उन्होंने सुख-दुख, सपनों, चिंताओं, संघर्षों और आकांक्षाओं को रेखांकित किया
चंद्रेश्वर महारानी लाल कुँवरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलरामपुर में प्रोफ़ेसर, हिन्दी रह चुके हैं . एम. एल.के,पी.जी. कालेज के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो दिनांक 1 नवम्बर 2021 को हिन्दी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर से प्रोफ़ेसर बने तथा सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थ नगर, उत्तर प्रदेश के कुलपति प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र दुबे के आदेश पर आपको 11 जनवरी 2019 को विभागाध्यक्ष, हिन्दी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ . यहाँ से आपने 30 जून 2022 को अवकाश ग्रहण किया है . हिन्दी की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में सन् 1982-83 से कविताओं और आलोचनात्मक लेखों का लगातार प्रकाशन जारी है. आपकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं . आपके तीन कविता संग्रह -‘अब भी'( 2010 ), ‘सामने से मेरे’ (2017) एवं ‘डुमराँव नज़र आयेगा’ ( 2021) प्रकाशित हो चुके हैं .
एक शोधालोचना की पुस्तक ‘भारत में जन नाट्य आंदोलन’ (1994 में) प्रकाशित होकर बहुचर्चित-प्रशंसित ; एक साक्षात्कार की पुस्तिका ‘इप्टा-आंदोलनःकुछ साक्षात्कार’ (1998) का भी प्रकाशन हो चुका है . अभी जल्दी ही उन की दो पुस्तकें ‘मेरा बलरामपुर’ (स्मृति आख्यान), (2021) तथा भोजपुरी गद्य की पुस्तक–‘हमार गाँव’ (स्मृति आख्यान) (2020) प्रकाशित हुई हैं . चंद्रेश्वर जी ने बलरामपुर के प्रसिद्ध महारानी लाल कुँवरि डिग्री कॉलेज में वर्षों तक अध्यापन किया है . वहाँ रहते हुए, पढ़ाते हुए, जीते हुए, लोगों से मिलते हुए उन्होंने जो महसूस किया, जो घटनाएं उनके साथ घटीं, उन्होंने जो देखा, उसे साहस व ईमानदारी के साथ लिखा है. इस कृति (मेरा बलरामपुर) से गुज़रना एक शहर को जानना भर नहीं है ; बल्कि बीती सदी के अंतिम दो दशकों से लेकर नई सदी के शुरुआती दो दशकों में कस्बाई शहरों की संस्कृति व समाज में जो परिवर्तन घटित हुए हैं, जो ठहराव रूढ़ि बनकर रह गए हैं, उनसे रू-ब-रू होना भी है. इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने हर वर्ग को टटोला है. उनके सुख-दुख, सपनों, चिंताओं, संघर्षों और आकांक्षाओं को रेखांकित किया है .
एक संस्मरण याद आता है –
मेरा बलरामपुर जाना बहुत कम रहता है . ज्यादातर मैं लखनऊ और हिमाचल में रहता हूं . एक बार की बात है, मैं लखनऊ में था और मुझे कुछ घंटों के लिए बलरामपुर जाना था . लखनऊ से मैंने अपने परिचित की कार मांगी और बलरामपुर गया . यह सोच कर कि अगले दिन दोपहर तक वापिस लखनऊ पहुँच जाऊंगा . जब मैं बलरामपुर पहुंचा तो उसी दिन अपने मिलने मिलाने वालों से मिल चुका था. अगले दिन मैंने बलरामपुर से लखनऊ चलने के पहले सोचा कि चंद्रेश्वर जी से मिल लूं . मैंने उनको फोन किया तो पता चला कि वह कॉलेज में हैं और आज ही लखनऊ जाने वाले हैं . मैंने उनसे कहा यदि जल्दी चलना हो मेरे साथ ही चलें, मुझे भी लखनऊ जाना है और मेरे पास मेरे एक मित्र की कार है .
मैंने अपने मित्र से कहा था कि मैं दो बजे तक वापस आ जाऊंगा लखनऊ पहुंच जाऊंगा. चंद्रेश्वर जी मिलने जब मैं कॉलेज पहुंचा तो देखा कॉलेज में परीक्षाएं चल रही हैं और चंद्रेश्वर जी परीक्षा वाले कमरे के बाहर बैठे हुए थे . उनके साथ दो-तीन प्रोफेसर और भी बैठे हुए थे . मैं वहीं चला गया . चंद्रेश्वर जी बड़ी आत्मीयता से मिले उन्होंने अन्य लोगों से मेरा परिचय करवाया . उनमें से एक दो लोग मुझे पहले से ही से जानते हुए थे . मुझे पता चला कि चंद्रेश्वर जी परीक्षा समाप्त होने के बाद ही चल सकेंगे . मैं बड़ा असमंजस में था कि क्या करूं ? वहीँ पर उन्होंने मुझे अपनी लिखी एक काव्य पुस्तक ‘सामने से मेरे’ भेंट की और तुरंत अपने मोबाइल से पुस्तक भेंट करते हुए चित्र लिया और उसी क्षण फेसबुक पर पोस्ट कर दिया .
