नहाय खाय के साथ लोक आस्था का महान पर्व चैती छठ शुरू

By pnc Mar 25, 2023




लोक आस्था का महापर्व चैती छठ की शुरुआत नहाय खाये के साथ 25 मार्च से शुरू है. साल भर में 2 बार छठ मनाया जाता है. मार्च या अप्रैल के महीने में चैती छठ और दूसरा कार्तिक मास अक्टूबर या नवंबर में मनाया जाता है. देश के कई हिस्सों में इस पर्व को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है. खासकर बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश में इस लोक आस्था के महापर्व को बड़े ही आस्था के साथ मनाते हैं.

देवघर स्थित बैद्यनाथ मंदिर के प्रसिद्ध तीर्थपुरोहित श्रीनाथ पंडित ने न्यूज़ 18 लोकल से बताया कि 25 मार्च को भरणी नक्षत्र में नहाय-खाय के साथ चैती छठ महापर्व शुरू होगा. उस दिन व्रती गंगा स्नान कर अरवा चावल, चना दाल, कद्दू की सब्जी, आंवले की चाशनी आदि ग्रहण कर चार दिवसीय इस महापर्व का संकल्प लेंगे. 26 मार्च रविवार को कृत्तिका नक्षत्र और प्रीति योग में व्रती पूरे दिन उपवास कर संध्या काल में खरना की पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करेंगे. इसी के साथ व्रतियों का 36 घंटे निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा.

सूर्य अर्ध्य अर्पित करने का शुभ मुहूर्त:

उन्होंने बताया कि 27 मार्च को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा और 28 मार्य को उदयमान सूर्य को अर्ध्य अर्पित कर पारण किया जाएगा. 27 मार्च को शाम के अर्ध्य के लिए 5.30 बजे व 28 मार्च को सुबह के अर्ध्य के लिए 5.55 बजे का मुहूर्त शुभ है.

चैती छठ का महत्व:

तीर्थ पुरोहित श्रीनाथ पंडित बताते है कि चैती छठ सबसे प्राचीनतम छठ पर्व है. इस महीने में होने वाली नवरात्र पूजा भी सबसे प्राचीनतम है. चैती छठ की अपनी महत्वता है. इसे करने से शरीर के सारे कष्ट का निवारण होता है. साथ ही जितनी भी पारिवारिक उलझन है वो दूर होंगे.

कौन कौन हैं छठी मैया और क्यों करते हैं इनकी पूजा, पढ़ें छठ व्रत कथा

छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है. कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है. यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. इस त्योहार में गलती की कोई जगह नहीं होती. इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन हैं, इस वजह से इसे महापर्व और महाव्रत के नाम से संबोधित किया जाता है.

 कौन हैं छठी मैया मइया…

 मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है.  षष्ठी मां यानी छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है. मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्ट‍ि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं. वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है. शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है. इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है. 

छठ व्रत कथा

 कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे. उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं.

 नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ. इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ.  संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया. लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं. देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं. मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी. देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया.राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की. इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा. छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया.

छठ पूजा : क्या-क्या मांगा जाता है पर्व के लोकगीतों में

छठ पूजा में व्रत से जुड़े हर कार्य के लिए अलग-अलग गीतों को गाए जाने का प्रचलन है. गेहूं धोने से लेकर व्रत के दौरान दउरा उठाने और अर्घ्य देने तक में इन गीतों से सूर्य देवता और छठ माता से गुहार लगाई जाती है. कोई पुत्र की कामना करता है तो कोई मांग के सिंदूर की. व्रत करने वाली महिलाओं का कहना है कि हर कार्य से जुड़े गीत का अपना महत्व है. छठ गीत को सुनकर पता चलता है कि व्रती मायके से ससुराल तक की सुख-शांति के लिए छठ माता से प्रार्थना करती है…सभवा में बइठन के बेटा मांगिला, गोड़वा दबन के पतोह ए दीनानाथ, रूनकी झुनकी बेटी मांगिला पढ़ल पंडितवा दामाद ए दीनानाथ…ससुरा में मांगिला अनधन सोनवा नईहर में सहोदर जेठ भाई….

