चैत्र मास से ही हिंदुओं के नव वर्ष का आगमन होता है. इसी आगमन के साथ ही नवरात्र प्रारम्भ होता है. आरा में चैत्र-नवरात्र के विशेष पूजन और हर घर में मनने वाले इस पर्व के साथ राम-नवमी के इस उत्सव के रहस्य को लेकर पटना नाउ की विशेष पड़ताल कर रहे हैं ओ पी पाण्डेय और आशुतोष कुमार
वैसे तो इस सदियों से चले आ रहे चैत्र-नवरात्र, रामनवमी और शीतला माँ की पूजा होते आ रही है. लेकिन क्या मान्यताएं और किंवदंतियां हैं इसपर पटना नाउ ने गहरी छानबीन की.
चैत्र-नवरात्रि में माँ भगवती के रूपों के दर्शन और पूजन के लिए शहर के सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं और व्रतियों का तांता लगा रहा. लेकिन कुछ ख़ास मंदिर ऐसे हैं जहाँ व्रतियों ने दर्शन और पूजन मनचाहा वर प्राप्त करने के उद्देश्य से किया. हिन्दू पूजन विधि में त्रिकोण का बड़ा ही विशेष महत्त्व माना जाता है और भोजपुर मुख्यालय में तीन देवियों का ऐसा त्रिकोण है जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
क्या है त्रिकोण यात्रा ?
त्रिभुज के आकार की बनने वाली तीन मंदिरों के भ्रमण का वह रास्ता जो तीन मंदिरों से जुड़ा होता है उसे त्रिकोण दर्शन या भ्रमण कहा जाता है. त्रिकोण शक्ति का द्योतक माना जाता है. इसकी महत्ता तब और बढ़ जाती है जब नवरात्र, या दीपावली जैसे कुछ ख़ास पर्व-त्यौहार का समय आता है. अरण्य देवी मंदिर, बाबू बाजार स्थित काली मंदिर और शिवगंज स्थित शीतला माता मंदिर आरा के तीन ऐसे मन्दिर हैं जिनका भ्रमण त्रिकोण-भ्रमण या यात्रा माना जाता है. त्रिकोण-भ्रमण नंगे पांव करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. बुधवार को नवमी के अवसर पर लोग इन त्रिकोणों के दर्शन करते भी दिखे.
प्रसाद जो देवी को चढ़ाए जाते हैं
अष्टमी की रात में पुआ, दाल-पूड़ी, सादा पूड़ी,गुलगुला, खीर और कचवनिया बनाया जाता है. इन सभी खाद्य पदार्थों में सिर्फ कचवानिया भैरोनाथ उर्फ भैरो बाबा को चढ़ाया जाता है. शेष सभी खाद्य पदार्थ भगवती के काली, दुर्गा, शीतला, और बुढ़िया माई जैसे कई रूपों को प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है. ऐसा मानना है कि ये खाद्य पदार्थ देवी के मनभावन खाद्य पदार्थों में गिने जाते हैं. इन सबके साथ चना जरूर चढ़ाया जाता है. नवमी के दिन अहले सुबह प्रातः 3 बजे से ही मंदिरों में पूजन और दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ जमा होने लगती है. आज इस पूजन के लिए 2 बजे रात्रि से भक्तों की भीड़ सामान्यत: पूजन के लिए महिलाओं की ही भीड़ ज्यादा देखने को मिली.
लोक व्यवहार का रूप है नवमी
हमारे व्यवहारिक जीवन में हर पूजन का संबंध ऋतू और उस ऋतु में पैदा हुए अनाज से है. किसानों द्वारा कड़ी मेहनत से तैयार फसल के नए अनाज से बने पकवानों को पहले हम अपने आराध्य देवों को चढाते हैं और फिर उसे खुद ग्रहण करते हैं. चैत्र-नवरात्र भी इसी ऋतू-परिवर्तन और हिन्दू-नव-वर्ष के आगमन पर मनने वाला एक लोक-पर्व है. जहाँ आस्था का उमंग किसानों द्वारा उपजे अच्छी फसल ला द्योतक है. चैत्र मास से पहले गेहूं की फसल तैयार होती है और इसी गेहूं के आटे से बने पुआ, पूड़ी और गुलगुले को भगवान को अर्पित किया जाता है. वही गेहूं के साथ चना भी तैयार हो गया होता है, जिसे भिंगोकर भगवान् को अर्पित किया जाता है.
क्या कहते हैं विद्वान?
ज्योतिषाचार्य और वैद्याचार्य पंडित बृजकिशोर पाठक ने बताया कि चैत्र-रामनवनी के दिन भगवान् श्रीराम का जन्म हुआ था इसलिए इसे रामनवमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन विशाल जनसमूह द्वारा जुलूस निकालना कोई विजय जुलूस नहीं, बल्कि उनके जन्म की ख़ुशी के इजहार का प्रतीक है. शारदीय नवरात्र में श्रीराम ने रावण का वध किया था, इसलिए वह विजय जुलूस के रूप में मनाया जाता है. चैत्र-नवरात्र के साथ ही हिन्दू वर्ष प्रतिपदा की शुरुआत होती है. जिसकी शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है इसलिए नवरात्र का व्रत होता है. चूंकि सनातन धर्म में सूर्योदय से दिन का शुभारंभ होता है अतः प्रातः शीतला माँ की पूजा की जाती है जिसकी तैयारी अष्टमी के दिन व्रत रखने के साथ ही हर घर में महिलाएं करतीं है. पूरी रात पुआ-पकवान बनाने के क्रम में हर घर में रातजगा का कार्यक्रम हो जाता है. त्रिकोण यात्रा के बारे में पंडित जी बताते बताते हैं कि यह शक्ति का द्योतक है. त्रिकोण परिक्रमा से शक्ति और मनचाहा वरदान पाया जा सकता है.