चंद्रेश्वर के दू गो टटका भोजपुरी कविता




बक्सर, बिहार में जनमल आ लगभग चार दशक से लेखन में सक्रिय चंद्रेश्वर जी के अब तक हिन्दी-भोजपुरी में सात गो पुस्तक प्रकशित बाड़ी स। यूपी, बलरामपुर के एम.एल.के.पी.जी. कॉलेज से हिन्दी के प्रोफेसर आ अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्ति के बाद आजकल लखनऊ में रहि के लेखन कार्य कर रहल बानी।

1.एगो चिरई गोहार लगावत रहत रहे

हमनी अइसन नगर में
बसे खातिर रहली जा
सरापित
जेहवाँ सलीका के ना
बाँचल रहे
केवनो पड़ोस

सिरमौर बनि के रहे
जिनगी में
तटस्थता
बिना केवनो काम के

प्रतिरोध एह घरी
खलिसा एगो
रूप मानल जात रहे
मूर्खता के

जेकरा किछुओ भेंटा जात रहे
ऊहे मानल जात रहे
रसूख़दार

पद पैरवी पुरस्कारे से
आँकल जात रहे
केवनो आदमी के

सरकारी संस्थानी
‘साहित्यभूषण’ के
उपाधिए
पहचान बनि गइल रहे
बड़हन साहित्यकार के

जे एक्को दिन क्लास में जाइ के
ना पढ़ावत रहे
ऊहे पावत रहे
शिक्षक शिरोमणि के
सम्मान

चरने चाँपल मानल जात रहे
केहू के सबसे बड़
काबिलियत

प्रतिभा पानी भरत रही स
नवहा कुबेरन के जाके
घरे-घरे
होइ के मज़बूर

डर समाइल रहत रहे
पुरान पंचनो के
नेयाव में
गेहुअन साँप बनि के

ईमान के बात रहे
बहुत दूर के कौड़ी

न्यायाधीशो
घबराइल रहत रहे लोग
फ़ैसला लिखे के पहिले

हिले लागत रहे
ओह लोग के क़लम के नीब

थरथराए लागत रहे
ओह लोग के मेज़

फ़ाइल हवा में उड़ि के
हो जात रही स
ग़ायब

रात-दिन एगो चिरई
लगावत रहत रहे
गोहार …… “खूँटा में मोर दाल बा!”
बाकी बढ़ई से ले के राजा तक
सभे चुप्पी मारि के
बइठल रहत रहे

ढेरखा ले पत्रकारो
भागत रहलन स
सच्चाई से
कोसहन दूर
घटना के असली तथ्यन से
केवनो मतलब ना रहि गइल रहे
ओहनी के

कतो केवनो सत्य के पच्छ में
ना देत रहे सुनाई
जय-जयकार
ऊ त कब के
चलि गइल रहे
खटिया उड़ास के कोमा में
केवनो हेठार के गाँव में
जहवाँ अब्बो सड़क
एगो सपना लेखा रहे

शहर के चौक बाज़ार में
खौफ़ त देखs
डोमा जी उस्ताद के
गजानन माधव मुक्तिबोध के कविता
‘अँधेरे में’ से निकलि के बहरी
दिने-दहाड़े मचावत रहे
गुंडई

ऊ एगो क़ायर समय रहे
जेवना घरी
केवनो गुंडा के गुंडा कहे से
बँचत रहे
शरीफ़ लोग
आ नवका रिवाज़ बनल जात रहे
केवनो ज्ञानिए-गुनी जन के
गुंडा कहे के

झूठ के डंका बाजत रहे
देश-दुनिया में

ओकरे तरफ़दारी में
निकलत रहे बैंडपार्टी
बाजत रहे शहनाई

जिनगी में यारी ना खलिसा
बाँचि गइल रहे दुश्मनी

भरोसा आ उम्मीद जइसन
सुन्नर शब्द बाँचल रहि गइल रहन स
खलिसा कवियन के
कविते में

आदमिए आदमी के
काट खाए खातिर
होखे लागत रहे
बेताब

दाग़दार होखे से
ना डरत रहे केहू
अब ईहे सब तs
अलंकरन बाँचल रहे
सभ्य कहाए वाला
लोगन खातिर
एह नयकी सभ्यता में !

2.शिकायत पेटी

कवि, तोहार दिमाग़
खलिसा शिकायत पेटी तs
ना हो सके

कवि,तोहार हिरदा
खलिला कुंठा के कब्रिस्तान तs ना हो सके

कवि,तूँ हरमेस सूतल रहे लs
गाफ़िल रहे लs
गहिरारे नीन में
सपना देखत रहे ल s
ऊल-जलूल
अगड़म-बगड़म

तोहरा तs
अब ना रहि गइल
केवनो मउसम के इंतज़ार

पह फाटल आ बेर डूबल
तूूँ नइख देखले
ढेर दिनन से

कवि, अब तोहार केवनो वास्ता
ना रहि गइल
सच्चाइयन से

तुहूँ अब
कराहत बाड़s
महाझूठ के
पहाड़ के नीचे
दबल बाड़s

कवि,तोहरा अब हरमेस
रहत बा तलाश
अवसर के,
पाला बदले में
नेता लोगन से,
रंग बदले में आगे बाड़s
गिरगिटवन से

तूँ सज़ा ना , बराबर चाहे लs
पुरस्कारे –पुरस्कार
नोट के तकिया पs
सूतल चाहे लs
मुड़ी धइ के

जेकरा के गरियावल भा सरापल चाहे लs
ओकरे से गलबाँही करे लs

चूमल चाहे लs हाथ ऊहे
जेवन सनाइल बा ख़ून से
तोहार शब्द डूबल रहत बा
एहघरी चमचई के
गाढ़ चाशनी में !

कवि,तूँ आपन हिरदा के पाट
करs किछु चाकर
तज दs ईरिखा आ कटुता

निंदारस से तनिक उठs ऊपर
जाग कवि,देखs तs
तोहरा के गोहरावत बा
तोहरे समय
करुन स्वर में
ले के नाँव
तोहार ……

कवि, साँचो
शब्दन के संगत से
अब बनि जा पहरुआ
हो जा सावधान
एह समय के बहुते
ज़रूरत बा
तोहार ….!

631/58, ‘सुयश’, ज्ञानविहार कॉलोनी,
कमता (फ़ैज़ाबाद रोड) –226028
लखनऊ
मोबाइल नंबर –7355644658
ईमेल –[email protected]

By pnc

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