चौपाल समाज के लोग एक ही कोड में करें जाति को अंकित
सामाजिक न्याय की राजनीति का समावेशी सोपान
सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर बिहार सरकार जातीय जनगणना करा रही है. विभिन्न समाज की भागीदारी सुनिश्चित करने और योजनाओं के अमल के लिए जरूरी आंकड़े प्राप्त करना घोषित लक्ष्य है. जानकर मानते हैं कि समावेशी विकास के लिए ये उचित कदम है. ऐसे में ये अहम हो जाता है कि चौपाल जाति का क्या दृष्टिकोण हो?
भारतीय समाज में जाति का विशेष स्थान है. इसके बिना भारतीय समाज की कल्पना नहीं की जा सकती. समाज के हर जाति का अपना इतिहास, सुदीर्घ परंपरा, विश्वास और सांस्कृतिक आलोड़ण है जो भारतीय समाज को व्यवस्थाओं की अवधारणा से परिपूर्ण करती है. चौपाल जाति भी इस सिद्धांत को पल्लवित और पुष्पित करती है.
अन्य जातियों की तरह चौपाल जाति कई उपनाम/उपजाति जैसे तांती, तन्तावा, पान, स्वांस, कोल, कोली, शर्मा, मंडल, दास आदि से जाने जाते हैं. भौगोलिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह जाति सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि पूरे देश में उपस्थित है. भले ही कई जगहों पर इस जाति के कई उपनाम हों. जिस तरह भारत विविधताओं में एकता की अवधारणा पर खड़ा है ठीक उसी तरह चौपाल जाति अलग अलग उपनाम/उपजातियों के साथ इन विविधताओं को प्रदर्शित करती है. चौपाल जाति में इतनी उपजातियां होने के बावजूद एकता का भाव प्रकट होता है. इस समाज का मूल विचार भारत के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करता है क्योंकि चौपाल समाज अपना प्रेरक और आदर्श कबीर दास एवं शिसिया महाराज जैसे महान व्यक्तित्व को मानता है.. और इनके दर्शन और विचारों में विश्वास करता है. चौपाल समाज एक तरफ जहां कबीरदास से प्रेरणा लेकर समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वास और सामाजिक बुराई पर कड़ा प्रहार करते हुए तार्किक दृष्टिकोण अपनाने पर ध्यान दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ चौपाल समाज में शक्तिपुंज शीसिया महाराज के शौर्य, पराक्रम, त्याग और सिद्धांत से प्रेरणा लेकर समाज के लोगों को जीवन जीने की राह सिखाते हैं.
हर जाति की तरह चौपाल जाति भी भारतीय विचारों की व्याख्या करता है. जिस प्रकार जातीय समझ भारतीय समाज की नियति है ठीक उसी तरह जाति भारतीय राजनीति की नियति है. भारत में विभिन्न कारणों से जनजीवन में राजनीति की पैठ अधिक है. हाल यह है कि राजनीति का क.. ख.. ग भी जाति के बिना अधूरा है. भारतीय राजनीति की संरचना जाति की नीव पर खड़ी है. बिहार में तो खास तौर पर राजनीति में जाति की प्रधानता है.
बिहार में जातीय जनगणना आज कल चर्चा का विषय बना हुआ है. बहुत ही लम्बे समय से देश में जातीय जनगणना की मांग हो रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने केंद्र सरकार से जातीय जनगणना कराने के लिए विचार विमर्श किया और सुझाव दिया कि पूरे देश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. लेकिन केंद्र सरकार ने इस सुझाव को अनसुना कर दिया. फिर भी बिहार सरकार ने जातीय जनगणना को लेकर 1 जून 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि बिहार में जातीय जनगणना होगी. ऐसा नहीं है कि जातीय जनगणना देश में पहली बार होती. वर्ष 1931 में जातीय जनगणना हुई थी. हाल के समय में वर्ष 2011 में भी सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना हुई थी किन्तु केंद्र सरकार ने जातीय आंकड़ों को जारी नहीं किया. बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक में जातीय जनगणना हो चुकी है. बिहार में जनगणना दो चरणों में होना है. पहले चरण में मकानों की संख्या की गणना लगभग हो चुकी है. दूसरा चरण शुरू है. इसमें लोगों से जाति, उपजाति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुडी जानकारी ली जा रही है.
सरकार के इस कदम पर समाज में राय बटी हुई है. फिर भी लोग इस प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं. इस सरकारी कदम का समर्थन और विरोध दोनो हो रहा है. रोचक है कि समर्थन और विरोध भी जाति आधारित ही है. विरोध में अधिकतर उच्च जाति से संबंधित लोग हैं. उनको आशंका है कि जनगणना से समाज की वास्तविक स्थिति सार्वजानिक हो जाएगी और अन्य वर्ग मजबूत हो जाएंगे. दूसरी तरफ इसके समर्थक अधिकतर बहुजन वर्गों से हैं.