दो बजे तक लखनऊ पहुंचने के लिए मैंने वायदा किया हुआ था . दूसरी ओर अभी एक घंटे बाद परीक्षाएं खत्म होंगी, तब यहां से चलेंगे तो हम लोग 5-6 बजे से पहले नहीं पहुंच पाएंगे . फिर कभी चंद्रेश्वर से कब मुलाकात होगी, इसका कोई अनुमान ना था . मैं यह मुलाकात छोड़ना भी नहीं चाहता था कि कई घंटे एक साथ रहेंगे और बातें होंगी . मैंने लखनऊ अपने परिचित को फोन कर दिया कि किसी कारणवश मैं शाम को 6-7 बजे से पहले नहीं पहुंच पाऊँगा . उन्होंने कहा कोई बात नहीं आप आराम से आइए . मैं निश्चिंत हो गया क्योंकि मैं चंद्रेश्वर जी को छोड़कर जाना नहीं चाहता था . खैर . परीक्षा के बाद चंद्रेश्वर जी अपने कमरे में ले गए, अपना सामान बांधा और हम लोग लखनऊ की ओर चल दिए . रास्ते में कुछ साहित्यिक कुछ गैर साहित्यिक बातें होती रहीं .
उसके बाद मेरी उनसे मुलाकात नहीं हो पाई . हां ! फोन पर कभी-कभी मेरी बात होती रहती है . लेकिन उनसे मेरा जो संबंध है उसे मैं कोई नाम नहीं दे सकता हूं . मन की गहराई में उनके प्रति काफी सम्मान है . लेकिन ऐसी मित्रता भी नहीं है कि मैं या वह हम दोनों आपस में कुछ मन की बातें किया करें . बढ़िया है, जो संबंध बने हैं, वह निभते रहे, ऐसा ही चलता रहे, यह भी एक बढ़िया संबंध है . इसी वर्ष (मार्च 2023) लखनऊ पुस्तक मेले में उनसे पुन: भेंट का अवसर प्राप्त हुआ .
चंद्रेश्वर को सुनना – पढ़ना
चंद्रेश्वर जी के बारे में नाटककार राजेश कुमार ने लिखा है कि चंद्रेश्वर की साहित्यिक जगत में पहचान एक कवि और गंभीर आलोचक के रूप में है.लोगों ने इन्हें साहित्य के आलोचना पक्ष पर निरंतर बोलते सुना है. और एक कवि के रूप में भी लोग काफी निकटता से रूबरू हुए हैं. आजकल साहित्य में एक परंपरा चल गई है, चाहे वो धारा प्रगतिशील – जनवादी ही क्यों न हो, लोग आते हैं और दुनिया का कोई भी विषय हो, उस पर एक बार बोलना शुरू करते हैं तो रुकने का नाम नहीं लेते हैं.
क्या बोलना है, क्या विषय है, उनके लिए मायने नहीं रखता है. उस पर पहले से कुछ तैयारी करना तो जैसे अपनी बेइज्जती समझते हैं. बिना किसी तारतम्य के बोलते रहते हैं. लेकिन चंद्रेश्वर के साथ ऐसा नहीं है. भले जरा धीमी आवाज में बोलते हैं लेकिन जो बोलते हैं, उसको सुनकर लगता है कि इन्होंने इस पर काफी गहराई से कार्य किया है. चंद्रेश्वर जब बोलते हैं तो इनका जोर कंटेंट पर अधिक होता है. बोलने के क्रम में कभी नाटकीयता का सहारा नहीं लेते हैं . जो बोलते हैं, सरल, सीधे अंदाज में बोलते हैं. भले बोलने की शैली कभी -कभी सपाट हो जाती हो, लेकिन ये उस विषय की तह तक जाते हैं. गहन विश्लेषण करते हैं, जिससे तार- तार साफ हो जाता है.”
वर्तमान में आप ‘सुयश’, 631/58, ज्ञान विहार कालोनी, कमता -226028 लखनऊ में रह कर साहित्य साधना में व्यस्त रहते हैं .
मोबाइल नंबर – 735544658 /9236183787
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