चंद्रेश्वर की तीन कविताएँ
हाय -हाय रे- नोटबंदी
पूस का पाला
गुलाबी सब नोट
हुए जा रहे
काला
पता नहीं, कब होगा
बोलबाला
सफ़ेद का
भेद यह
हल्कू की जेबें ठंडी
हाय-हाय रे नोटबंदी
तेरी सियासत
कितनी गंदी
भगवा रे भगवा!
नोटबंदी से
पब्लिक हुई बेहाल
नोटबंदी से,
ग़रीब खड़ा क़तार
नोटबंदी से,
खाए लाठी-डंडा
नोटबंदी से,
बैंक-बैंकर्स मालामाल
नोटबंदी से,
माल्या मनाए मौज़
नोटबंदी से,
बाज़ार में छाई मंदी
नोटबंदी से,
उठी नहीं अर्थी होरी की
नोटबंदी से,
दुल्हन हुई निराश
नोटबंदी से,
पलिहर खेत उदास
नोटबंदी से,
हुए बैंक-माफिया एक
नोटबंदी से,
काले कुबेरों का नया दौर
नोटबंदी से,
कहाँ रूके आतंकी
नोटबंदी से,
राजा ने लिया नहीं काम
अक़्लमंदी से,
जियो-जियो रे लला
नोटबंदी से,
गौतम सुख में विभोर
नोटबंदी से,
गडकरी गिनाए लाभ
नोटबंदी से,
जेटली मनाए जश्न
नोटबंदी से,
काटे चाँदी शहंशाह
नोटबंदी से,
देश में हाहाकार
नोटबंदी से!
कैश बोले तो- सगुण
अपुन कैश बोले तो सगुण
कैशलेस बोले तो निर्गुण
भारत देश है ये
निर्गुण से ज़्यादा रही है
भक्ति यहाँ
सगुण के प्रति
इतनी छोटी-सी बात नहीं
समझ पाते
नए दौर के
भक्तगण भी!