह स्वीकार किया जाता है कि सारी धन-संपदा आपकेकारण ही है. इसलिए व्रती सूर्य की महिमा गाती हैं. पंडित राधेश्याम तिवारी के अनुसार स्त्री परिवार की धुरी है. उसके सारे व्रत- त्योहारपरिवार की खुशी व सुख के लिए हैं. तभी तो बचपन से भाई, पति, पिता और फिर बेटे व पोते के दीर्घायु होने के लिए वह व्रत-त्योहारकरती है. चैत्र माह में किसानों के घर में नए उपजाए अन्न की आवकहोती है. किसान सर्वप्रथम अन्न का हिस्सा सूर्य को अर्पित कर उनकाआभार प्रकट कर कृतज्ञता जाहिर करते हैं.
पुत्र के विजय श्री का व्रत है छठ
आध्यात्मिक पौराणिक ग्रंथों के जानकार पं. राधेश्याम तिवारी नेबताया कि छठ को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा केअनुसार दैत्य ताड़कासुर ने पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के वध करने काप्रण किया था. तब पार्वती ने अपने पुत्र की रक्षा का भार मां गंगा कोदे दिया. गंगा ने कार्तिकेय को सरकंडा के वन में छिपा दिया. उस वनमें छह देव कन्याएं निवास करती थीं. उन्होंने मिलकर बालककार्तिकेय का पालन-पोषण किया. उन्ही छह माताओं को छठी मईयाके रूप में पूजन करने का विधान शुरू हुआ. तब, असुरों के नाश केलिए सभी देवताओं ने शंकर-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को अपनासेनापति चुना. माता पार्वती ने अपने पुत्र के विजय श्री की कामना केलिए अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर निर्जला व्रत रखा. कार्तिकेयके विजयी होकर वापस आने पर माता पार्वती ने सूर्य को जल व दूधसे अर्घ्य देकर अपना व्रत तोड़ा था. तभी से उगते सूर्य को दूध से अर्घ्यदेने की परंपरा की शुरुआत हुयी.
बक्सर से ऋतुराज