12 सूर्य मंदिरों में से 11 मंदिर मिल गए, लेकिन एक मंदिर अब भी अज्ञात

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 11 नवम्बर ।। तमाम पाखंडों से दूर, प्रकृति से जुड़ने, सूर्य के साथ जीने, की हठ को ही छठ व्रत कहते है. यह व्रत लोगो को यह बताता है कि जो अस्त होता है उसका उदय भी होता है. इसलिए छठ पर्व में सबसे पहले अस्तगामी सूर्य को उसके बाद उदयगामी सूर्य को अर्ध (अरग) दिया जाता है. इसलिए तो कहा जाता है कि जो मरता है वो फिर से जन्म लेता है. छठ भी प्राकृतिक सिद्धांत का मूल है और भारतीय संस्कृति में इसी प्रकृति चक्र और जीवन चक्र को समझने का पर्व है. लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा सनातन सभ्यता के सबसे प्राचीन त्यौहारों में से एक है. इस पर्व का उल्लेख ऋग्वेद में भी है. लेकिन अब यह पर्व समय के साथ क्षेत्र विशेष में सिमट गया है. ऐसे भी देखा जाय तो कार्तिक महीना प्रकृति में वनस्पति, औषधि, कृषि और उसके उत्पाद के ज्ञान की धारा है. पटना के हर गली, मोहल्ला में स्वच्छता से यह महापर्व बहुत धूमधाम से मनाया गया. आस्था के महापर्व श्रद्धा-भाव से ओत-प्रोत, सद्भावना और सहभागिता, निराजली का कठिन पर्व है, जिसमें कोई पंडित-पुजारी नहीं होता है, देवता प्रत्यक्ष रूप से दिखते रहते है, अस्ताचल सूर्य को भी पूजते है, पर्व करने वाले व्रती किसी भी जाति समुदाय से परे रहते है और सिर्फ लोकगीत गाये जाते हैं, पकवान बनाने से लेकर, घाट पर भी कोई ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नही रहता है और सभी श्रद्धा से स्वंय सहयोग करते हैं एवं परसादी ग्रहण करते … Continue reading 12 सूर्य मंदिरों में से 11 मंदिर मिल गए, लेकिन एक मंदिर अब भी अज्ञात