जाति व्यवस्था भारतीय समाज में प्रमुखता से मौजूद है. बावजूद इसके कोई प्रामाणिक जातीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं हैं. जातीय जनगणना होने के बाद आंकड़े आ जाएंगे और उन आंकड़ों के आधार पर सरकार कल्याणकारी योजनाओं को संचालित कर सकती हैं जिससे समावेशी विकास संभव हो. जिसका ज्यादा लाभ समाज के उन वंचित वर्गों को मिल सकता है जिन्हें इनकी सब से ज्यादा जरुरत है. अखिल भारतीय चौपाल संघ का दावा है कि पूरा चौपाल समाज जातीय जनगणना के समर्थन में है.
यह मांग कोई नया नहीं है. चौपाल समाज कांशीराम के उस नीति वाक्य में यकीन रखता है जिसके तहत उन्होंने कहा था कि “जिसकी जितनी संख्या भारी… उसकी उतनी हो हिस्सेदारी”. जातीय जनगणना असल में कांशीराम के सिद्धांतो का व्यवहारिक रूप ही है. इस में कोई दो राय नहीं है कि जातीय जनगणना से यह पता चलेगा कि समाज में किस जाति की कितनी संख्या है और किस जाति के लोगों की समाज के संसाधनों पर कितनी हिस्सेदारी है. समाज यह जान पायेगा कि लोकतंत्र के केंद्र में जो लोग (संख्या) हैं.. क्या उनको सही मायने में संसाधनों का लाभ मिल रहा है या कुछ खास जातियों का ही संसाधनों पर कब्ज़ा है.
जातीय जनगणना के आसरे बिहार की हर जाति अपना अपना समीकरण देख रही है. बहुजन वर्ग से आने वाली जातियां कुछ ज्यादा ही उत्साहित हैं. चौपाल जाति के लोगों में भी उत्साह है.. यह जानने के इंतजार में हैं कि चौपाल समाज की कुल जनसंख्या कितनी है. इस समाज के बौद्धिक वर्ग और नेता वर्ग अपने अपने तरीके से जातीय जनगणना को लेकर चौपाल समाज को जागरूक भी कर रहे हैं. उन्हें बता रहे हैं कि चौपाल जाति का कोड 66 है एवं जाति सिर्फ चौपाल ही बताना है आदि. चौपाल समाज जागरूक हो रहा है और एकता में बल है की भावना से आगे भी बढ़ रहा है. चौपाल जाति के श्लाका पुरुष कैलाश चौपाल मानते हैं कि उनका समाज जागरूक हो रहा है लेकिन ये नाकाफी है. समाज को अभी और जागरूक करना है जिसका आधार शिक्षा होगा. चौपाल समाज जितना ही शिक्षित होगा उतना ही बढेगा.
वे याद दिलाते हैं कि चौपाल समाज एक मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आभारी हैं क्योंकि जब सीएम को चौपाल जाति की विषम स्थिति से अवगत कराया गया तो उनका सहृदय व्यवहार रहा. सीएम ने इसे पूरे चौपाल समाज की समस्या बताया था. इनका समाधान 16 मई 2014 को सीएम ने कराया. उस हस्तक्षेप से चौपाल जाति के वर्तमान और भविष्य की उन्नति की रुपरेखा को बल मिला.
चौपाल जाति आज फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आभारी हैं जिनके नेतृत्व में जातीय जनगणना को साकार किया जा रहा है. ये सिर्फ जातीय जनगणना नही है बल्कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को सुनिश्चित करेगा. इस प्रकार जातीय जनगणना का लक्ष्य सिर्फ बिहार में जाति का जनगणना ही नहीं है बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य भागीदारी से है. चौपाल समाज के लोग इस बात को समझते हैं कि जातीय जनगणना से समाज में उनकी भी भागीदारी बढ़ेगी.
जातीय जनगणना के लिए बिहार सरकार के दस्तावेज में कुल प्रश्नों कि संख्या 17 है और दस्तावेज के प्रश्न संख्या 8 में लोगों को अपने जाति के कोड बताने हैं. वैसे बिहार सरकार ने कुल 215 जातीय कोड का विवरण दिया है. इस दस्तावेज में चौपाल जाति का जातीय कोड 66 है. जैसा कि ऊपर बताया गया है कि भारतीय समाज में कई जातियां है जो कई उपजातियों में बंटे हुए हैं. उसी तरह चौपाल जाति भी कई उपजातियों में बंटे हुए हैं. लेकिन इस दस्तावेज में इन उपजातियों जैसे पान, स्वांसी के लिए अलग से जातीय कोड 112 दिया गया है. दूसरी तरफ कई जाति है जो कई उपजातियां में बंटे हुए हैं लेकिन उन सब का कोड एक ही है. जैसे बनिया और इसकी उपजातियों के कोड, यादव और इसके उपजातियों के कोड. जब विविधता में एकता की बात है.. हम सब एक हैं तो चौपाल के उपजातियों के जातीय कोड अलग-अलग क्यों? इससे भ्रम पैदा हो रहा है. आवाज बुलंद नहीं किया तो सही डेटा नहीं आएगा.
ब्रजमोहन चौपाल
अध्यक्ष, अखिल भारतीय चौपाल संघ