अभिभावक दे देते हैं ज्यादा किताबें
किताबें ज्यादा खरीदनी पड़ती है
एक दूसरे के सिर दोष मढ़ रहे है अभिभावक और स्कूल
स्मार्ट क्लास और अन्य विकल्पों के जरिए किताबों का बोझ कम हो
भोजपुर में कई स्कूल नहीं मानते CBSE के गाइड लाइन
अभिभावकों ने कहा कारवाई हो
रिपोर्ट -आरा से ओपी पाण्डेय
CBSE बोर्ड द्वारा बच्चों के बस्ते को कम करने के आदेश के बाद अब स्कूल प्रबंधन और अभिभावक सकते में हैं. जहाँ एक ओर स्कूल प्रबंधन के लिए ये चुनौती गई तो वहीँ अभिभावकों के लिए एक ख़ुशी भरा सन्देश. लेकिन क्या कुछ झेल रहे हैं बच्चे. आइये जानते हैं पटना नाउ की तहकीकात में अभिभावक शिक्षक और बच्चों की प्रतिक्रियाएं—
जॉ पॉल स्कुल की प्राचार्या मधु सिन्हा कहती हैं कि हमने कभी भी बस्ते पर बोझ डाला ही नहीं है. हम तो अभिभावकों से ये अपील करते हैं कि वे बच्चों को उनके बस्ते में वो ही किताबें देकर भेजें जिसकी उस दिन पढ़ाई होने वाली हो. लेकिन अधिकतर अभिभावक कई किताबों को भी बच्चों के बैग में भर देते हैं और स्कुल प्रबंधन पर ये बोझ मढ़ दिया जाता है. वे कहती हैं कि अभिभावकों की मीटिंग वो हर बार करती हैं लेकिन अभिभावकों की उपस्थिति पर्याप्त नहीं हो पाती है इसलिए उन्होंने अभिभावकों की उपस्थति पर भी 2 मार्क्स बच्चों के प्रोग्रेस रिपोर्ट में जोड़ दिया है. जिससे अब कुछ संख्या बढ़ी है. इसके अतिरिक्त जो अच्छे ड्रेस, स्वच्छता और अच्छे लैंग्वेज में सलीके से बात करता है उसको 10 मार्क्स इस सलीके के लिए दिया जाता है. साथ ही 10 मार्क्स अच्छी लिखावट के लिए दी जाती है. ये सब प्रयास बच्चों के सर्वांगीण विकास से जुड़ा है ये पढ़ाई के साथ दूसरी कलाएं हैं. इस विकास के लिए अभिभावकों का तत्पर होना बहुत जरुरी है.
वहीँ इसी स्कुल की क्लास 6 की छात्रा सृष्टि रंजन बताती है कि वो हर दिन 8 किताबें और आठ कॉपी के साथ डायरी ले जाती है. साथ में टिफिन और वाटर बोतल. लगभग 5-7 किलो का वजन होता है. ये जाहिर तौर पर भारी तो होता ही है लेकिन इतना तो ले जाना है पढाई के हिसाब से.
सृष्टि रंजन के पिता मनोज सिन्हा CBSE बोर्ड द्वारा दिए गए इस फैसले का स्वागत करते हैं और कहते हैं कि ये बिलकुल सही फैसला है. प्राइवेट स्कुल केवल ज्यादा पैसे किताबों और अन्य सुविधाओं के नाम पर वसूलते हैं. जब पैसे लेते हैं तो उन्हें किताबों के अलावा स्मार्ट क्लास और अन्य विकल्पों के जरिए बच्चों के किताबों का बोझ कम करना चाहिए. साथ ही वो ये भी कहते हैं कि वे अपने बच्चे के बैग में उतनी किताबें ही देते हैं जिनकी पढ़ाई उस दिन होने वाली होती है.
वहीं इसी स्कुल के 7वीं कक्षा का छात्र आदित्य कुमार कहते है ही वो हर दिन सात किताब और सात कॉपी के अलावा एक रफ कॉपी और डायरी ले जाता है. उसे बस्ते के बोझ सामान्य से ज्यादा लगता है.
सम्भावना जुनियर स्कूल की चौथी वर्ग की छात्रा मदुरई के अनुसार बैग ले जाने में उसे दिक्कत होती गई चुकी किताबों का बोझ ज्यादा होता है. लेकिन अगर स्कुल में ही ऐसा कोई व्यवस्था हो जाये जिससे किताबें ढोना न पड़े.
वहीं मदुरई की मम्मी स्मिता बहादुर बताती हैं कि स्कुल तो बस वही किताबें बच्चों को देते हैं जिसकी पढ़ाई होती है लेकिन किताबों की संख्या स्कुल ही ज्यादा करता है. जो उनकी कमाई का जरिया है. अब 9 सब्जेक्ट की पढ़ाई होती है फिर 14 किताब स्कुल खरीदने पर क्यों मजबूर करता है. CBSE के इस निर्णय से हमे ख़ुशी है कि स्कूलों का मोनोपॉली किताबों के लिए कम होगा.
बच्चों के स्वास्थ्य के हितों को ध्यान में रख कर सीबीएसई की ओर से भेजे गए गाइड लाइन का पालन होता नहीं दिख रहा है.बच्चे आज भी भारी स्कूल बैग कंधे पर टांग कर पहले तो बस का इन्तजार करते है और फिर स्कूल और घर.इन बच्चों की नींद भी पूरी नहीं होती.लिहाजा सीबीएसई बोर्ड का फरमान कब लागू होता है स्कूल में और कब मिलती है बच्चों को भारी बस्ते से मुक्ति.