 घटवा के आरी-आरी रोपब केरवा…

 शुरुआत होती है छठ घाट की सफाई से. घाट की घास को काटना, मकड़ी का जाला हटाना और वहां फूल-पौधे लगाने के दौरान ये गीत गाती हैं- घटवा के आरी- आरी रोपब केरवा, बोअब नेबूआ… कोपी-कोपी बोलेले सूरुज देव सुनअ सेवक लोग, मोरे घाटे दुबिया उपज गईले मकरी बसेरा लेले, वितनी से बोलेले सेवक लोग सुनअ ऐ सुरुज देव, रउआ घाटे दुबिया छटाई देहब मकड़ी भगाई देहब…

ले ले अईह हो भईया केरा के घवदिया

 उसके बाद होती है फल और अन्य सामग्री की खरीदारी. इसके लिए व्रती अपने भाई से ये गीत गाकर गुहार लगाती हैं, मोरा भईया जायेला महंगा मुंगेर लेले अईह हो भईया गेहूं के मोटरिया, अबकी के गेहूआं महंग भईले बहिनी, छोड़ी देहू ये बहिनी छठी के बरतिया, नाही छोड़ब हो भईया छठीया बरतिया लेले अईह हो भईया केरा के घवदिया. पटना के हाट पर नरियल, नरियल कीनबे जरूर, हाजीपुर केरवा बेसहबे, अरघ देबे जरूर….

मरबो रे सुगवा धनुख से

व्रत के दिन अर्घ्य से पहले दउरा सजाने के समय व्रती गाती हैं – केरवा जे फरेला घवद से ओहपर सूग्गा मेडराय, मरबो रे सुगवा धनुख से सुगा गिरे मुरछाई…कांच ही बांस के बहंगियां, बहंगी लचकत जाए, होई न बलमजी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाई… चार ही चक्का के मोटरवा, मोटरवा बईठी ससुर जी, पेनी हाली-हाली धोतिआ पियरिया अरघ की बेर भईल…. चार पहर हम जल-थल सेईला…

 व्रत के दिन अर्घ्य देते समय सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए घाट पर बैठी महिलाएं कई गीत गाती हैं. इनमें -सोने के खड़उआं ये दीनानाथ तिकल लिलाल, हाथ सटकुनिया ये दीनानाथ दुअरिया लेले ठाढ़, सबके डलियवा ये दीनानाथ लिहल मंगाय, बाझिन डलियवा ये दीनानाथ पड़ले तवाय…जोड़े-जोड़े सुपवा तोहे चढ़इबो हो, मईया खोल ना हे केवडि़या हे दर्शनवा देहू न…डोमिन बेटी सूप लेले ठाढ़ बा, उग हो सुरुज देव अरघ के बेर, भोरवे में नदिआ नहाइला अदित मनाईला, बाबा फूलवा अछतवा चढ़ाइला सबगुन गाईला हो, बाबा अंगने में मांगिला अंजोर ई मथवा नवाईला हो…गोड़ खड़उआ ये अदितमल सोहे तिलक लिलार, हथवा में सोहे सब रंग बाती तोहे अरघ दिआय…सात ही घोड़वा सुरुज देव दस असवार, बरती दुअरिया छठिअ मईया करीले पुकार…प्रमुख हैं.

 सुहाग और संतान की कामना

सुहागिन व्रत के दौरान ये गीत गाकर संतान और सुहाग की कामना करती है- हम तोहसे पुछिले बरतिया करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी, हमरो जे बेटवा कवन अइसन बेटवा जे उनके लागी, करीले छठ बरतिया से उनके लागी, अमरूदिया के पात पर उगेले सुरुज देव झांके-झुके, ये करेलू छठ बरतिया से झांके-झुके….

By pnc

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